Sunday 05/ 10/ 2025 

N. Raghuraman’s column – Can we celebrate gratitude at least on Sunday? | एन. रघुरामन का कॉलम: क्या हम कम से कम रविवार को कृतज्ञता-पर्व मना सकते हैं?पति-पत्नी और प्रेमी के बीच हो रही थी लड़ाई, सुलह कराने पहुंचा हवलदार तो कर दी पिटाई – husband wife and lover beaten Police Constable Dhanbad news lclyओडिशा, जम्मू-कश्मीर, बिहार समेत देश के 13 राज्यों में बारिश का अलर्ट, अगले कुछ दिनों तक नहीं मिलनेवाली है निजातआजमगढ़ में दुर्वासा ऋषि आश्रम का होगा कायाकल्प, पर्यटकों को मिलेंगी आधुनिक सुविधाएं – Azamgarh Durvasa Rishi Ashram renovated tourists will get modern facilities ntcफर्जीवाड़े में भी मास्टर निकला बाबा चैतन्यानंद सरस्वती, शिकागो यूनिवर्सिटी की MBA की डिग्री फर्जी निकली, यौन शोषण का है आरोपजॉर्जिया में हिंसक हुआ सरकार विरोधी प्रदर्शन, भीड़ ने राष्ट्रपति भवन घेरा… सुरक्षा बलों से हुई झड़प – Anti govt protests turn violent in Georgia crowds gather outside presidential palace clash with security forces ntcगोवा में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेगी आम आदमी पार्टी, साफ किया इनकार, लगाए गंभीर आरोपएक क्लिक में पढ़ें 05 अक्टूबर, रविवार की अहम खबरेंलद्दाख के सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक से जुड़ी बड़ी खबर, पत्नी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में 6 अक्टूबर को होगी सुनवाई‘मलिक फैमिली’ की बहू बनेंगी तान्या मित्तल? जानिए अमाल के पिता डब्बू मलिक ने क्या कहा – Tanya Mittal Part amaal Mallik family Daboo Malik Reaction tmovg
देश

Lt Gen Syed Ata Hasnain’s column: Ensure participation of all sections in talks on Ladakh | लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन का कॉलम: लद्दाख पर बातचीत में हर वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करें

  • Hindi News
  • Opinion
  • Lt Gen Syed Ata Hasnain’s Column: Ensure Participation Of All Sections In Talks On Ladakh

5 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन कश्मीर कोर के पूर्व कमांडर - Dainik Bhaskar

लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन कश्मीर कोर के पूर्व कमांडर

हाल में लद्दाख में हुई घटनाओं ने इस संवेदनशील सीमा-क्षेत्र की विशिष्ट आकांक्षाओं और चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित किया है। ये घटनाएं लद्दाख के मन में मौजूद अपेक्षाओं के आवेग को भी बताती हैं। सकारात्मकता एवं संवाद के जरिए उनका हल मांगती हैं। यहां यह बताना लाजिमी है कि ये विरोध प्रदर्शन भारत के बाहर की घटनाओं से जुड़ाव नहीं रखते, ये लद्दाख की अपनी स्थानीय आकांक्षाओं से पैदा हुए हैं।

दशकों तक लद्दाख जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा रहा था। भौगोलिक अलगाव और अपनी सांस्कृतिक व जातीय विशिष्टताओं के कारण यहां की स्थानीय आवाजें अकसर राज्य के बड़े मसलों में कहीं दब जाती थीं। लद्दाख के कई लोगों ने 2019 में मिले केंद्र शासित प्रदेश के दर्जे का स्वागत भी किया था। लेकिन समय के साथ अपेक्षाएं विकसित हुईं।

विधानसभा के अभाव को लद्दाख की आबादी के कुछ वर्गों ने स्व-शासन की भावना को सीमित करने के तौर पर लिया। हालांकि, केंद्र शासित प्रदेश के दर्जे ने वहां पर प्रशासनिक दृश्यता बढ़ाई, लेकिन कोई विधायी प्राधिकरण नहीं होने से सीमित राजनीतिक स्वायत्तता की भावना भी पैदा हुई। क्षेत्र की आकांक्षाओं और शासन के उपलब्ध ढांचे के बीच अंतर ने ही आंशिक तौर पर आज नजर आ रही कुंठाओं को जन्म दिया।

