Ruchir Sharma’s column: We can’t increase growth by reducing manufacturing. | रुचिर शर्मा का कॉलम: मैन्युफैक्चरिंग को घटाकर विकास नहीं बढ़ा सकते हैं

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6 घंटे पहले
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रुचिर शर्मा ग्लोबल इन्वेस्टर व बेस्टसेलिंग राइटर
जकार्ता में हो रहे विरोध-प्रदर्शनों ने एक आर्थिक सितारे के आसमान से गिरने के कारणों पर सवाल खड़े किए हैं। यह सिर्फ इंडोनेशिया की बात नहीं। दक्षिण-पूर्व एशिया- जिसमें थाईलैंड, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम शामिल हैं- कई लुप्त होते सितारों का क्षेत्र है।
कभी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं का केंद्र रहा यह क्षेत्र हाल में आर्थिक विकास की तेजी से घटती उम्मीदों का घर बन गया है। 2010 के बाद के दशक में दक्षिण-पूर्व एशिया के शेयर बाजारों ने उभरते हुए देशों के किसी भी क्षेत्र की तुलना में सबसे अच्छा रिटर्न दिया था। लेकिन पिछले एक साल में किसी भी क्षेत्र की तुलना में इनका रिटर्न सबसे खराब रहा है।
पश्चिम के साथ भू-राजनीतिक तनाव, ज्यादा दखल देने वाली हुकूमत और बढ़ती लागतों के डर से जैसे-जैसे वैश्विक निर्माताओं ने चीन से उत्पादन हटाना शुरू किए थे, दक्षिण-पूर्व एशिया को इससे सबसे ज्यादा फायदा होने की सम्भावना दिख रही थी।
इस क्षेत्र के कई देशों के पास पहले से ही मैन्युफैक्चरिंग का एक मजबूत आधार था, जिस पर वे आगे बढ़ सकते थे। लेकिन निवेश में बदलाव पर कोई खास असर नहीं दिखा। इसके बजाय, चीन ने अपने सरप्लस उत्पादन का निर्यात दक्षिण-पूर्व एशिया में करना शुरू कर दिया- किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में ज्यादा- जिससे इन देशों के लिए अपने घरेलू बाजारों में भी हिस्सेदारी बनाए रखना मुश्किल हो गया।
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में सबसे लचीला वियतनाम रहा है। चीन की डंपिंग और अमेरिकी टैरिफ के दबाव का मुकाबला करने के लिए इसने निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने और सरकारी कम्पनियों को सुव्यवस्थित करने के लिए घरेलू सुधारों को आगे बढ़ाया।
इसके बाद मलेशिया का नंबर आता है, जिसने अपने फायदों को बढ़ाने के लिए- खासकर डेटा सेंटरों के क्षेत्र में- कुछ कदम जरूर उठाए। इस बीच राजनीतिक उथल-पुथल में फंसे थाईलैंड ने अपने स्थिर मैन्युफैक्चरिंग-बेस को बचाने के लिए कुछ खास नहीं किया है। और इंडोनेशिया अपने नए राष्ट्रपति प्रबोवो के नेतृत्व में सच्चाई से मुंह फेरने की स्थिति में चला गया है।
ऐसे में क्या आश्चर्य कि जिस देश ने हालात का बेहतर सामना किया, उसने सबसे अच्छे नतीजे भी दिए। वियतनाम एकमात्र दक्षिण-पूर्व एशियाई शेयर बाजार है, जो अभी भी मजबूत रिटर्न दे रहा है; वहीं इंडोनेशिया का शेयर बाजार सबसे ज्यादा गिरा है।
चीन के कारण इस पूरे क्षेत्र- खासकर इंडोनेशिया में मैन्युफैक्चरिंग कमजोर हो रही है, जिससे शहरी मजदूर फिर से ग्रामीण इलाकों की ओर लौट रहे हैं। खपत कमजोर हो रही है। पिछले दशक में कारों की बिक्री में तेजी से गिरावट आई है और अब यह मलेशिया- जिसकी आबादी इंडोनेशिया के आठवें हिस्से के बराबर है- से भी कम है। निवेश और निर्माण क्षेत्र धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं, इसलिए सीमेंट की बिक्री गिर रही है। प्रबोवो द्वारा उठाए कदम हालात को और बदतर बना रहे हैं।
वे इंडोनेशिया की विकास दर को 8 प्रतिशत तक बढ़ाने की बात करते हैं। एशियाई निर्यात चमत्कारों के अलावा किसी अर्थव्यवस्था ने शायद ही इतनी विकास दर को कभी बनाए रखा हो, और 2000 के दशक के बाद से तो ऐसा किसी भी देश ने नहीं किया।
अच्छी नौकरियां पैदा करने के लिए निवेश करने के बजाय उन्होंने कल्याणकारी कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया है, जिसमें आत्मनिर्भर ग्रामीण सहकारी समितियों के लिए समर्थन भी शामिल है। यह औद्योगीकरण-विरोधी ट्रेंड्स को और बढ़ावा देगा।
18वीं सदी की कृषि संबंधी रूमानियत की यह अंतर्निहित भावना एक ऐसे नेता की छवि को पुष्ट करती है, जिसका यथार्थ से संपर्क कटता जा रहा है। हाल ही की अपनी जकार्ता यात्रा के दौरान अंदरूनी सूत्रों ने मुझे बताया कि प्रबोवो ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं, जो उन्हें वही बताते हैं, जो वे सुनना चाहते हैं।
जब बड़ी संख्या में रोजगार पैदा करने वाला मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर कारखानों में बढ़ते ऑटोमेशन से सिकुड़ता जा रहा हो, तो विकास कैसे करें? दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के अधिकांश देश इसका उत्तर खोजने के पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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