Wednesday 08/ 10/ 2025 

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Vijay Shankar Mehta’s column – If nature gets angry, we will have to pay a heavy price for independence | विजयशंकर मेहता का कॉलम: प्रकृति रूठी तो स्वतंत्र होने की बड़ी कीमत चुकानी होगी

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37 मिनट पहले

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विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar

विजयशंकर मेहता

जब हम अपनी स्वतंत्रता का उत्सव मना रहे होते हैं तब प्रकृति अपनी स्वतंत्रता की मांग कर रही होती है। मनुष्य को गुलामी पसंद नहीं, लेकिन वो प्रकृति को गुलाम बना रहा है। स्वबोध का अनुभव ही स्वतंत्रता है। हमने मनुष्यों की गुलामी को तो समाप्त कर दिया, पर मानसिक गुलामी रह गई।

आज हम सब कहीं ना कहीं डरे हुए हैं। अगर इस मौसम की बात करें तो पानी से। कहीं ना आने का डर, कहीं अधिक आने का डर। जमीन को ज्वर आ गया है। आसमान अशांत हो गया है। और लगातार प्राकृतिक विपदाओं की खबरें मिलती हैं, क्योंकि प्रकृति भी स्वतंत्रता चाहती है।

हमारा देश जिस तरह से विकास कर रहा है, कई ईर्ष्यालु मुल्क हमें घेरे खड़े हैं। हमारे विरोधी और प्रतिस्पर्धी देशों से तो हम निपट लेंगे, लेकिन प्रकृति से कैसे निपटेंगे? उसकी स्वतंत्रता को लेकर हम अत्यधिक गंभीर रहें, उसका सम्मान करें।

जब भी स्वतंत्रता दिवस मनाएं तो यह विचार प्रत्येक भारतीय को करना चाहिए कि मैं अपने तईं प्रकृति का मान करूंगा। अगर प्रकृति रूठी रही तो मनुष्य को अपने स्वतंत्र होने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।

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