Tuesday 02/ 12/ 2025 

भारत के गृह मंत्री की बेटी की हुई थी किडनैपिंग, छोड़ने पड़े थे 5 आतंकवादी, अब 35 साल बाद भगोड़ा आरोपी गिरफ्तारAaj Ka Meen Rashifal 2 December 2025: संघर्ष के बाद मिलेगा धन, मानसिक तनाव दून होगालॉरेंस बिश्नोई गैंग के गुर्गों ने ली गैंगस्टर इंद्रप्रीत पैरी की हत्या की जिम्मेदारी, पोस्ट में कहा- "आज से नई जंग शुरू, यह ग्रुप का गद्दार था"एक क्लिक में पढ़ें 2 दिसंबर, मंगलवार की अहम खबरेंपीएम मोदी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति से की बात, कहा- भारत के लोग संकट की इस घड़ी में द्वीपीय राष्ट्र के साथ हैं खड़ेक्या है ‘जिहाद’ का मतलब, इस पर आमने-सामने क्यों हैं मौलाना मदनी और आरिफ मोहम्मद खानकर्नाटक में एक और ब्रेकफास्ट मीटिंग! अब डीके शिवकुमार के घर जाएंगे सिद्धारमैया, बन जाएगी बात?मेरठ में ब्यूटी पार्लर संचालिका की स्कूटी में दारोगा ने लगाई आग, पुलिसकर्मी पर 10 हजार मांगने का आरोप – meerut beauty parlour owner accuses cop of arson lohianagar lclarसंसद में हंगामे को लेकर विपक्ष पर भड़कीं कंगना रनौत, बोलीं- 'वे जितना हारते जा रहे हैं, उतना…'MP में भरभराकर गिरा 50 साल पुराना पुल
देश

N. Raghuraman’s column: Fear has become fashionable and profitable for entrepreneurs | एन. रघुरामन का कॉलम: डर अब फैशनेबल और आंत्रप्रेन्योर के लिए मुनाफे की चीज बन गया है

  • Hindi News
  • Opinion
  • N. Raghuraman’s Column: Fear Has Become Fashionable And Profitable For Entrepreneurs

13 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

कई साल पहले जब भोपाल के डीबी मॉल में हैलोवीन इवेंट हुए तो मैंने मैनेजमेंट से साफ कहा- ‘फिजूल की विदेशी बकवास।’ बेबी बूमर्स, यानी 1964 से पहले जन्मे लोगों के लिए डर हमेशा ईंधन की किल्लत, अंडे-सिगरेट की कीमत, बिजली कटौती और बंद के आह्वान जैसे मसलों का होता था। आज ये डर कैंडी और कॉकटेल के साथ आता है, जो युवाओं को रिफ्रेशिंग लगता है। युवाओं के लिए डर अब एस्केपिज्म बन गया है।

साइकोलॉजिस्ट इसे ‘कंट्रोल्ड फियर’ कह सकते हैं, क्योंकि यह लोगों को बिना किसी असली खतरे के एड्रेनलिन की खुराक देता है। यह बोर हो रहे टीनएजर्स के लिए मजे के तौर पर शुरू हुआ था। पहली बार मैंने इसे भोपाल में अनुभव किया। हालांकि मुंबई में यह बहुत पहले आ चुका था, लेकिन मैं डर के लिए पैसे देने को तैयार नहीं था।

यह एक दशक पुरानी बात है। आज डर ने अक्टूबर को नया दिसंबर बना दिया है। महीने भर के मूड-बोर्ड पर हॉन्टेड ब्रंच, रेजर्स, थीम्ड कॉकटेल जैसे ‘ट्रिक एन टकीला’ (डीबी मॉल में) और फोटो बूथ इतने विस्तृत थे कि सच में मरे हुए लोगों को बुला लें। प्लास्टिक के कंकाल और पंपकिन लैटे के बीच डर अब फैशनेबल हो गया है।