लद्दाख को लेकर किसी भी संवाद में क्षेत्र की आंतरिक विविधताओं को मान्यता देनी ही होगी। लेह जिले में मुख्य रूप से बौद्ध आबादी है और कारगिल में मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। दोनों की अपनी-अपनी प्राथमिकताएं हैं। दोनों ही अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व और विकास चाहते हैं, लेकिन रास्ते कभी-कभार भिन्न होते हैं।

भारत में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां विविध वर्ग एक साथ सह-अस्तित्व में रहते हैं, लेकिन सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण लद्दाख का मसला विशेष तौर पर संवेदनशील है। कारगिल की उम्मीदें अकसर लेह से अलग होती हैं। चूंकि समुदायों को अपनी उम्मीदों को आवाज देने के लिए एक मंच चाहिए, ऐसे में हो सकता है कि विधानसभा की गैर-मौजूदगी ने इन भिन्न अभिव्यक्तियों को और बढ़ाया हो। लोकतांत्रिक ढांचे में इन्हें नैसर्गिक और वैध माना जाना चाहिए।

चीन और पाकिस्तान से सटा लद्दाख सुरक्षा के लिहाज से देश की सर्वाधिक संवेदनशील जगहों में से एक है। एलएसी पर ‘नो पीस, नो वॉर’ के हालात वाले पूर्वी लद्दाख इलाके में कोई भी आंतरिक अशांति सुरक्षा प्रबंधों की जटिलता पैदा कर सकती है।

इधर नियंत्रण रेखा पर स्थित कारगिल में तो पाकिस्तान से झड़पें चलती ही रही हैं। ऊपरी इलाकों में सियाचिन का कराकोरम पाकिस्तान को ताजा पानी की आपूर्ति का बारहमासी स्रोत है। यह भी कई कारणों से विवाद में है। इसीलिए जरूरी है कि लद्दाखी जनता की आकांक्षाओं पर संवेदनशीलता और दूरदर्शिता के साथ विचार किया जाए। इस क्षेत्र की स्थिरता न केवल स्थानीय प्रशासन, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला भी है। सीमा-क्षेत्र में सौहार्द बनाए रखने के लिए इस आबादी को सुनना, उसका सम्मान करना और मुख्यधारा में शामिल करना महत्वपूर्ण है।

आपस में जुड़ी आज की दुनिया में दूरदराज के इलाके भी संचार प्रौद्योगिकियों और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से सम्बद्ध हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि वैश्विक हलचल और नैरेटिव लद्दाख के युवाओं को भी प्रभावित करेंगे। लेकिन लद्दाख की हालिया अशांति को दुनियाभर में सामने आ रही पीढ़ीगत हलचलों का ही एक असर मान लेना बड़ी भूल होगी।

लद्दाख की समस्याएं उसके अपने इतिहास में निहित हैं। मौजूदा अशांति राजनीतिक सशक्तीकरण, भूमि व संसाधनों की सुरक्षा और निर्णय लेने में महती भूमिका को लेकर लंबे समय से चली आ रही लालसा को दर्शाती है। इस अंतर की पहचान करना ही ऐसी उचित प्रतिक्रिया है, जिसकी अपेक्षा लद्दाख के लोग कर रहे हैं।

आगे बढ़ने का रचनात्मक तरीका बातचीत ही है। लद्दाख के लोगों ने वर्षों से लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भरोसा जताया है। बातचीत के जरिए इसी भरोसे को फिर से स्थापित करना मददगार साबित हो सकता है। लद्दाख को केंद्र शासित ढांचे के भीतर ही बढ़ी हुई स्वायत्तता देना समाधान का एक विकल्प हो सकता है।

इसकी विशेष पारिस्थितिकी और जनसांख्यिकी के सुरक्षा इंतजामों के साथ बढ़ा हुआ स्व-शासन देना कारगर हो सकता है। कड़े कदम अलगाव ही बढ़ाएंगे, जबकि सुलह का नजरिया समावेश की भावना पैदा कर सकता है। जरूरी नहीं कि तमाम मांगें मान ली जाएं, लेकिन ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए, जो लद्दाख की पहचान को सम्मान देते हुए राष्ट्र के प्रति इसके योगदान को स्वीकार करें।

लद्दाख को भले पूर्ण राज्य का दर्जा ना मिले, लेकिन महज एक निर्वाचित विधानसभा का प्रावधान करना भी क्षेत्रीय धारणाओं में संतुलन बैठा सकता है। इससे लद्दाख के लोगों का देश के संवैधानिक ढांचे में भरोसा भी मजबूत होगा। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

खबरें और भी हैं…

Source link

Check Also
Close



DEWATOGEL