Tuesday 02/ 12/ 2025 

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Stephen Roach’s column: As America lags behind in innovation, China accelerates. | स्टीफन रोच का कॉलम: अमेरिका इनोवेशन में पिछड़ा तो चीन ने पकड़ी तेज रफ्तार

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4 घंटे पहले

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स्टीफन रोच मॉर्गन स्टेनले में पूर्व चेयरमैन व येल यूनिवर्सिटी में सीनियर फेलो - Dainik Bhaskar

स्टीफन रोच मॉर्गन स्टेनले में पूर्व चेयरमैन व येल यूनिवर्सिटी में सीनियर फेलो

एआई की दुनिया में अपनी बादशाहत कायम करने को लेकर चीन और अमेरिका के बीच ठनी हुई है। इस दौड़ में भले अभी कोई विजेता नहीं बना हो, लेकिन बाजार में अमेरिका की जीत पर दांव लगाए जा रहे हैं। अमेरिकी चिपमेकर एनवीडिया दुनिया की पहली 5 ट्रिलियन डॉलर की कंपनी बन गई है। ओपन-एआई की सबसे बड़ी निवेशक माइक्रोसॉफ्ट भी थोड़ी ही पीछे है।

लेकिन बात इनोवेशन की हो तो शुरुआती बढ़त जीत की गारंटी नहीं होती। बमुश्किल ही कोई दिन गुजरता है, जब चीन की एआई में असाधारण बढ़त की खबर नहीं आती। चैट-जीपीटी के साथ अमेरिका भले नए कीर्तीमान रच रहा हो, लेकिन इस साल के शुुरू में चीन के डीपसीक ने अपने आर-1 लार्ज लैंग्वेज मॉडल की लागत और प्रोसेसिंग दक्षता से दुनिया को चौंका दिया। चीनी स्टार्टअप मूनशॉट एआई का किमी–के2 मॉडल भी बहुत से पश्चिमी प्रतिस्पर्धियों से बेहतर रहा।

एआई दौड़ को केवल एनवीडिया के उन्नत चिप्स ही नहीं, बल्कि प्रतिभा, सॉफ्टवेयर और रणनीतिक फोकस भी प्रभावित करते हैं। फिलहाल, सेमीकंडक्टर्स को लेकर अमेरिका बढ़त में है। बाइडेन प्रशासन ने ‘स्मॉल यार्ड, हाई फेन्स’ नीति के तहत एडवांस सेमिकंडक्टर्स के निर्यात पर कड़े प्रतिबंध लगाए। लेकिन इसका असर उल्टा हुआ।

इससे चीन के अपने एआई चिप्स विकसित करने के आक्रामक प्रयास तेज हुए। 78 सूचकांकों पर 133 देशों के इनोवेशंस का मूल्यांकन करने वाले ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2024 (जीआईआई) ने चीन को 11वीं रैंक दी है। 15 साल पहले वह 43वीं रैंक पर था। अमेरिका तीसरी रैंक के आसपास बना हुआ है।

भले ही जीआईआई दुनियाभर में हो रहे इनोवेशंस की व्यापक तस्वीर बताता हो, लेकिन इसमें एक जरूरी पहलू छूट गया है- बुनियादी शोध। सरकारी संरक्षण इसमें अहम भूमिका निभाता है। इससे वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को व्यावहारिक ज्ञान से परे भी सोचने की आजादी मिलती है। इस मोर्चे पर अमेरिका खासा पिछड़ गया है।

नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) के आंकड़े देखें तो 1964 के स्पुतनिक लॉन्च के बाद रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर होने वाले कुल खर्च में अमेरिकी सरकार की हिस्सेदारी घट रही है। 1970 के दशक के अंत में बुनियादी शोध में यह हिस्सेदारी 30% से जरा-सी कम थी, जो 2023 में लगभग 10% पर आ गई।

अमेरिकन एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ साइंस द्वारा हाल ही में प्रकाशित मूल्यांकन के अनुसार वित्तीय वर्ष 2026 के लिए ट्रम्प के बजट प्रस्ताव में बुनियादी शोध के लिए फेडरल फंडिंग सिर्फ 30 अरब डॉलर रह सकती है। 2025 में प्रस्तावित 45 अरब डॉलर की तुलना में यह 34% की गिरावट होगी,जो इस फंडिंग को 2002 के स्तर पर ले आएगी।

इसके विपरीत चीन ने अपने महत्वाकांक्षी विज्ञान-प्रौद्योगिकी एजेंडा पर जम कर पैसा खर्च किया है। 2023 में वैश्विक रिसर्च एंड डेवलपमेंट निवेश में चीन की हिस्सेदारी 28% थी, जबकि अमेरिका की 29%। बीते दस वर्षों में रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर चीन का खर्च 14% की औसत वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है, जबकि अमेरिका में यह दर 3.7% ही है।

ट्रम्प प्रशासन सरकार-समर्थित शोध में अमेरिका की लंबी बढ़त अब खोने जा रहा है। सवाल ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल की कई अन्य नीतियों पर भी उठाए जा सकते हैं। मसलन, मनमाने टैरिफ, विदेशी सहायता में कटौती और स्वच्छ ऊर्जा पहलों को वापस लेना। रिसर्च के खर्च में कटौती इसी क्रम में है। जबकि शी जिनपिंग की मानसिकता इससे बिल्कुल विपरीत है।

वे चीनी इनोवेशंस के आधार के तौर पर बुनियादी शोध पर जोर देते हैं। एआई में दबदबे की जंग को आज अकसर दो तंत्रों के संघर्ष के तौर पर देखा जाता है- अमेरिका का बाजार-संचालित मॉडल और चीन की सरकार-समर्थित औद्योगिक नीति। लेकिन बुनियादी शोध बेहद अहम है। तंत्र कोई भी चलाए, सार्वजनिक या निजी क्षेत्र, लेकिन इनोवेशन तो अंततः खोज से ही निकलेगा। बारूद और कागज के आविष्कारक चीन के लोग इस बात को समझते हैं।

(© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)

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