N. Raghuraman’s column – Why does a busy employee’s activities fail to yield results? | एन. रघुरामन का कॉलम: एक व्यस्त कर्मचारी की गतिविधियां परिणाम क्यों नहीं दे पाती?

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12 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
आज से सात दिन बाद, यानी 15 अक्टूबर से 15 दिसंबर तक शुभमन गिल 19,066 एयरोनॉटिकल माइल्स की यात्रा करेंगे। इसमें वह ऑस्ट्रेलिया में तीन वनडे और पांच टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैच और इसके बाद दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ घरेलू सीरीज में दो टेस्ट, तीन वनडे और पांच टी-20 अंतरराष्ट्रीय मैच खेलेंगे।
इस दौरान अन्य खिलाड़ी भी इतनी ही यात्रा करेंगे, लेकिन गिल पर दबाव अधिक होगा। क्योंकि वह टेस्ट मैच के कप्तान और सूर्य कुमार यादव की कप्तानी वाली टी-20 टीम के उप-कप्तान हैं। हाल ही में उन्हें रोहित शर्मा की जगह वनडे टीम का कप्तान भी बनाया गया है। देश का हर क्रिकेट प्रेमी इस स्पेशलिस्ट बल्लेबाज से जीत और चमत्कार की उम्मीद करता है।
यात्रा के दौरान बातचीत में एक सह-यात्री ने क्रिकेट का जिक्र तब किया, जब एक अन्य ने यह जोड़ा कि ‘क्यों आज के शिक्षकों की अच्छी टीचिंग भी स्कूलों में बेहतर परिणाम नहीं दे रही?’ और गिल की नई भूमिका के बारे में सुनकर उसने स्वयं ही जवाब दिया। उसने कहा कि हमारे समय में शिक्षकों को एक जिम्मेदारी दी जाती थी कि बच्चों को पहले एक जिम्मेदार बेटा/बेटी, फिर एक अच्छा नागरिक बनाएं और बाद में समय बचे तो कुछ शैक्षिक ज्ञान दें।
आज शिक्षक की स्थिति अलग है। स्कूल प्रबंधन उन्हें दस मिनट भी खाली नहीं देख सकता, जो वास्तव में अगली कक्षा से पहले शिक्षक का सोचने का समय होता है। वे तुरंत उन्हें प्रशासनिक या गैर-शैक्षणिक कार्य दे देते हैं। इससे ये युवा शिक्षक ऐसी कठपुतली बन जाते हैं, जो बहुत-से ईमेल, प्रोजेक्ट्स और नए दाखिलों जैसी अत्यधिक मल्टीटास्किंग में उलझे होते हैं।
यह ठीक वही बात है, जिसके बारे में कैल न्यूपोर्ट ने अपनी नई किताब ‘डीप वर्क : रूल्स फॉर फोकस्ड सक्सेस इन अ डिस्ट्रैक्टेड वर्ल्ड’ में बताया है। वे बताते हैं कि कैसे आज के पेशेवर गुणवत्ता से ज्यादा मात्रा को महत्व देने लगे हैं और इसने कैसे उन्हें अत्यधिक मल्टीटास्किंग वाले पेशेवरों में बदल दिया है।
न्यूपोर्ट का कहना है कि ‘यह उन्हें ऐसा ‘डीप वर्क’ करने से रोकता है, जो कि सभी भटकावों से मुक्त एक केंद्रित कार्य होता है।’ न्यूपोर्ट अपने तर्कों को मजबूती देने के लिए साइकोलाॅजी और न्यूरोसाइंस के सिद्धांतों का इस्तेमाल करते हैं। वे बताते हैं कि किसी व्यक्ति की ज्ञान संबंधी क्षमताओं को कैसे बेहतर किया जाए और नियोक्ताओं को कैसे कर्मचारियों को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे प्रोजेक्ट्स पूरे करने के लिए शॉर्टकट ना अपनाएं।
वे दावा करते हैं कि कॉर्पोरेट दौड़ से निकलने का सबसे अच्छा तरीका है कि तकनीक व सोशल मीडिया से ब्रेक लिया जाए। आत्मनिरीक्षण के लिए एकांत समय का उपयोग करें। न्यूपोर्ट कार्य पूरा करने के लिए गैर-तकनीकी व्यक्ति की धारणा पर जोर देते हैं, जिसमें कार्य उत्पादक हो और कुशलतापूर्वक किया जाए। इसका अर्थ है कि आज के पेशेवरों को हर समय खुद को व्यस्त दिखाने के बजाय सफलता के लिए अपनी प्राथमिकताओं को व्यवस्थित करना चाहिए।
फिर से गिल के उदाहरण को देखें तो महज 26 की उम्र में वे 16 शीर्ष ब्रांडों से जुड़े हैं। गिल जानते हैं ये ब्रांड उनके साथ तभी रहेंगे, जब वे लगातार जीत हासिल करेंगे- एक फोकस्ड सक्सेस, जो क्रिकेट प्रेमियों और बीसीसीआई चयनकर्ताओं को खुश रखने के लिए जरूरी है। वे जानते हैं कि सिर्फ अच्छा खेलना ही उनके करियर और नेतृत्व को आगे नहीं बढ़ाएगा।, उन्हें डीप फोकस की जरूरत है, जो जीत के साथ प्रभाव पैदा कर सके।
हम न शिक्षक हैं और ना क्रिकेटर। हम इस हाइपर कनेक्टेड दुनिया में सिर्फ कर्मचारी हैं, जहां हर तरफ भटकाव हैं। अंतहीन ईमेल, एक के बाद एक बैठकें और लगातार नोटिफिकेशन्स। अपना दैनिक समय तय करें, शायद आधा दिन- जिसमें परिणाम देने वाला फोकस्ड कार्य करें।
आपको खुद से कहना चाहिए कि ‘अगर मैं आज शाम तक इसे हासिल कर लूं, तो मैं खुद को सफल मानूंगा।’ ऐसी सोच वाकई में दुष्कर होती है, क्योंकि इसमें अनुशासन चाहिए। लेकिन आपको विचलित होने के बजाय रास्ते पर बनाए रखती है।
फंडा यह है कि व्यस्तता और उत्पादकता समान नहीं है। सफलता उत्पादकता से ही मिलती है, व्यस्तता से नहीं। व्यस्तता महज दिखाएगी कि आप व्यस्त हैं, लेकिन प्रोडक्टिव नहीं हैं।
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