ऐसा सिर्फ छोटे शहरों में ही नहीं, बल्कि श्रीलंका जैसे छोटे देश में भी है- जहां इस हफ्ते मैंने कुछ दिन बिताए। कोलंबो में मैं भोजन के लिए दो रेस्तरां में गया और दोनों में थीम बना रखी थी, क्योंकि वे जानते थे कि यह बिकता है। ये कैफे डिम लाइट्स, मकड़ी के नकली जाले लटकाकर, ड्रिंक्स का नाम बदलकर ‘हॉन्टेड एक्सपीरियंस’ देते हैं, जो आपके रोंगटे खड़े कर देगा। मुझे बिल देख कर ही झुरझुरी आ गई।

आप सोच सकते हो कि एक बेकरी ‘घोस्ट कपकेक्स’ बेच रही है, जो किसी भी माता-पिता को डरा दे- लुक से नहीं, बल्कि अपनी कीमत से।दुनिया भर में अक्टूबर महीने में हैलोवीन ट्रेडिशन नहीं, बल्कि ट्रैक्शन बन गया है। वहां जिन विजिटर्स को मैंने देखा, उनमें से अधिकतर को अपनी रील का कोटा पूरा करने का बहाना चाहिए था। हवा में डर नहीं था लेकिन रेस्तरां मालिकों के लिए तो उनकी ब्रांडिंग थी।

कॉर्पोरेट पार्टियों से लेकर फाइव-स्टार होटल सोयरी (एक औपचारिक और फैशनेबल ईवनिंग पार्टी) तक हैलोवीन मार्केट बेहद दमदार तरीके से उभरा है। कुछ घरों तक भी हैलोवीन पार्टियां शुरू हो गई हैं।घरेलू पार्टियों के लिए इम्पोर्टेड सजावटी चीजें धड़ल्ले से बिक रही हैं। किराए के कॉस्ट्यूम महीनों पहले बुक होते हैं। रेस्तरां हैलोवीन थीम्ड ‘स्पूक मेनू’ डिजाइन कर लेते हैं।

इसलिए नहीं कि कोई मांग रहा है, बल्कि कोई भी रेस्तरां मालिक यह ट्रेंड छोड़ना नहीं चाहता।कोलंबो के रेस्तरां सबसे चहल-पहल भरे थे, क्योंकि हर टेबल पर कैंडल लाइट्स के बीच मूडी शूट चल रहे थे। जेन-जी अच्छे-खासे मेकअप और रोमांचक आउटफिट्स में आए। इसने हैलोवीन को डरावना कम और रचनात्मकता और स्टाइल से भरा अधिक बना दिया था।

डिजिटल कल्चर में पली-बढ़ी पीढ़ी के लिए हैलोवीन बस एल्गोरिदम में फिट बैठता है। यह साल का वो समय है, जब वे अपरिचित और कभी-कभी बदसूरत दिख सकते हैं और फिर भी ढेरों लाइक्स और प्रशंसा पा सकते हैं। और धीरे-धीरे यह इम्पोर्टेड होली-डे अब सभी जगहों पर एक सामाजिक रस्म बन गई है।दिलचस्प यह है कि कइयों के लिए भले जिंदगी पहले ही डरावनी है, फिर भी डर बिक रहा है। हर कोई इस फंतासी का खर्च नहीं उठा सकता।

अधिकतर शहरों में इससे सांस्कृतिक विभाजन हो सकता है, लेकिन रेस्तरां मालिकों के लिए मुनाफे का स्वाद हमेशा मीठा है। हैलोवीन धीरे-धीरे नई दुनिया का आईना बन गया है। जरूरत से अधिक महंगा नकली खून और मकड़ी के जाले हैलोवीन का सबसे डरावना पहलू नहीं, लेकिन डिनर का बिल तयशुदा तौर पर किसी को भी भयभीत कर सकता है।फंडा यह है कि आधुनिक दुनिया में डर ऐसी चीज नहीं रही, जिससे बचना पड़े, बल्कि यह बेचने और मुनाफा कमाने का जरिया बन गया है।

खबरें और भी हैं…

Source link

Check Also
Close



DEWATOGEL


DEWATOGEL