We need to focus on strengthening our institutions. | मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम: हमें अपने संस्थानों को मजबूत बनाने पर ध्यान देना होगा

5 घंटे पहले
- कॉपी लिंक

मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक
जीएसटी दरों में कटौती के बाद पिछले सप्ताह कई बड़े औद्योगिक संगठनों और व्यवसाय समूहों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देते हुए मीडिया में पूरे पेज के विज्ञापन जारी किए। हरेक विज्ञापन में प्रधानमंत्री की बड़ी-सी तस्वीर थी। इससे कुछ ही दिन पहले 19 सितंबर को भी व्यवसाय घरानों और व्यापार संगठनों ने ऐसे ही विज्ञापन देकर पीएम को 75वें जन्मदिन की बधाई दी थी। देखें तो यह सब ठीक ही है।
भाजपा-शासित राज्यों- खासकर यूपी के पास बुनियादी ढांचे, मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र की महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं। वो तेजी से विदेशी निवेश आकर्षित कर रहे हैं। इसमें प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका केंद्र में बैठे ऐसे दूरद्रष्टा प्रशासक की है, जो हर राज्य को घरेलू और विदेशी निवेश के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
लेकिन इस सब के बीच इंदिरा गांधी जैसे पर्सनैलिटी कल्ट के निर्मित होने का जोखिम भी है। 1974-75 में इंदिरा गांधी के साथ ऐसा ही हुआ था। तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष डीके बरूआ ने तो तब यह नारा भी दे दिया था कि ‘इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया।’ भले ही भाजपा में अभी तक किसी ने ऐसा नारा नहीं दिया, लेकिन प्रधानमंत्री को सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में भी कोई ऐसा नहीं कह पाए।
एक सफल देश व्यक्ति-पूजा नहीं, अपने सशक्त संस्थानों से संचालित होता है। मोदी भी इस बात को समझते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने पीएमओ और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को निर्देश दिया था कि सभी सार्वजनिक संदर्भों में उनके लिए ‘माननीय प्रधानमंत्री’ शब्द को हटा दिया जाए।
तभी से केंद्र के सभी संवादों में मोदी के लिए महज ‘प्रधानमंत्री’ शब्द ही काम में लिया जाता है। लेकिन निजी व्यापारिक घरानों और औद्योगिक संगठनों पर यह लागू नहीं होता। उनके लिए तो मोदी अभी भी ‘माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी’ ही हैं। उनके सभी विज्ञापनों में ये शब्द शामिल थे।
यह बाल की खाल निकालना लग सकता है, लेकिन यह सब देश के लिए बहुत मायने रखता है। मोदी का तीसरा कार्यकाल एक महत्वपूर्ण चरण में है। मोदी के दूसरे कार्यकाल में 2020-2022 तक कोविड की त्रासदियों से गुजरने के बाद 2022 और 2023 में यूक्रेन और गाजा के युद्ध परेशानी बने।
अब तीसरे कार्यकाल के पहले साल में ही मोदी तीन चुनौतियों से जूझ रहे हैं। पहला, अमेरिकी टैरिफ। दूसरा, पाकिस्तान से निपटना, जो ऑपरेशन सिंदूर में भारत से मिली हार के कारण तिलमिलाया हुआ है। तीसरा, नेपाल और बांग्लादेश की तरह जेन–जी हिंसा के जरिए लद्दाख और अन्य सीमावर्ती इलाकों में परेशानी पैदा करने के सुनियोजित प्रयास।
लद्दाख हिंसा में पाकिस्तान की सांठगांठ साफ नजर आई है। सऊदी अरब के साथ रक्षा समझौते और ऑपरेशन सिंदूर में चीन, तुर्किए और अजरबैजान से मिले खुले समर्थन के बाद पाकिस्तान सोच रहा है कि भू–राजनीतिक तौर पर अब वह मजबूत स्थिति में है। असीम मुनीर के तौर पर पाकिस्तान को 1947 से लेकर अब तक का सबसे बड़ा जिहादी विचारधारा का सेनाध्यक्ष मिला है। यकीनन, जिया उल हक से भी बड़ा। हाल ही मुनीर रेयर अर्थ का वादा कर ट्रम्प को भी लुभाकर आए हैं।
इस खंडित विश्व में मोदी को चाहिए कि वे संस्थानों को मजबूत बनाएं और पार्टी के चापलूसों द्वारा खुद के महिमामंडन के प्रयासों को खारिज करें। उद्योगों के मामले में भारत आज दुनिया के शीर्ष तीन देशों में से एक है। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक, सबसे बड़ा चावल और दूध उत्पादक, तीसरा सबसे बड़ा यात्री कार निर्माता और दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता है।
इसके पास दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और इंटरनेट बाजार है। रक्षा विनिर्माण, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट और एआई क्षेत्र की एक उभरती शक्ति है। तमाम चुनौतियों के बावजूद भी भारत परिवर्तनकारी बदलाव की ओर बढ़ रहा है। 2028 तक अमेरिका और चीन के बाद यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगी।
इसीलिए आश्चर्य नहीं कि अमेरिका और चीन उभरते भारत को दुनिया में अपने दबदबे के लिए दीर्घकालिक खतरा मानते हों। इस दोहरी चुनौती से निपटने के लिए भारत को अपने संस्थानों को मजबूत करने पर ध्यान देना होगा। साथ ही अर्थव्यवस्था को अधिक बेहतर और देश के प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ बनाना होगा। इसी में देश और मोदी, दोनों का हित है।
अपने तीसरे कार्यकाल में मोदी तीन चुनौतियों से जूझ रहे हैं। 50 प्रतिशत का ट्रम्प-टैरिफ। पाकिस्तान से निपटना। और नेपाल व बांग्लादेश की तरह जेन-जी विद्रोहों के जरिए भारत के लिए परेशानी पैदा करने के सुनियोजित प्रयास। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)
Source link