Sunday 05/ 10/ 2025 

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क्या भारतीय नागरिकों की युद्ध में जबरन भर्ती से फंस जाएगा रूस, क्यों है यह मानव तस्करी? – indian nationals tricked russia ukraine war international law ntcpmj

उत्तराखंड का एक युवक पढ़ने के लिए रूस गया था लेकिन अब वो यूक्रेन के खिलाफ चल रही जंग में रूस की तरफ से शामिल है, वो भी जबरन. ये अकेला मामला नहीं. लगातार ऐसे केस आ रहे हैं, जहां भारतीय नागरिकों ने दावा किया कि वे अच्छी नौकरी का झांसा देकर रूस भेजे गए और वहां से उन्हें लड़ाई के मैदान में भेज दिया गया. बहुतों ने पासपोर्ट जब्त होने की भी शिकायत की. इंटरनेशनल नियम-कायदे देखें तो यह मानव तस्करी है. फिर क्यों रूस या ऐसा करने वाला कोई भी देश सजा से बचा हुआ है?

रूसी सेना में अभी कितने भारतीय

इसपर कोई पक्का डेटा नहीं मिलता. दरअसल जबरन भर्ती के मामलों पर भारत सरकार ने एतराज जताया. इसके बाद पिछले अगस्त में रूसी एंबेसी ने बयान दिया कि उनकी सेना में भारतीयों की भर्ती नहीं हो रही. एंबेसी ने यह तक कहा कि वे उनके और यूक्रेन के बीच सैंडविच हो रहे भारतीय नागरिकों को भेजने पर काम कर रही है. वहीं राज्य सभी में डेटा दिया गया कि इस साल जुलाई तक रूस की आर्मी में 127 भारतीय फंसे हुए थे. 

लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई. अब भी अवैध भर्तियां हो रही हैं. उत्तराखंड के मामले से यह साफ हो गया. यहां तक भारत सरकार को एडवायजरी जारी करनी पड़ी कि रूस में जॉब के नाम पर भर्ती जैसे एड निकलें तो तहकीकात कर लें. 

कैसे फंसाए गए आम नागरिक

रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय युवाओं को एजेंट्स ने विदेश में अच्छे  पैकेज का लालच दिया. किसी को होटल मैनेजमेंट, किसी को सिक्योरिटी में और किसी को हेल्पर की नौकरी का वादा किया गया. वीजा और टिकट भी एजेंट्स ने ही अरेंज किए. किसी को शक न हो, इसके लिए एजेंट परिवारों से पैसे भी लेते रहे. लेकिन वहां पहुंचते ही पासपोर्ट जब्त कर लिए गए और हथियार चलाने की बहुत बेसिक ट्रेनिंग के बाद उन्हें लड़ाई के मैदान में भेज दिया गया. 

russia ukraine war (Photo- AP)
रूस-यूक्रेन जंग में यूक्रेन की बड़ी आबादी विस्थापित हो चुकी.  (Photo- AP)

यहां मानव तस्करी का एंगल कहां से आया

ट्रिक करके सीमा पार ले जाना और वहां जाने पर दस्तावेज जब्त कर लेना- ये दोनों ही ह्यूमन ट्रैफिकिंग के तहत आता है. इसके अलावा उन्हें सीधे एक्सट्रीम खतरे की जगह पर भेजा जा रहा है, वो भी उनके अनचाहे. 

यूनाइटेड नेशन्स ने ढाई दशक पहले पालर्मो प्रोटोकॉल पास किया था. इसके तहत मानव तस्करी की परिभाषा साफ है, अगर किसी  को धोखे, दबाव, लालच या धमकी देकर उसकी मर्जी के खिलाफ ऐसी जगह ले जाया जाए जहां उसका शोषण हो, तो यह ट्रैफिकिंग है. शोषण कई तरह का हो सकता है, जिसमें यौन शोषण और मजदूरी से लेकर युद्ध में ट्रैप करना भी शामिल है. इस तरह से देखें तो रूस का मामला यही है. 

लेकिन क्या और भी कई देशों के नागरिक रूस युद्ध में शामिल नहीं

कई बार खबरें आ चुकीं कि उत्तर कोरिया से लेकर नेपाल के भी लोग लड़ाई में जा रहे हैं. लेकिन यहां एक फर्क है. अगर कोई विदेशी नागरिक अपनी मर्जी से किसी लड़ाई में शामिल हो और पैसा लेकर लड़े, तो उसे भाड़े का सैनिक कहा जाता है. ये लोग आमतौर पर मर्जी से आते हैं और बदले में पैसे भी मिलते हैं. इंटरनेशनल लॉ में यह गलत तो है लेकिन इसे साबित करना मुश्किल हो जाता है. वहीं अगर कोई धोखे से भर्ती किया जाए और उसके पास कोई विकल्प न बचे, तो यह साफ तौर पर मानव तस्करी है. 

protest against russia amid war (Photo- Pexels)
अमेरिका रूसी राष्ट्रपति के रवैए से एक तरह से हार मान चुका. (Photo- Pexels)

रूस क्या कर सकता है

अगर भारतीय नागरिक एजेंट्स के जाल में फंसे और जंग में भेज दिए गए तो रूस को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए क्योंकि ये उसकी जमीन पर हो रहा है. लेकिन यह तो नैतिक पहलू हो गया, जो मुश्किल से ही संभव है. वो अगर इसे अनदेखा करे तो इसके लिए कई नियम हैं. 

– जेनेवा कन्वेंशन में साफ लिखा है कि युद्ध में नागरिकों को जबरदस्ती शामिल नहीं किया जा सकता.

– अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की धारा के तहत किसी को उसकी मर्जी के खिलाफ काम करने पर मजबूर करना क्राइम है.

– यूएन का प्रोटोकॉल तस्करी में शामिल देश और व्यक्तियों पर कार्रवाई की बात करता है.

– अगर जबरन भर्ती ऑर्गेनाइज्ड तरीके से और बड़े पैमाने पर हो, तो इसे वॉर क्राइम माना जा सकता है, जो कि बेहद गंभीर अपराध है.

तब मुश्किल कहां है

कागज पर भले ही यह मानव तस्करी हो लेकिन सच तो यही है कि बड़ी शक्तियों पर कार्रवाई  लगभग नामुमकिन  है. रूस जैसे देश पर यूएनएससी भी सीधा एक्शन नहीं ले सकता क्योंकि उसके पास वीटो पावर है.

क्या हल निकल सकता है

बातचीत ही इसका अकेला हल है. भारत कूटनीतिक दबाव बनाते हुए मॉस्को से अपने लोगों को सुरक्षित भेजने को कह सकता है. द्विपक्षीय बात ही सबसे प्रैक्टिकल रास्ता है. लेकिन तब भी बात न बने तो इंटरनेशनल कोर्ट भी जा सकते हैं. हालांकि रूस कोर्ट का सदस्य नहीं तो  क्राइम साबित हो भी गया, तब भी उसपर कार्रवाई आसान नहीं होगी.

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