Pt. Vijayshankar Mehta’s column – Satsang improves our decision-making ability | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: सत्संग हमारी निर्णय लेने की क्षमता को सुधारता है

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18 मिनट पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
यह प्रश्न बहुत लोगों के दिमाग में बना रहता है कि सत्संग क्यों किया जाए? और वो भी ऐसे समय, जब कथा आयोजन, सत्संग प्रसंगों की बाढ़ आ रही हो। सत्संग के मामले में ज्ञानी-अज्ञानी, योग्य-अयोग्य कोई भी हों, सब के मुंह खुले हुए हैं। लेकिन कान सबके बंद हैं।
तुलसीदास जी ने शिव जी के मुंह से कहलाया- बिनु सतसंग न हरिकथा, तेहि बिनु मोह न भाग। मोह गएँ बिनु रामपद, होइ न दृढ़ अनुराग। सत्संग के बिना हरिकथा सुनने को नहीं मिलती। उसके बिना मोह नहीं भागता और मोह के गए बिना राम जी के चरणों में प्रेम नहीं होता। लेकिन यदि आज की पीढ़ी की भाषा में समझें तो इसका अर्थ है कि ठीक से सत्संग सुनें तो हमारी डिसीजन मेकिंग पॉवर सुधर जाएगी।
अच्छे परिणाम देगी। चार बातों से सत्संग सुनें। कथा में जो आंकड़े हैं, उनको जीवन से जोड़ें। संदेश का मूल्यांकन करें। जिस भी थॉट को उतारें, विश्वास करके उतारें। और समयबद्ध संकल्प लें तो सत्संग डिसीजन मेकिंग पॉवर बढ़ा देगा।
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