N. Raghuraman’s column – What to do when children start giving importance to comfort instead of hard work? | एन. रघुरामन का कॉलम: जब बच्चे मेहनत के बजाय आराम को महत्व देने लगें, तो क्या करें?

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6 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
उत्तर प्रदेश में 60,244 कांस्टेबलों की नियुक्ति के लिए अब तक के सबसे बड़े भर्ती अभियान के दौरान सरकारी नौकरी पाने की कठिनाइयों से गुजरने के बाद 3568 से अधिक चयनित उम्मीदवारों ने शुरुआत में ही नौकरी छोड़ दी। दिलचस्प यह है कि इनमें से अधिकांश ने नियुक्ति के पहले कठोर प्रशिक्षण को नौकरी छोड़ने का कारण बताया।
कुछ ने तो साफ कहा कि वे सुबह 5 बजे उठकर एक्सरसाइज के लिए मैदान पर नहीं पहुंच सकते। कल्पना कीजिए कि इन बच्चों ने प्रतियोगी परीक्षा में बैठे 50 लाख लोगों में से अंतिम 60 हजार में चयनित होने पर खुद को भाग्यशाली तक नहीं समझा, बल्कि दुर्भाग्यवश सुबह जल्दी उठने की परेशानी को नौकरी छोड़ने का कारण बता दिया।
सच में, मैं नहीं जानता कि उनके माता-पिता उन्हें कैसे समझा पाए होंगे, लेकिन मुझे मध्यप्रदेश के उज्जैन निवासी 54 वर्षीय समरजीत सिंह साहनी की कहानी याद आती है, जो ऐसे ही एक वाकये के बाद खुद विद्यार्थी बने और ग्रेजुएशन पूरी की। अब वे वकील बनने के लिए एलएलबी कर रहे हैं।
साहनी के लिए अपने व्यापार और शिक्षा के बीच तालमेल बैठाना आसान नहीं था, लेकिन वो ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उनका बेटा मीत मुम्बई के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला पाने के बावजूद वापस उज्जैन लौट आया। वह मुम्बई में विद्यार्थियों वाली दिनचर्या को नहीं अपना सका।
मुम्बई की तेज रफ्तार जिंदगी में खुद को नहीं ढाल पाया। वह इस हद तक आराम का आदी था कि उसकी मां हर चीज उसे कमरे में देने आती थीं। आराम का स्तर यह था कि जैसे ही वह आवाज लगाता- “मम्मा, मुझे चाय चाहिए’, उसकी मां तुरंत चाय लेकर आ जाती। ऐसा सुनहरा अवसर गंवाने पर अपने बेटे को सजा देने या डांटने के बजाय साहनी ने खुद छात्र बनकर अपनी जिंदगी का अधूरा सपना पूरा करने का फैसला किया।
वर्षों पहले, केरोसिन वितरण का व्यवसाय करने वाले अपने माता-पिता की एक दुर्घटना में मृत्यु के बाद साहनी ने पढ़ाई छोड़ दी थी। 12वीं कक्षा के विद्यार्थी साहनी 1991 में जब 18 साल के हुए तो उनके पिता का केरोसिन वितरण व्यवसाय उनके नाम पर स्थानांतरित हो गया। तब तक परिवार का कोई अन्य सदस्य इसे संभाल रहा था।
साहनी की पढ़ाई छुड़वाने का निर्णय परिवार ने स्वेच्छा से लिया था, क्योंकि उनके बड़े भाई को इंजीनियरिंग में दाखिला मिल गया था और उस वक्त इंजीनियरिंग में दाखिला मिलना अपने आप में गर्व का विषय था। स्कूल छोड़ चुके साहनी परिवार के भरण-पोषण के लिए पिता का व्यवसाय चलाने लगे। धीरे-धीरे जब केरोसिन अप्रचलित हुआ तो व्यवसाय प्रॉपर्टी बिजनेस में बदल गया।
उनका बेटा मीत खेल में करियर बनाना चाहता था। पहले भारी फीस चुकाकर उसे दिल्ली की एक स्पोर्ट्स अकादमी में दाखिला मिला। लेकिन वह वहां की दिनचर्या में नहीं ढल पाया और उसे अकादमी छोड़नी पड़ी। जयपुर की खेल अकादमी में भी वही समस्या आई और उसे वहां से भी छोड़ना पड़ा। तब साहनी को सही उम्र में शिक्षा पूरी करने का महत्व समझ आया, जिसे वो 1990 के दशक में छोड़ चुके थे।
शिक्षा का महत्व बताने के लिए साहनी ने बीए में दाखिला लिया और अपने बेटे को उसकी पसंद का ग्रेजुएशन कोर्स करने के लिए मुंबई भेजा। लेकिन मुंबई में भी वही कहानी दोहराई गई, क्योंकि मीत परिवार के सहारे के बिना स्वतंत्र जीवन नहीं जी पाया।
वह उज्जैन लौट आया और उसका ग्रेजुएशन का एक कीमती साल खराब हो गया। इस बीच, पिता ने 2024 में ग्रेजुएशन पूरी की और एलएलबी में दाखिला लिया, जिसे वे 2026 में पूरा करेंगे। पिता को अपने पोस्ट ग्रेजुएशन के साथ व्यवसाय में इतना तल्लीन देखकर बेटे ने न केवल पढ़ाई में रुचि ली बल्कि खुद का एक स्टार्टअप भी खड़ा किया।
फंडा यह है कि बच्चे शुरुआत में कई चीजें आजमाते हैं और उनमें से कुछ में विफल भी होते हैं। लेकिन यह आप पर निर्भर करता है कि आप उन्हें कैसे प्रोत्साहित करते हैं, ताकि वे फिर से कड़ी मेहनत की ओर लौटें।
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