Friday 10/ 10/ 2025 

PAK में हिंदू लड़की से दुष्कर्म… अगवा किया, धर्मांतरण कराया, फिर रेप करके बूढ़े मुस्लिम से करा दिया निकाह – Pakistani Hindu minor girl kidnapped Raped face conversion and forced to marriage aged muslim man ntc32 लाख रुपये की गाड़ियां, 65 लाख के गहने, 48 बैंक खातों में 2.23 करोड़ रुपये जब्त, ED ने असिस्टेंट ड्रग कंट्रोलर को किया गिरफ्तार‘जेल से पहले जहन्नुम भेज देंगे’, यूपी में ताबड़तोड़ एनकाउंटर पर बोले CM योगीRajat Sharma's Blog | बिहार में जंग शुरू: टिकट बांटना पहली चुनौतीयहां 50 साल से ऊपर कोई नहीं जीता… बिहार के इस गांव में रहस्यमयी बीमारी का आतंक – mysterious disease in duadhpania village munger lclarअफगान विदेश मंत्री ने दी पाकिस्तान को चेतावनी, दिल्ली की धरती से अमेरिका को भी दिया संदेशट्रेन में सामान चोरी होने का डर खत्म! सफर करने से पहले जानें ये 5 स्मार्ट ट्रिक्स – festival travel on Indian trains know luggage safety tipsसिंगर जुबीन गर्ग की मौत के मामले में दो लोगों की हुई और गिरफ्तारी, ये दोनों 24 घंटे रहते थे साथ1 फुट जमीन के लिए रिश्तों का खून… मां- बाप, भाई- बहन ने पीट- पीटकर ले ली युवक की जान – Banda man murdered by parents and sibling for 1 foot land property lcltmकफ सिरप पीने से बच्चों की मौत के मामले पर सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इनकार, जानिए क्यों खारिज की याचिका?
देश

N. Raghuraman’s column – Why you should learn soft skills during graduation | एन. रघुरामन का कॉलम: ग्रेजुएशन के दौरान आपको सॉफ्ट स्किल्स क्यों सीखनी चाहिए

  • Hindi News
  • Opinion
  • N. Raghuraman’s Column Why You Should Learn Soft Skills During Graduation

2 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

पिछले सप्ताह मैं परिवार के एक सदस्य के परामर्श के लिए भोपाल के कुछ डॉक्टरों से मिला। इनमें शामिल थे डॉ. अरुण तिवारी, रूमेटोलॉजिस्ट (जो जोड़ों, मांसपेशियों, हड्डियों और कभी-कभी अन्य अंगों पर असर करने वाली स्थितियों पर फोकस करते हैं, जिनमें आमतौर पर सूजन या इम्यून सिस्टम की खराबी शामिल होती है), डॉ. गोपाल बटनी, एएचसी मेडिसिन विशेषज्ञ (जो दवा प्रबंधन और विविध मेडिकल स्थितियों को देखते हैं), डॉ. संदीप जैन, एंडोक्राइनोलॉजिस्ट (जो हार्मोन स्रवित करने वाले अंगों को देखते हैं), डॉ. गौरव खंडेलवाल, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट (जो मिनिमल इन्वेसिव और कैथेटर-आधारित प्रक्रिया के जरिए हृदय और रक्त वाहिकाओं का उपचार करते हैं), डॉ. अकिलेश्वर सिंह राठौर, नॉन इन्वेसिव कार्डियोलॉजिस्ट (जो सर्जरी और दूसरी इन्वेसिव तकनीकों के ​बगैर बाहरी परीक्षणों और प्रक्रियाओं से हृदय रोग प्रबंधन करते हैं), सिद्धार्थ मलैया, नेत्र रोग विशेषज्ञ और डॉ. अंकित मिश्रा, ईएनटी विशेषज्ञ।

मुझमें और इन डॉक्टरों के बीच एक समानता थी कि वे मुझे नहीं जानते थे और मुझे भी यह पता नहीं था कि उन्होंने किस स्कूल से पढ़ाई की या किस वर्ष से प्रैक्टिस शुरू की। लेकिन उनसे दो घंटे परामर्श के बाद मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं तो कहूंगा उन्होंने मुझे बेहतर महसूस कराया।

