N. Raghuraman’s column – Positive brand perception can withstand any market volatility | एन. रघुरामन का कॉलम: ब्रांड की सकारात्मक धारणा बाजार की किसी भी उठापटक को झेल सकती है

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6 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
मेरे पैतृक शहर में इस सप्ताह एक शादी में शामिल होने आए एक बुजुर्ग रिश्तेदार बीमार पड़ गए। डॉक्टर बुलाया गया। उन्होंने कुछ एंटीबायोटिक्स लिखे और चले गए। किसी को दवा लाने को कहा गया तो वह दवाइयां ले तो आया, लेकिन साथ में एक छोटी हॉर्लिक्स की बोतल भी थी, जो प्रिस्क्रिप्शन का हिस्सा नहीं थी। किसी को नहीं पता था कि यह खरीदने वाले की सलाह पर आई थी या दवा दुकान मालिक की। किसी ने इस पर आपत्ति भी नहीं की।
माल्ट पेयों के प्रति इस राज्य के सांस्कृतिक जुड़ाव में हॉर्लिक्स रचा-बसा है। ‘श्वेत क्रांति’ के जरिए देश में दूध आपूर्ति में सुधार से पहले, खासतौर पर दक्षिण और पूर्वी क्षेत्रों में दूध की उपलब्धता कम थी। ऐसा विशेष रिकॉर्ड तो नहीं कि तमिलनाडु में दूध की कमी के दौरान हॉर्लिक्स ने दूध की जगह ले ली हो, लेकिन ऐतिहासिक कारकों और मार्केटिंग स्ट्रेटजी से पता चलता है कि उपभोक्ताओं के दिमाग में कैसे इसने दूध के समकक्ष स्थान बना लिया।
हॉर्लिक्स ने सफलतापूर्वक खुद को दूध के लिए एक न्यूट्रिशनल एन्हांसर के रूप में स्थापित कर लिया। इसने भावनात्मक विज्ञापनों के जरिए उपभोक्ताओं से मजबूत संबंध बनाया, जो बच्चों की ‘देखभाल’ पर केंद्रित थे। इसीलिए, दक्षिण और पूर्वी भारत में पीढ़ियों तक विभिन्न माल्ट पेय पदार्थों को दूध के पौष्टिक सप्लीमेंट के तौर पर काम लिया गया। हॉर्लिक्स इनमें अग्रणी था। यह एक धारणा थी, जो समय के साथ विकसित हुई।
लगभग 30 साल पहले जब नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड को लगा कि शहरी भारत में दूध की खपत कम हो रही है तो उसने ‘दूध है वंडरफुल’ जैसे कैची जिंगल्स के जरिए दूध को फिर से आकर्षक बनाया। दक्षिण और पूर्वी भारत में भी यह विज्ञापन देखे गए, लेकिन दूध की कमी के कारण ये राज्य माल्ट ड्रिंक्स पर निर्भर रहे।
हॉर्लिक्स ने इन्हीं राज्यों पर ध्यान केंद्रित कर फायदा उठाया। आज स्थिति उलट गई है। भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक है। ये उत्पादन 2014-15 के 146.3 मिलियन टन से बढ़कर 2023-24 में 239.3 मिलियन टन हो गया। तमिलनाडु भी दुग्ध उत्पादन में 11वें और सहकारी दूध खरीद में चौथे स्थान पर है।
तमिलनाडु का सालाना दुग्ध उत्पादन 2020 में 8.75 मिलियन टन था, जाे 2024 में बढ़कर 10.8 मिलियन टन हो गया। इसका डेयरी मार्केट 2024 में 1,38,070 करोड़ रु. से बढ़कर 2033 तक 4,23,700 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। 2025-2033 के दौरान ये बढ़ोतरी 12.61% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से होगी।
राज्य में डेयरी गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं। गुजरात से ‘अमूल’ पहले से ही इस राज्य में बड़े स्तर पर प्रवेश कर चुका है। पड़ोसी कर्नाटक का ब्रांड ‘नंदिनी’ पशु आहार क्षेत्र में विस्तार कर रहा है। इधर तमिलनाडु में दूध आपूर्ति करने वाला ब्रांड ‘आविण’ पिछले महीने मुंबई के जरिए महाराष्ट्र में विस्तार करता दिखा। उसने किसानों से आपूर्ति बढ़ाने का आह्वान किया है। डेयरियों की ग्रोथ के बावजूद स्थानीय संस्कृति में घुलमिल जाने की क्षमता के कारण हॉर्लिक्स जैसे ड्रिंक्स बाजार में बने हुए हैं।
तमिलनाडु की सांस्कृतिक प्रथाओं और हॉर्लिक्स की लंबी मार्केटिंग हिस्ट्री के चलते मुमकिन है कि कोई केमिस्ट मरीज के लिए हॉर्लिक्स की बोतल जोड़ने का सुझाव दे सकता है। रिस्टोरेटिव पेय के तौर पर हॉर्लिक्स की प्रतिष्ठा और भारतीयों के फार्मासिस्टों में उच्च स्तरीय भरोसे के कारण ग्राहक इस सुझाव को स्वीकार भी कर लेता है।
हालांकि, हमेशा ऐसा नहीं होता। उसी राज्य के शहरों में मुझे ऐसा चलन दिखा नहीं, लेकिन मेरे गांव जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में तो लोग छोटी-मोटी बीमारियों और सप्लीमेंट्री प्रोडक्ट के बारे में आमतौर पर केमिस्ट से सलाह ले लेते हैं। भारत में, खासकर ग्रामीण या कस्बाई क्षेत्रों में दवा दुकानों के फार्मासिस्ट अक्सर सुलभ हेल्थकेयर एडवाइजर के तौर पर कार्य करते हैं, क्योंकि वहां पीढ़यों से यह धारणा मजबूती से बनी हुई है। भले ही अब दूध उत्पादन प्रचुर मात्रा में हो।
फंडा यह है कि जब आप बाजार में सकारात्मक धारणा बनाते हो तो यह पीढ़ियों तक चलती है और लाभांश देती रहती है, जैसा तकरीबन एक सदी से हॉर्लिक्स को मिलता रहा है।
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