Sunday 26/ 10/ 2025 

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Aarti Jerath’s column – How much space is left for Nehruvian legacies today? | आरती जेरथ का कॉलम: नेहरूवादी विरासतों के लिए आज कितनी जगह रह गई है?

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2 घंटे पहले

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आरती जेरथ राजनीतिक टिप्पणीकार - Dainik Bhaskar

आरती जेरथ राजनीतिक टिप्पणीकार

जैसे-जैसे नए भारत के लिए नई दिल्ली का परिदृश्य बदल रहा है, नेहरू के भारत के सांस्कृतिक प्रतीक भी धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं। इस श्रेणी में ताजा-तरीन नाम सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम का है, जो कभी भारतीय वस्त्रों, हस्तशिल्प और कारीगरी की बेहतरीन कृतियों का केंद्र हुआ करता था। लगभग हर विदेशी गणमान्य आगंतुक द्वारा यहां की यात्रा की जाती थी।

यहां आने वालों में दिवंगत महारानी एलिजाबेथ और उनके पति प्रिंस फिलिप, जैकलीन कैनेडी (पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन कैनेडी की दिवंगत पत्नी), पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर, ईरान की महारानी फराह और हाल ही में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और उनकी पत्नी शामिल रहे हैं। लेकिन आज यह बदहाल है।

प्रबंधन और कर्मचारियों के बीच टकराव से वेतन में देरी हो रही है और कारीगर आपूर्तिकर्ताओं को बकाया राशि का भुगतान नहीं हो रहा है। अलमारियां खाली हैं, क्योंकि कारीगरों ने शिल्प की आपूर्ति बंद कर दी है। भुगतान न होने के कारण एसी भी बंद है।

कर्मचारी गुलाबी पर्चियां लगाकर आते हैं, जिन पर लिखा होता है- हम विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। वे इस उम्मीद में हैं कि सरकार उनकी दुर्दशा को दूर करने के लिए हस्तक्षेप करेगी। लेकिन प्रबंधन ने आंखें मूंद ली हैं, मानो कहीं कोई गड़बड़ी ही न हो।

एम्पोरियम की देखरेख करने वाले कपड़ा मंत्रालय में कई याचिकाएं दायर करने का भी कोई नतीजा नहीं निकला है। यह समस्या कोविड के दौरान शुरू हुई, जब वेतन भुगतान में देरी हुई। लेकिन देरी आज भी जारी है, जबकि कोविड बहुत पहले ही समाप्त हो चुका है।

या तो एम्पोरियम प्रशासकीय उपेक्षा का शिकार है या इसे जानबूझकर तब तक नजरअंदाज किया जा रहा है जब तक कि इसका जीवन समाप्त न हो जाए। अलबत्ता इस विरासत को बंद करने की योजना पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन नेहरू युग के अन्य सांस्कृतिक प्रतीकों- राष्ट्रीय संग्रहालय और राष्ट्रीय अभिलेखागार के भाग्य को देखते हुए एम्पोरियम का भविष्य भी अनिश्चित ही दिखता है।

राष्ट्रीय संग्रहालय को ध्वस्त करने की तैयारी है। इसमें रखी प्राचीन और उत्कृष्ट कलाकृतियां रायसीना हिल स्थित नॉर्थ और साउथ ब्लॉक के युग युगीन भारत संग्रहालय परिसर में स्थानांतरित कर दी जाएंगी, जहां कभी प्रधानमंत्री कार्यालय सहित शीर्ष मंत्रालय कार्यरत थे।

राष्ट्रीय अभिलेखागार की भव्य संरचना एक हेरिटेज-भवन होने के कारण बुलडोजर से तो बच गई है, लेकिन उसके भी व्यापक रिनोवेशन की योजना है। इसमें राष्ट्रीय अभिलेखागार में संरक्षित बहुमूल्य ऐतिहासिक दस्तावेजों का व्यापक स्थानांतरण भी होगा।

जो लोग कॉटेज इंडस्ट्रीज के गौरवशाली दिनों को याद करते हैं, आज इसकी दुर्दशा पर उनका दु:ख, बीते युग की यादों से कहीं अधिक है। यह एम्पोरियम न केवल खरीदारी करने के लिए एक शानदार जगह हुआ करती थी, बल्कि यह देश के समृद्ध वस्त्र और हस्तशिल्प को देखने का भी स्थान था।

यह देश की सर्वश्रेष्ठ साड़ियों के प्रदर्शन का दावा करता था। वास्तव में, कहते हैं कि इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी दोनों ही अकसर यहां खरीदारी करती थीं और उनके विशाल संग्रह में कॉटेज इंडस्ट्रीज की झलक दिखती थी।

इस एम्पोरियम की स्थापना प्रधानमंत्री नेहरू ने 1948 में भारत की हस्तशिल्प विरासत को संजोए रखने के लिए की थी। इसका उद्देश्य देश भर के शिल्पकारों को अपने हस्तशिल्प बेचने और पुरानी परंपराओं को जीवित रखने के साथ-साथ बदलते समय के साथ उन्हें आधुनिक बनाने का मंच प्रदान करना भी था। बाद में इसका प्रबंधन कमलादेवी चट्टोपाध्याय को सौंप दिया गया।

वे हस्तशिल्प की दुनिया की दिग्गज थीं और उन्होंने उन महिलाओं के समूह के साथ मिलकर- जिसने विभाजन के शरणार्थियों को कला और शिल्प के माध्यम से आजीविका कमाने में मदद की थी- एम्पोरियम को दिल्ली के समृद्ध स्थल में बदल दिया।

आज सेंट्रल विस्ता को नए भारत का प्रतीक बनाया जा रहा है। संसद की पुरानी गोलाकार इमारत को एक संग्रहालय में बदलने की तैयारी है। राजपथ का नाम अब कर्त्तव्य पथ है और पेड़ों की पंक्तियों से घिरे इसके घास के लॉन अब भूमिगत मार्गों की ओर जाने वाली पत्थर की सीढ़ियों का चक्रव्यूह बन गए हैं। इंडिया गेट के आसपास के क्षेत्र में अब राष्ट्रीय युद्ध स्मारक है। मालूम होता है कि नए भारत में नेहरूवादी विरासतों और प्रतीकों के लिए बहुत कम जगह रह गई है।

राष्ट्रीय संग्रहालय को ध्वस्त करने की तैयारी है। राष्ट्रीय अभिलेखागार में संरक्षित दस्तावेजों का व्यापक स्थानांतरण होगा। कॉटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम की दुर्दशा हो रही है। संसद से लेकर राजपथ तक तमाम विरासतों को बदला जा रहा है। (ये लेखिका के अपने विचार हैं।)

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