Sunday 05/ 10/ 2025 

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Sanjay Kumar’s column: New parties have a mixed history of electoral success | संजय कुमार का कॉलम: नए दलों की चुनावी सफलता का मिला-जुला इतिहास है

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2 घंटे पहले

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संजय कुमार, प्रोफेसर व राजनीतिक टिप्पणीकार - Dainik Bhaskar

संजय कुमार, प्रोफेसर व राजनीतिक टिप्पणीकार

बिहार में फिलहाल सबसे ज्यादा चर्चा इस बात की है कि प्रशांत किशोर की नवगठित जन स्वराज पार्टी (जेएसपी) चुनाव में कैसा प्रदर्शन करेगी? बिहार के चुनावी मैदान में जेएसपी महज एक नया दल ही नहीं है, बल्कि सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर उसने अपने बुलंद हौसले भी जाहिर कर दिए हैं।

भले ही जेएसपी के प्रति रुझान की खबरें हों, लेकिन फिलहाल यह नहीं कहा जा सकता कि वह चुनाव में कितना दम-खम दिखा पाएगी। देश की राजनीति में पहले भी कई नई पार्टियां विभिन्न राज्यों के चुनावी मैदान में उतरीं, लेकिन इनमें से कई सफल हुईं तो कइयों के हाथ नाकामी ही लगी। कुछ नई पार्टियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया, कुछ का ठीक-ठाक रहा और कई ज्यादा कुछ नहीं कर पाईं।

करीब एक दशक पहले भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से जन्मी आम आदमी पार्टी (आप) 2013 में पहली बार दिल्ली चुनाव में उतरी थी। 30% वोट शेयर के साथ 28 सीटें जीती। बहुमत तो नहीं मिला, लेकिन कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बनाने में सफल हुई। सर्वविदित है कि 2015 और 2020 के चुनाव में उसने बड़ी जीतें हासिल की, लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर हो गई। इस बीच, उसने पंजाब चुनाव में भी बड़ी जीत दर्ज की।

आप ने भले बड़ी सफलता दर्ज की हो, लेकिन सभी नए दलों की किस्मत ऐसी नहीं होती। 2006 में बनी राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने 2009 में पहला विधानसभा चुनाव 143 सीटों पर लड़ा। इनमें से 13 पर जीत दर्ज की। लेकिन बाद के चुनावों में उसकी रंगत तेजी से फीकी पड़ी।

2015 में प्रमोद बोडो की यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) ने अपना कैम्पेन असम के बोडोलैंड क्षेत्र में समावेशी कल्याण पर केंद्रित किया। 2021 के असम विधानसभा चुनाव में यूपीपीएल 8 सीटों पर लड़ी,​ जिनमें से 6 पर जीती। करीब 75% का स्ट्राइक रेट हासिल कर भाजपानीत सत्तारूढ़ गठबंधन का अहम हिस्सा बन गई।

2014 में पवन कल्याण द्वारा बनाई गई जनसेना पार्टी ने 2019 का पहला चुनाव 137 विधानसभा सीटों पर लड़ा और एक ही सीट जीती। लेकिन 2024 के आंध्र प्रदेश विधानसभा चुनाव में उसने टीडीपी और भाजपा से गठबंधन कर ख्याति पाई। 21 सीटों पर मैदान में उतरी पार्टी ने सभी सीटें जीत लीं। इससे एनडीए को जीत मिली और वोट शेयर में इजाफा हुआ।

2021 में त्रिपुरा में लांच किए गए क्षेत्रीय राजनीतिक दल टिपरा मोथा ने 2023 में पहला चुनाव लड़ा था। आदिवासी क्षेत्रों की 13 सीटें जीत कर पार्टी स्थापना के दो वर्षों में ही प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल के तौर पर स्थापित हो गई। पार्टी ने अपना चुनावी अभियान आदिवासी हितों और ग्रेटर टिपरालैंड की मांग पर केंद्रित रखा।

किसान और ग्रामीण मुद्दों को लेकर 2018 में हनुमान बेनीवाल ने राजस्थान में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) का गठन किया। उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में आरएलपी ने 2 प्रतिशत वोट शेयर हासिल करते हुए 200 में से 3 सीटों पर जीत दर्ज की। पार्टी ने ग्रामीण वोटों में पैर जमा लिए।

2022 में गोवा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले गठित रिवॉल्यूशनरी गोअन्स पार्टी उसी साल चुनावी मैदान में उतरी। पार्टी ने सेंट आंद्रे सीट जीती और कई निर्वाचन क्षेत्रों में उल्लेखनीय समर्थन हासिल किया। आरजीपी ने स्थापित दलों के वोट में सेंध लगाकर स्थानीय समीकरण गड़बड़ा दिए और खुद को एक स्वदेशी और दक्षिणपंथी ताकत के तौर पर स्थापित किया। वर्ष 2000 में बिहार में राम विलास पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी स्थापित की। इसने 2005 में कांग्रेस और राजद के साथ गठबंधन में पहला विधानसभा चुनाव लड़ा। 203 में से 29 सीटें जीतकर उल्लेखनीय सफलता हासिल की।

देश की सियासत में नए सियासी दलों के अलग-अलग प्रदर्शन से बमुश्किल ही पता चलता है कि नई पार्टियां अपने पहले चुनावी मुकाबले में कैसा प्रदर्शन करेंगी। ऐसे में यह कहना भी आसान नहीं है कि जेएसपी बिहार में कितना दमखम दिखा पाएगी, लेकिन सभी 243 सीटों पर मैदान में उतरने की उसकी घोषणा इशारा करती है कि पार्टी आश्वस्त है और शायद धरातल पर उसे वैसा समर्थन मिल भी गया है। बहरहाल, अभी सिर्फ अटकलें ही लगाई जा सकती हैं। चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन कैसा रहता है, यह तो परिणाम के बाद ही पता चल पाएगा।

नए राजनीतिक दलों के अलग-अलग प्रदर्शन से बमुश्किल ही पता चल पाता है कि अपने पहले चुनावी मुकाबले में वे कैसा प्रदर्शन करेंगे। ऐसे में यह कहना भी आसान नहीं है कि इस बार जेएसपी बिहार में कितना दमखम दिखा पाएगी। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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