Monday 25/ 08/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – In the future, everyone’s phone will have ‘home-made’ apps | एन. रघुरामन का कॉलम: भविष्य में हर किसी के फोन में ‘होम-मेड’ एप्स होंगे

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1 घंटे पहले

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एन. रघुरामन मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन मैनेजमेंट गुरु

दो साल की एक बच्ची ने तकिए के पास रखा दादी का फोन उठाया। दादी ने पूछा, ‘तुम किसे कॉल करना चाहती हो।’ बच्ची ने पूरे परिवार की तस्वीर देखी और मां की तस्वीर चुनी। सहजता से तस्वीर पर टैप किया, उधर फोन में घंटी बजने लगी।

आ​इए, आपका एक नए इंटरफेस में स्वागत है। फेसटाइम के विपरीत, इसमें आप गलती से भी किसी गलत आदमी को कॉल नहीं कर सकते। इस ऐप का नाम है ‘बेबीटाइम’। जब से इस ऐप को फैमिली ग्रुप से जोड़ा गया था, तब से उस बड़े परिवार के किसी बच्चे ने-जिससे वो बात करना चाहे– उसके अलावा अन्य किसी को कॉल करने की गलती नहीं की।

आप सोच रहे हैं कि यह ऐप किस स्टोर पर उपलब्ध है? यह ऐप ऐसे किसी स्टोर पर नहीं मिलेगा, जहां से आप इसे डाउनलोड कर सकें। क्योंकि इसे उस परिवार के दो सदस्यों द्वारा सिर्फ उसी परिवार के एक्सक्लूसिव उपयोग के लिए बनाया है। और इसे बनाने में महज आधा दिन ही लगा।

इसके लिए उन्होंने फोटोज और फोन नंबर सीधे ऐप में डाल कर कॉन्टेक्ट लिस्ट को ‘हार्ड-कोड’ किया है। उस परिवार में 3-4 वर्ष के कई बच्चे इस ऐप के स​क्रिय यूजर्स हैं। हार्ड-कोडिंग ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें डेटा को सीधे प्रोग्राम के सोर्स कोड के साथ गहराई से जोड़ दिया जाता है।

उत्तरप्रदेश में जौनपुर के अमित सिंह से पूछिए, जो सुरक्षा सेवाएं मुहैया कराते हैं और एयरपोर्ट जैसे संवेदनशील प्रतिष्ठानों पर 90 हजार लोगों के विशाल कर्मचारी–बल को संभालते हैं। उनका 15 साल का बेटा महज 30 मिनट में कोड बना लेता है। सोच रहे हैं ​कि कैसे? आप भी यह कर सकते हैं।

जाइए और क्लाउड या एंथ्रोपिक के मुफ्त एआई चैटबॉट से जनरेट किया गया कोड कॉपी-पेस्ट कर लीजिए। ये साधारण अंग्रेजी को जल्दी से उपयोग हो सकने वाले कोड में बदल देते हैं। हालांकि, इसे कंपाइल और डिप्लॉय आपको स्वयं ही करना होगा। ‘कर्सर’ जैसे एआई संचालित एडिटर हैं, जो सॉफ्टवेयर इंजीनियरों के लिए ऑटो-कम्प्लीट कार्य करते हैं।

आप महज कहिए कि ‘मेरे द्वारा हर महीने देखी गई नई फिल्मों को प्रदर्शित करने के लिए एक वेबसाइट बना दो’, और कुछ ही मिनटों में एक क्रियाशील वेबसाइट और उसका यूआरएल आपको मिल जाएगा। कोई और नहीं, बल्कि एआई रिसर्चर आंद्रेज करपथी ने इस तरीके को ‘वाइव—कोडिंग’ नाम दिया, जो ओपन एआई के संस्थापक दल में शामिल थे और टेस्ला में एआई का नेतृत्व कर चुके हैं। हाल ही उन्होंने ‘X’ पर लिखा कि मैं शायद ही कभी की–बोर्ड को छूता हूं।

कल्पना कीजिए कि आपने इस मानसून में विशाल पौधारोपण किया। और समय के साथ यह भूल गए कि आपने कितने पौधे लगाए। तो चिंतित ना हों, किसी ऐसे व्यक्ति से संपर्क करें, जो भले ही सॉफ्टवेयर इंजीनियर न हो- लेकिन एआई कोडिंग टूल्स जानता हो, तो आधे दिन में ही एक वेबसाइट बन सकती है।

यह टूल आपको सटीक संख्या बता सकता है और हर उस काम को ट्रैक कर ​सकता है, जो आपने उस इलाके में किए हैं। कोडिंग टूल्स के क्षेत्र में हो रहा सबसे महत्वपूर्ण विकास यह है कि कल तक बेहद ​जटिल माने जा रहे सॉफ्टवेयर को एआई उस बड़ी आबादी तक पहुंचा रहा है, जिसके पास कंप्यूटर साइंस की डिग्री नहीं है।

लेखक-प्रोग्रामर रॉबिन सैलन कहते हैं, ‘एआई संभवत: अधिक से अधिक लोगों को ‘होम-कुक’ की तरह प्रोग्रामिंग में सक्षम बनाएगा, जो ‘फास्ट-फूड’ की तरह औद्योगिक पैमाने पर बनाए जा रहे सामान्य ऐप पर निर्भर ना रहकर खुद के घर-परिवार के लिए अपने ऐप्स बनाएंगे।

ऐसे में वो दिन दूर नहीं, जब आपकी स्क्रीन मेरे मोबाइल की स्क्रीन से अलग होगी। क्योंकि आपके फोन में कई ऐप्स जरूरत के हिसाब से बने होंगे, जबकि मेरे में नहीं। और एक दिन ये ‘होम-मेड ऐप्स’ उन बड़ी टेक कंपनियों के ऐप्स को चुनौती देना शुरू कर देंगे, जो कहती हैं– ‘एक ही पैमाना, सभी के लिए फिट है।

’फंडा यह है कि हम सभी एक ऐसे नए ‘वायर्ड वर्ल्ड’ में प्रवेश कर रहे हैं, जहां हम सभी दशकों से इन इंडस्ट्रीज के बनाए ऐप्स इस्तेमाल करते आ रहे हैं। ऐसा कुछ भी नहीं, जो कभी हमने बनाया हो। हमारे बच्चे ऐसा करने के लिए तैयार हैं। इस पर गर्व करें।

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