N. Raghuraman’s column: Compassion is needed to combat imaginary lies, injustice, and oppression | एन. रघुरामन का कॉलम: काल्पनिक असत्य, अन्याय, अत्याचार से निपटने के लिए दया की जरूरत है

- Hindi News
- Opinion
- N. Raghuraman’s Column: Compassion Is Needed To Combat Imaginary Lies, Injustice, And Oppression
7 घंटे पहले
- कॉपी लिंक

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
18 साल से कम उम्र के उस लड़के ने मुझसे कुछ समय मांगा। लेकिन मैं व्यस्त था, इसलिए मैं तत्काल उससे हां नहीं कह सका। मैंने लड़के की आंखों में देखा, जो वाकई मुझसे याचना कर रही थीं। मैं किसी की आंखों और लहजे से उन बातों को भी समझ लेता हूं, जो वह बोल नहीं पाते। मैं ठहरा।
लड़के की आंखें यह कहते हुए नम होने लगीं कि ‘मैं अपने सौतेले पिता को स्वीकार नहीं कर सकता।’ तब मैंने अपना लंच छोड़ने का फैसला कर उससे कहा कि ‘आओ, बैठें और उस भावना के साथ बात करें।’ हम बैठ गए। मैंने पूछा, ‘ऐसा क्यों?’ लड़के के उद्गार बाहर आने लगे, जैसे टंकी में लंबे समय से जमा पानी तेज बहाव से बहने लगा हो। दस मिनट तक उसने एकतरफा अपनी बात कही। पानी अब बूंद-बूंद टपकने लगा था, मतलब शब्द कम हो रहे थे। लेकिन लड़के के गालों पर आंसू थे। मैंने उसे टिश्यू पेपर दिए। अब मैं चंद शब्दों में बताता हूं कि उस लड़के ने क्या कहा।
उसने कहा कि ‘जब मैं प्राइमरी स्कूल में था तो पिता की मृत्यु के बाद मेरी मां ने दूसरी शादी कर ली। तभी से मैंने कभी उन्हें पापा नहीं बुलाया, क्योंकि मुझे लगा कि मेरी मां मेरे पिता से प्यार नहीं करती थीं। एक साल बाद हमारे घर एक नन्हा मेहमान (सिबलिंग) आया, जिससे मेरी खूब बनने लगी। लेकिन मेरे अंदर कुछ था, जो मुझे सौतेले पिता को स्वीकार करने से रोकता था, हालांकि वे मुझसे स्नेह करते थे।
मुझे हमेशा लगता था कि मेरे असली पिता को प्यार नहीं मिला। मैं सेकंडरी स्कूल के दिनों में ही होस्टल चला गया और आज भी वहीं रहता हूं। मेरा घर जाने का मन नहीं करता। मैं अपनी मां और सिबलिंग से रोजाना वीडियो कॉल पर बात करता हूं, लेकिन सौतेले पिता से नहीं। मैं कैम्पस से निकल कर एक अच्छी नौकरी पाने के लिए दिन-रात मेहनत कर रहा हूं।’
छोटी उम्र में उसके दृढ़ संकल्प की सराहना करते हुए मैंने उससे कुछ कठिन सवाल पूछे। मैंने पूछा कि दिमाग पर इतना भावनात्मक आघात लेकर कोई कैसे ध्यान केंद्रित रख सकता है? मेरे सवाल यह देखने के लिए थे कि इस संघर्ष में उस बच्चे की भूमिका क्या है।
चूंकि मुझे लगा कि लड़के को मेरे सवाल कठोर लग रहे होंगे, मैंने स्पष्ट किया कि यह मेरा सहानुभूतिपूर्वक लोगों की मदद का तरीका है- ताकि वह अपनी सोच में फंसे ना रहकर उसे बदल सकें। मुझे लगा कि वह युवा मन इसी जगह अटक गया था कि मैं अपने सौतेले पिता को स्वीकार नहीं कर सकता।
मैंने कुछ सवालों से युवक के खयाली असत्य, अन्याय और अत्याचार को चुनौती दी, जैसे ‘बताओ कि 10-12 साल बाद जब तुम्हारा अपना परिवार होगा तो अपनी मां की जरूरतों का ध्यान कैसे रखोगे?’ मैंने उसकी मां की बुढ़ापे में एक साथी की जरूरत को जायज ठहराया, ताकि मेडिकल संबंधी समस्या या लाचारी में उनको सहयोग मिल सके। सौतेले पिता को भी एक बड़े दिल वाला व्यक्ति बताया, जिन्होंने एक बच्चे वाली महिला को अपना जीवनसाथी बनाया।
जैसे राजा विक्रमादित्य की कहानी में पहेली का जवाब मिलने पर वेताल पेड़ से उतर गया था, वैसे ही लड़के को वर्षों से परेशान कर रहा काल्पनिक भूत शांत हो गया। उसने मुझसे पूछा कि ‘अब मुझे क्या करना चाहिए?’ मैंने कहा कि मां को वीडियो कॉल करो और पूछो कि ‘पापा कैसे हैं?’ लड़के ने वैसा ही किया। बस, कॉल करते ही दोनों ओर से भावनाएं बह निकलीं, क्योंकि मां का फोन स्पीकर पर था और सौतेले पिता बातचीत सुन रहे थे।
इस साल दशहरे का रावण दहन भी उसी दिन है, जब दो प्रमुख नेताओं- गांधी जी और शास्त्री जी को याद किया जाता है। यह असत्य, अन्याय और अत्याचार से लड़ने की प्रेरणा देता है। लेकिन ‘खयाली वेताल’ एक और दुश्मन है, जो हमारे बच्चों के दिमाग को अपने अधीन कर रहा है। इसे नियंत्रित करने की आवश्यकता है। इसलिए उनसे बात करते रहें।
फंडा यह है कि आधुनिक जमाने के युद्ध में काल्पनिक असत्य, अन्याय और अत्याचार बच्चों के दिमाग को काबू कर रहे हैं। दया ही ऐसी कल्पनाओं से निपटने का सर्वोत्तम हथियार है।
Source link