N. Raghuraman’s column – It’s time for parents to upgrade their tech knowledge | एन. रघुरामन का कॉलम: पैरेंट्स के लिए अपनी तकनीकी जानकारी अपग्रेड करने का यही सही समय है

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3 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
दशहरे पर एक दोस्त मुझसे मिलने घर आया, लेकिन पूरे समय वह तनाव में दिख रहा था और लगातार घर लौटने की जल्दी में था। मैंने पूछा कि क्या बात है तो उसने अपने बेटे के साथ नहीं आने का हवाला देते हुए कहा कि ‘मुझे नहीं पता कि वह कई घंटों से बंद दरवाजे के पीछे अपने फोन के साथ क्या कर रहा है। वह कहीं जाना नहीं चाहता। इतने समय तक उसका ऑनलाइन रहना हमारे लिए बड़ी चिंता बना हुआ है।’
तभी मैंने उसे ओपन-एआई का हालिया ब्लॉग दिखाया, जो कहता है कि ‘कोई भी सिस्टम परफेक्ट नहीं है। हम जानते हैं कि कभी-कभी हम किसी वास्तविक खतरे के बिना भी चेतावनी दे देते हैं। लेकिन हमें लगता है चुप रहने से बेहतर है कि माता-पिता को अलर्ट कर दें ताकि वे समय रहते कार्रवाई कर सकें।’ कैलिफोर्निया में एक परिवार द्वारा मुकदमा करने के एक माह बाद चैटजीपीटी बनाने वाली कंपनी ने बीते सोमवार को किशोरों के अकाउंट्स के लिए नए पैरेन्टल कंट्रोल्स शुरू किए।
मुकदमे में परिवार ने आरोप लगाया कि चैटबॉट ने उनके बेटे को आत्महत्या के लिए उकसाया। नए कंट्रोल में माता-पिता ऐसे घंटे निर्धारित कर सकते हैं, जिनमें उनके बच्चे चैटजीपीटी यूज कर सकते हैं अथवा नहीं। चैटबॉट से बातचीत के प्रावधान वाला वॉइस मोड बंद कर सकते हैं और किशोरों की चैट हिस्ट्री को चैटजीपीटी की मेमोरी में सेव करने से रोक सकते हैं। अन्य ऑप्शन में वे किशोरों के डेटा को ओपनएआई मॉडल के प्रशिक्षण में इस्तेमाल करने से भी रोक सकते हैं।
मेरे दोस्त ने कहा कि ‘ईमानदारी से कहूं तो मुझे वाकई नहीं पता कि ये सब कैसे करते हैं और बच्चों के ऑनलाइन समय को कैसे मॉनिटर करते हैं।’ उसने कहा कि इन चीजों को घर पर लागू करने से पहले मुझे किसी क्लास में सीखना होगा। वास्तव में, भारतीय समाज में हम तीन दशकों से गर्व के साथ कहते आए हैं कि ‘इस फोन के बारे में मैं कुछ नहीं जानता और मेरा 10 साल का पोता इस पर मेरे लिए सब कुछ करता है।’
इसलिए, यदि इस ताकतवर और लुभावनी तकनीक वाली दुनिया में हम बच्चों को पालने में असमर्थ महसूस करते हैं तो इसमें हम माता-पिता की कोई गलती नहीं है। इसीलिए ओपनएआई ब्लॉग कहता है कि ‘पैरेंटल कंट्रोल से माता-पिता अपना अकाउंट बच्चों के अकाउंट से लिंक कर सकते हैं और सेटिंग्स में सुरक्षा और उनकी उम्र के अनुकूल अनुभव के लिए प्रावधान कर सकते हैं।’
नई व्यवस्था में अगर चैटजीपीटी को संकेत मिलते हैं कि किशोर खुद को नुकसान पहुंचा सकता है तो माता-पिता के अकाउंट पर नोटिफिकेशन मिलेगा। विशेषज्ञ टीम जोखिम के संकेतों की समीक्षा करेगी और ईमेल ही नहीं, मोबाइल अलर्ट के जरिए भी माता-पिता से संपर्क करेगी। ऐसा सिस्टम भी विकसित किया जा रहा है कि यदि माता-पिता ‘आउट ऑफ रीच’ हैं तो संबंधित प्रवर्तन अधिकारियों को अलर्ट किया जाएगा। किशोरों के चैटबॉट उपयोग पर बढ़ते नियामकों और जांच के चलते ये बदलाव किए जा रहे हैं।
याद रखें कि तकनीक उसी एक देश की भाषा नहीं, जहां यह विकसित होती है। यह पूरी दुनिया की कॉमन लैंग्वेज है। इसलिए किशोरों और युवाओं के लिए प्रत्येक देश को समान नियम और नियंत्रण लागू करने होंगे। जब तक कंपनियां पूरी दुनिया के कानूनों में शामिल हो सकने वाले प्रावधान नहीं लाती हैं, तब तक हम माता-पिता को अपने बच्चों पर नजर रखने के लिए खुद के कुछ तरीके विकसित करने होंगे।
1. उन्हें स्मार्टफोन देने में विलम्ब करें और सोशल मीडिया का एक्सेस ना दें, क्योंकि ये सिगरेट की तरह ही लत लगाने वाले हैं।
2. घर में डाइनिंग टेबल समेत अन्य फोन-फ्री स्थान बनाएं, जहां कोई भी अपने फोन के साथ नहीं बैठे। इससे धीरे-धीरे वे मोबाइल से दूर होंगे।
3. उन्हें ऐसे लोगों की कहानियां बताएं, जिन्हें तकनीक का उपयोग कम करने से लाभ हुआ है। इससे घर पर लगे प्रतिबंधों को प्रामाणिकता मिलेगी।
फंडा यह है कि जब तक तकनीकी दुनिया में हमारे किशोरों के एआई उपयोग को लेकर कुछ बेहतर नहीं होता, तब तक उन्हें ‘टेक एडिक्शन’ से बचाने के लिए हमें ही सतर्क रहना होगा।
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