Saturday 11/ 10/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – Different perspectives are key for ‘out of the box’ ideas | एन. रघुरामन का कॉलम: ‘आउट ऑफ द बॉक्स’ आइडिया के लिए अलग दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है

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1 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

इस शीर्षक के समर्थन में यहां दो उदाहरण पेश हैं… 1. इटली के एक बुजुर्ग टमाटर का बगीचा लगाना चाहते थे। पर उनका इकलौता बेटा विन्सेंट, जेल में था। बुजुर्ग ने पुत्र को प​त्र लिखा। ‘प्रिय विन्सेंट, मैं थोड़ा दुखी हूं, क्योंकि मुझे लगता है कि इस साल मैं टमाटर का बगीचा नहीं लगा पाउंगा। खुदाई के​ लिए मैं बूढ़ा हो चुका हूं। यदि आज तुम यहां होते तो मेरी परेशानी खत्म हो जाती। तुम पहले की तरह खुशी-खुशी मेरे लिए खुदाई कर देते। ढेर सारा प्यार, पापा।’

कुछ दिन बाद उन्हें बेटे का पत्र मिला। उसमें लिखा था ‘प्यारे पापा, बगीचे में खुदाई मत करना। वहां शव दफनाए हैं। प्यार, विन्नी।’ अगले दिन सुबह 4 बजे, पुलिस उनके घर पहुंची और सारा बगीचा खोद दिया। लेकिन कोई शव वहां नहीं मिला।

पुलिसकर्मियों ने माफी मांगी और घर से चले गए। बाद में पिता को बेटे का दूसरा पत्र मिला, जिसमें लिखा था ‘प्यारे पापा, जाओ अब टमाटर लगा लो। इन हालात में, मैं यही सबसे अच्छा कर सकता था। आपको प्यार, विन्नी।’

2. 1968 में ‘3एम’ कंपनी के डॉ. स्पेंसर सिल्वर मजबूत गोंद बनाने की कोशिश कर रहे थे, पर गलती से ये एक कमजोर गुणवत्ता की गोंद बन गई। कई सालों तक वह इसका कोई उपयोग नहीं ढूंढ पाए। 1974 में इसी कंपनी के केमिकल इंजीनियर आर्ट फ्राय चर्च में प्रार्थना के दौरान अपनी भजन पुस्तक से बार-बार बुकमार्क गिरने की समस्या से जूझ रहे थे। फ्राय को सिल्वर का बनाया गोंद याद आया और उन्हें अहसास हुआ कि उसे ऐसा बुकमार्क बनाने के काम में लिया जा सकता है, जो चिपक भी सकता है और उसे हटाकर दोबारा उपयोग किया जा सकता है। फ्राय का शुरुआती विचार इससे बार-बार चिपक सकने वाला बुकमार्क बनाने का था। पर जल्द ही उन्हें महसूस हुआ कि इसे ‘स्मॉल नोट्स’ की गोंद के तौर पर भी काम में ले सकते हैं। पर कंपनी को इसमें संकोच था। 1977 में 3एम ने उत्पाद का परीक्षण किया, मुफ्त नमूने बांटे। इसके बाद उन्हें बड़े पैमाने पर री-आर्डर मिले और अंतत: 1980 में ‘पोस्ट इट’ के तौर पर इसकी लॉन्चिंग की गई।

इस सोमवार ये दो उदाहरण मुझे तब याद जाए, जब पता चला कि बिट्स पिलानी, हैदराबाद कैंपस के दो 20 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्रों ने अत्याधुनिक यूएवी बनाए और इन्हें सेना की यूनिट्स को बेचकर रक्षा क्षेत्र में तहलका मचा दिया। ये उन्होंने अपना स्टार्टअप ‘अपोलियन डायनामिक्स’ बनाने के दो महीने के भीतर कर दिया।

आयातित ड्रोन्स पर देश की निर्भरता कम करना उनका उद्देश्य था। मैकेनिकल इंजीनियरिंग छात्र जयंत खत्री (अजमेर), इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग छात्र शौर्य चौधरी (कोलकाता) ने खुद के पास मौजूद पुर्जों से ड्रोन्स बनाए। ड्रोन प्रणाली को भारतीय भू-भाग के अनुसार अनुकूलित किया और सैन्य अधिकारियों के सामने पेश किया।

300 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाला कामिकाजे ड्रोन उनका उत्कृष्ट उत्पाद है, जो मानक कमर्शियल ड्रोन्स से पांच गुना तेज है, 1 किलो पे-लोड सटीकता से ले जा सकता है। ये सिर्फ तेज ही नहीं, बल्कि रडार से इसका पता भी नहीं लगाया जा सकता। रोबोटिक्स के प्रति उनके लगाव के चलते दोनों ने कैंपस में डिफेन्स-टेक क्लब शुरू किया।

दोनों के बीच सहमति बनी कि हर यूएवी इन-हाउस बनाएंगे, जिसमें ‘मजबूती, विश्वसनीयता, अनुकूलनशीलता’ पर जोर होगा। अब इसमें द्वितीय वर्ष के छह और छात्र अत्याधुनिक वीटीओएल व फिक्स्ड-विंग प्लेटफॉर्म पर काम कर रहे हैं, ताकि मिशन को बदलती परिस्थितियों के अनुसार बेहतर रखा जा सके। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वे अब सैन्य कर्मियों को व्यावहारिक प्रशिक्षण भी दे रहे हैं।

किसी समस्या के समाधान में जो चीजें अक्सर होती हैं, उनमें 1. सभी धारणाओं को चुनौती देना। 2. मुद्दे को अलग दृष्टिकोण से देखने की कोशिश 3. नए समाधान के लिए असंबंधित विचारों या क्षेत्रों को जोड़ना। 4. सीमाओं को रुकावटों के स्थान पर नवाचार के अवसरों के रूप में लेना। 5. विभिन्न दृष्टिकोण आजमाना और विफलताओं से सीखना।

फंडा यह है कि जब आप चीजों को ‘सामान्य’ तरीकों से करने पर सवाल उठाते हो तो अंत में एक शानदार आइडिया आने की संभावना बहुत अधिक हो जाती है।

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