Shashi Tharoor’s column – Maintaining balance in international relations has been our strength | शशि थरूर का कॉलम: अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों में संतुलन साधना ही हमारी ताकत रही है

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5 घंटे पहले
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शशि थरूर पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद
वैश्विक कूटनीति के रंगमंच पर भारत ने लंबे समय से एक सधा हुआ संतुलन साधने में दक्षता हासिल की है- सिद्धांत रूप में गुटनिरपेक्ष, व्यवहार में व्यावहारिक। आज जैसे-जैसे भू-राजनीतिक तनाव बढ़ रहे हैं, निष्ठाएं बदल रही हैं और विश्व-व्यवस्था बिखर रही है, भारत एक बार फिर अपनी स्थिति को सुधारने के लिए बढ़ते दबाव का सामना कर रहा है।
अमेरिका से हमारे संबंध विशेष रूप से तनावपूर्ण हो गए हैं। ट्रम्प टैरिफ के व्यापक आर्थिक परिणाम होंगे, क्योंकि पिछले साल भारत के कुल निर्यात में अमेरिका का योगदान 18% था। लेकिन यह केवल एक व्यापारिक मुद्दा भर नहीं है।
अमेरिका और भारत एक चौथाई सदी से भी अधिक समय से अपने रणनीतिक संबंधों को गहरा कर रहे थे और अमेरिका उभरते भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी प्रभाव के एक महत्वपूर्ण प्रतिकार के रूप में देखता आता रहा है। लेकिन नए टैरिफ इस बात की याद दिलाते हैं कि मजबूत साझेदारियां भी किसी नेता की सनक के आगे झुक सकती हैं।
पाकिस्तान के साथ अमेरिका की गलबहियां रणनीतिक रूप से और परेशान करने वाली हैं। अमेरिका के दीर्घकालिक आर्थिक, तकनीकी और सामरिक हित अभी भी भारत के साथ जुड़े हैं। इन हालात में चीन का पाकिस्तान को समर्थन भारतीय सुरक्षा के लिए जोखिम को बढ़ाता है।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने पाकिस्तान को सैन्य और राजनयिक समर्थन की पेशकश की थी। वह पाकिस्तान को सैन्य उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता भी है और उनमें वे हथियार भी शामिल हैं, जिनका इस्तेमाल पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ किया है।
इसके अलावा चीन की बेल्ट एंड रोड पहल की सबसे बड़ी परियोजना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा है, जो दक्षिण-पश्चिमी पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह पर केंद्रित है। चीन-पाकिस्तान धुरी अब महज एक सामरिक गठबंधन नहीं; रणनीतिक समझौता भी है। यह भारत से व्यापक प्रतिक्रिया की मांग करता है, जिसमें घरेलू आर्थिक लचीलापन, सैन्य तैयारी और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में कूटनीतिक पहुंच शामिल है।
इस सबके बीच, रूस के साथ भारत की साझेदारी मजबूत साबित हुई है। शीत युद्ध के गुटनिरपेक्षता के दौर में गढ़े गए इस द्विपक्षीय संबंध का आधार दोनों देश की रणनीतिक स्वायत्तता के प्रति साझा सम्मान है। हालांकि दोनों देश हर बात पर सहमत नहीं हैं, फिर भी भारत रूस से महत्वपूर्ण रक्षा उपकरण प्राप्त करता है और पुतिन इस वर्ष के अंत में भारत यात्रा पर आने वाले हैं। लेकिन यहां भी चिंता का एक कारण है। जैसे-जैसे रूस चीन पर अधिकाधिक निर्भर होता जा रहा है, रूस के साथ भारत की साझेदारी को भी क्षति पहुंच सकती है।
बढ़ते भू-राजनीतिक जोखिमों के इस दौर में भारत अपनी अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों में विविधता ला रहा है। यूरोप अपनी आपूर्ति शृंखलाओं के पुनर्गठन की कोशिश कर रहा है, ऐसे में भारत ने यूके से मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत करने और ईयू के साथ सुस्त हो चुकी व्यापार वार्ता को फिर गति देने का अवसर देखा था।
फ्रांस और जर्मनी जैसे देश चीन के लोकतांत्रिक विकल्प के रूप में भारत को अपनाने के लिए उत्सुक हैं। भारत अफ्रीका के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को भी पुनर्जीवित कर रहा है। जहां चीन ने लंबे समय से इस महाद्वीप के प्रति शोषणकारी दृष्टिकोण अपनाया है, वहीं भारत पारस्परिक रूप से लाभकारी साझेदारियों को बढ़ाने के लिए काम कर रहा है, जिनमें स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और डिजिटल बुनियादी ढांचे में भारतीय निवेश का विस्तार करना भी शामिल है।
खाड़ी क्षेत्र में 80 लाख से ज्यादा भारतीय रहते और काम करते हैं, और उनके द्वारा भेजी जाने वाली धनराशि उनके परिवारों के लिए आर्थिक जीवनरेखा का काम करती है। आज खाड़ी देश तेल के कारोबार के अलावा भी अपने आयामों में विविधता लाने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसे में भारत के पास उन्हें देने के लिए बहुत कुछ है : तकनीक, प्रतिभाएं और व्यापार। यूएई से भारत का व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता और साथ ही सऊदी अरब से उसका बढ़ता रक्षा सहयोग रणनीतिक गहराई की ओर बदलाव का संकेत देता है।
एशिया में भारत को निश्चित रूप से शिंजो आबे के नेतृत्व की कमी खल रही है, जिन्होंने जापान से पहले से ही हमारे घनिष्ठ संबंधों को और गहरा करने का प्रयास किया था। लेकिन भारत की वास्तविक ताकत उसकी रणनीतिक चपलता में निहित है। कठोर गठबंधनों से बंधे रहने के बजाय हम अपने हितों से संचालित होते हैं। बदलते परिदृश्य में भी हमें समावेशी, नियम-आधारित और लोकतांत्रिक विश्व-व्यवस्था के दृष्टिकोण का समर्थन करते रहना होगा।
हम अमेरिका से प्रौद्योगिकी, रूस से ऊर्जा और हथियार, यूरोप से व्यापार और जलवायु और अफ्रीका और खाड़ी के साथ विकास और प्रवासी समुदायों के मुद्दों पर बातचीत करते हैं। ऐसी नपी-तुली जटिलताएं स्पष्टता की मांग करती हैं। (© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)
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