N. Raghuraman’s column – How to avoid ultra-processed ‘phalhari’ food during Navratri fasting? | एन. रघुरामन का कॉलम: नवरात्र के उपवास में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड ‘फलाहारी’ खाने से कैसे बचें?

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12 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
नवरात्र के पहले दिन मैं भी उन सैकड़ों भक्तों में शामिल हो गया, जो इन नौ दिनों तक उपवास करते हैं। सोमवार को कामकाज के लिहाज से कठिन दिन के बाद मेरे सहकर्मी बाजार गए और ड्राई-फ्रूट्स समेत कई खाने की कई चीजें ले आए, जिन पर लिखा था- ‘फलाहारी, विशेष रूप से नवरात्र उपवास के लिए पैक।’ इनमें से अधिकांश चिप्स और मिक्सचर जैसे अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड थे, जिनकी शेल्फ लाइफ लंबी थी।
मैंने मुस्कुरा कर उनसे कहा कि अगर हम अगले नौ दिन तक ये खाते हैं तो यकीन मानों कि हम पेट को आराम नहीं दे पाएंगे। क्योंकि, इनमें प्रिजर्वेटिव्स के तौर पर नमक और चीनी की मात्रा बहुत अधिक होती है। इससे देवों को तपस्या अर्पित करने का मूल उद्देश्य ही नष्ट हो जाता है। लेकिन, उन्होंने तर्क दिया कि वे ‘फलाहारी’ खाते हैं। इससे मुझे व्रत की प्राचीन धारणा को लेकर तो नहीं, लेकिन उन स्नैक्स को लेकर गहराई से विचार को मजबूर किया, जो खुद को ‘ उपवास के लिए उपयुक्त’ भोजन कहते हैं।
“फलाहारी’ शब्द ने मुझे तमिल शब्द ‘पला-आगारम’ की याद दिला दी, जिसमें ‘पला’ का अर्थ है कई और “आगारम’ का अर्थ है भोजन। मैंने देखा है कि मेरे माता-पिता और ग्रैंड पैरेन्ट्स रात के भोजन में हमेशा एक- दो फल और एक गिलास दूध लेते थे। भूखे रह सकने वाले युवाओं को एक डिश दी जाती थी, जैसे दो इडली, डोसा या उपमा- जो उनके अनुसार ‘पला-आगारम’ होता था। उस समय में इसका उद्देश्य था कि पेट को आधा खाली रख कर भजन व प्रार्थनाओं के साथ ईश्वर को याद किया जाए।
हमारे धर्म में ‘तपस्या’ शब्द का उपयोग बहुत उदारता से किया जाता है। यही कारण है कि हम सिर मुंडवाकर अपने सुंदर बालों को तिरुपति बालाजी को दान करते हैं। मीलों तक पैदल चल कर विभिन्न देवताओं की प्रार्थना करने जाते हैं, जैसे पंढरपुर, महाकालेश्वर।
देश के सभी राज्यों में कावड़िए भी अपने भगवान के मंदिर तक पैदल जाते हैं। वे उपवास करते हैं और खुशी-खुशी बगैर चप्पल पहने चलते हैंं, जैसे कि यह उनके प्रिय देवी-देवता की स्तुति करने का उनका तरीका है। और वे इसे बलिदान नहीं मानते।
जैसे-जैसे हम आधुनिक युग में आए, ‘फलाहारी’ खाना एक नया चलन बन गया। रात को सोने से पहले एक गिलास दूध में दो चम्मच चीनी डालकर पीना या उपवास के दौरान तपती दोपहरी में कोई अन्य चीनी युक्त पेय पीना सबसे बड़ी समस्या है। वैज्ञानिक प्रमाण बताते हैं कि ये चीनी युक्त पेय हानिकारक हैं।
हमें यहीं पर रुक जाना चाहिए। एनर्जी ड्रिंक समेत अन्य चीनी युक्त पेय बार-बार पीने से मोटापे का खतरा बढ़ता है। क्या आपको वाकई लगता है कि असंगठित क्षेत्र के बाजार में ‘फलाहारी’ के नाम पर बेची जा रही ये तली हुई अन-ब्रांडेड चीजें बढ़िया खाद्य तेल में तली जाती हैं? मुझे तो नहीं लगता। प्रोसेस्ड खाने में अधिकांश ऐसी सामग्री होती है, जो आम आदमी के रसोईघरों में नहीं मिलती। इनमें अक्सर ऐसे एडिटिव्स होते हैं, जो भोजन के फ्लेवर, रंग और टेक्सचर को बढ़ाते हैं।
हमने खाद्य विशेषज्ञों को कहते सुना है कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों में से अधिकतर जंक फूड की श्रेणी में आते हैं। हाल के एक शोध में पाया गया है कि नरम अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड-जैसे पैकेज्ड स्मूदी, नरम ब्रेड को हम तेजी से खाते हैं। वे कहते हैं कि किसी खाने को 30 मिनट में बना पाने के बजाय ढाई घंटे में बनाने के बहुत फायदे हैं।
विशेषज्ञों की सलाह है कि रेडी टु ईट स्नैक्स और खाना चुनते समय लेबल जांचें। ऐसे उत्पादों का चयन करें, जो प्रति ग्राम 1.5 कैलोरी से कम की श्रेणी में हो। अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड अक्सर कम ऊर्जा देने वाले होते हैं, जिनमें हमारे घर में पके भोजन की तुलना में प्रति ग्राम अधिक कैलोरी होती है।
फंडा यह है कि यदि आप अपने पेट को आराम देने, सेहतमंद रखने का इरादा रखते हैं तो उपवास अच्छा है। लेकिन यदि अपनी जीभ को तरह-तरह के स्वाद देना चाहते हैं तो यह ठीक नहीं।
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