N. Raghuraman’s column – Why should children spend some time with their grandparents? | एन. रघुरामन का कॉलम: क्यों बच्चों को कुछ समय ग्रैंड-पैरेंट्स के साथ बिताना चाहिए?

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11 मिनट पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
मुझे याद है कि नाना के घर में मुझे पहला सदमा तब लगा, जब मुझे सुबह के ड्रिंक के तौर पर मेरा पसंदीदा हॉर्लिक्स नहीं मिला। उन दिनों यह न केवल सुबह का एनर्जाइजर था, बल्कि रात को भी सोने से पहले आराम देने वाला और बुजुर्गों व बीमारों के लिए भी एक ड्रिंक था। इसकी कीमत 20 रुपए से कम होने के बावजूद मेरे नाना- जो आठ बच्चों के पिता थे, अपने पहले नाती के लिए यह ड्रिंक नहीं खरीद सकते थे।
इसलिए मैंने अपना दिन रागी से बनाई गई ‘कांजी’ से शुरू किया, जो सर्दियों में सेहतमंद मानी जाती है। और बहुत तेज गर्मी में ‘पयया सादम’ मिलता था, जो रात भर भिगोए गए चावलों को दही के साथ मिला कर बनता था। नाना के घर में स्पष्ट नियम था कि कांजी या पयया सादम के बाद फिर भोजन सुबह 11 बजे ही मिलेगा।
वहां चाय या कॉफी जैसी कोई चीज नहीं मिलती थी। हफ्ते में एक बार नानी कुछ नाश्ता बनाती थीं, जिसे छिपाकर रखा जाता था और अच्छे व्यवहार के इनाम के तौर पर दिया जाता था। पूजाघर और बरामदे में बत्ती जलने पर रात का खाना होता था।
रसोई शाम 7:30 बजे के बाद बंद हो जाती थी। शुरुआत में ‘चारपाई’ पर सोना और ममेरे भाइयों के साथ तकिया शेयर करना मेरे लिए मुश्किल था, लेकिन समय के साथ इसकी आदत हो गई। बाद में तो मुझे तकिया अपनी ओर खींचना मजेदार लगने लगा।
इन चुनिंदा भोजनों के बीच हमेशा कड़ी मेहनत होती थी। बैकयार्ड साफ करने में नानाजी की मदद करना। तोड़े गए नारियलों को स्टोर रूम तक ले जाना। साफ करने के बाद उनके खोल वापस लाना। फिर बॉयलर रूम में लौटना, जहां नहाने का गर्म पानी होता था। और भी ऐसे कई काम जो शहरी जीवन में कभी नहीं किए जाते थे।
लेकिन यकीन मानिए, इन अनुभवों ने ना केवल मुझे कई ऐसी स्किल्स सिखाईं, जो शायद ही बच्चों को सिखाई जाती हैं, बल्कि खुद का काम स्वयं करने के महत्व को भी बताया। शुरुआती असुविधाएं नाना–नानी के दुलार में धीरे-धीरे गायब हो गईं। नाना की कहानियां और नानी का चिपका कर सुलाना बेहद सुखद समय था, जैसे कोई बच्चा अपनी मां के पास सोता है।
कई दशक पुराने बचपन के ये अनुभव मुझे तब याद आए, जब मैंने सुना कि अभिनेत्री श्रीलीला की बचपन की सबसे प्यारी यादें अपने नाना–नानी से जुड़ी हुई हैं। वह निर्देशक अनुराग बसु की फिल्म से हिन्दी सिनेमा में डेब्यू कर रही हैं, जिसमें कार्तिक आर्यन भी हैं। पहले इस प्रोजेक्ट को आशिकी–3 कहा जा रहा था।
इसके अलावा, जैसा कि बॉलीवुड गपशप में कहा जा रहा है कि इब्राहिम खान और वरुण धवन के साथ भी उनका दूसरा बॉलीवुड प्रोजेक्ट शुरू होने की संभावना है। अपने नाना, 80 वर्षीय नागेश्वर राव निदामनूरी के साथ बिताए बचपन के गर्मियों के दिन श्रीलीला के लिए कई सबकों और आनंद से भरपूर थे।
वह उन्हें पढ़ने के लिए रेन एंड मार्टिन इंग्लिश ग्रामर बुक देते थे। वे उन्हें ग्रामीण केन्द्र पर ले जाकर स्थानीय बच्चों को पढ़ाने का ग्रीष्मकालीन कार्य सौंपते थे। श्री लीला और उनके कजिन सभी को एक पेड़ के नीचे इकट्ठा कर छोटी-सी पंचायत बनाते थे, जो गर्मियां बिताने का यादगार तरीका था।
एकल परिवारों के इस दौर में सर्दी–गर्मी की छुट्टियों में नाना-नानी के घर जाना मुश्किल होता जा रहा है। पैसे खर्च करने की बेहतर क्षमता के कारण माता-पिता अपने बच्चों को नाना-नानी के घर के बजाय दुनिया की अलग–अलग जगहों पर ले जा रहे हैं।
यकीनन, मैं नाना–नानी के बच्चों के पास आकर रहने की बात नहीं कर रहा हूं। मैं कह रहा हूं कि बच्चे नाना–नानी के यहां जाकर उस पुराने घर में रहें, जहां माता-पिता के घर की तुलना में सुविधाएं कम होती हैं। यही वो जगह है, जहां से सीख मिलती है।
फंडा यह है कि आने वाले त्योहारी सीजन की छुट्टियों में अपने बच्चों को उनके नाना-नानी के घर भेजें और देखें कि वे अपने शहरी जीवन में कितने समझदार होकर लौटते हैं।
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