उनके पास बेहतरीन ‘बेड साइड मैनर्स’ थे, यानी वो तरीका, जिसके जरिए डॉक्टर बीमार लोगों का इलाज करते हैं। इसमें करुणा दिखाना, मैत्रीपूर्ण और मरीज को समझने वाला व्यवहार शामिल है। एक ही पाठ्यक्रम से डिग्री हासिल करने के बाद उन सभी ने अलग-अलग क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल की थी, लेकिन उन सभी में समस्या-समाधान क्षमता, विविध दृष्टिकोण, विश्लेषणात्मक सोच जैसी सॉफ्ट स्किल्स थीं। मुझे यकीन है कि ये गुण उनके पाठ्यक्रम में तो शामिल नहीं होंगे। उन्होंने जरूरत आने पर ऐसी और कई सारी सॉफ्ट स्किल्स का प्रदर्शन किया।

एक डॉक्टर से मुलाकात का इंतजार करते वक्त मैं एक युवा मरीज से मिला। वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। वह बता रहा था कि उसने एक एप डेवलप किया और एक कैम्पेन लॉन्च किया, जिसने उस एप के डाउनलोड्स में जबरदस्त इजाफा किया। लेकिन वह यह नहीं समझा सका कि उसके दिमाग में यह आइडिया कैसे आया? कैसे लोग उसके साथ जुड़े?

विभिन्न विभागों के बीच तालमेल कैसे बैठाया? जब कंपनी का बजट और प्रोजेक्ट का समय घट रहा था तो ऐसी स्थिति में सांस्कृतिक बदलावों का तत्काल प्रबंधन उसने कैसे किया। वह उन छोटी किन्तु महत्वपूर्ण जानकारियों को देने में पूर्णत: विफल रहा, जो उसकी विभिन्न दृष्टिकोणों से संवाद की क्षमता को प्रदर्शित करतीं और उसे दूसरों से अलग और रुचिपूर्ण दिखातीं।

उसने मुझसे मेरे बारे में पूछताछ करने और एक रिलेशनशिप बनाने में भी रुचि नहीं दिखाई। उसने स्वीकारा कि वह कक्षाओं में नियमित रहता था, लेकिन सिर्फ लंच ब्रेक से पहले, जब बुनियादी विषय पढ़ाए जाते हैं। इसके बाद वह कक्षा से चला जाता था, क्योंकि उसे लगता था कि सॉफ्ट स्किल्स तो उसे आती हैं। उसके जैसे विद्यार्थी यह नहीं समझते कि सॉफ्ट स्किल्स का मतलब भोजन और साज-सज्जा का तौर-तरीका नहीं होता। यह उससे कहीं अधिक है, जैसा ऊपर बताया गया है।

एआई हमारे स्मार्टफोन में स्वतंत्र रूप से घूम रहा है, ठीक वैसे ही जैसे एआई आधारित रोबोट कारखानों की असेंबली लाइनों और रेस्तरां की टेबलों के बीच घूम रहे हैं। इस प्रकार वे 60% उन नौकरियों को हड़प रहे हैं, जो कभी मनुष्य करते थे। किसी को अपनी सॉफ्ट स्किल्स सीवी में लिखने की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन वह उन्हें अपने हायरिंग मैनेजर के सामने प्रदर्शित कर सकता है।

लोग अपनी हार्ड स्किल (विषय का ज्ञान) के आधार पर नौकरी तो पा सकते हैं, लेकिन अच्छे प्रोजेक्ट और प्रमोशन सॉफ्ट स्किल्स से ही मिलते हैं। विद्यार्थियों को मेरी सलाह है कि वे अपने ग्रेजुएशन के दिनों में सेकंड हाफ की कक्षाओं में जरूर शामिल हों, जिनमें सॉफ्ट स्किल्स सिखाई जाती हैं।

फंडा यह है कि एआई की प्रमुखता वाले जॉब मार्केट में सॉफ्ट स्किल्स मायने रखती हैं। स्नातक पाठ्यक्रम में इन्हें सीखने से चूकें नहीं। कॉलेज के सेकंड हाफ में इन्हें सीखें। ऐसे ही आप मशीनों की सत्ता वाले सिकुड़ते जॉब मार्केट में पैर जमा सकते हैं।

खबरें और भी हैं…

Source link

Check Also
Close



DEWATOGEL