Monday 01/ 12/ 2025 

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N. Raghuraman’s column: Why should drivers be treated like family? | एन. रघुरामन का कॉलम: क्यों ड्राइवरों को परिजनों की तरह ट्रीट करना चाहिए?

1 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

सेटअप : कल्पना कीजिए कि आप पत्नी के साथ थिएटर में बैठे हैं। फिल्म की शुरुआत में कैमरा एक फर्स्ट-पर्सन परिप्रेक्ष्य की फिल्म दिखा रहा है, यानी कैमरे को हर दर्शक की आंख की जगह पर रखा गया है। आंख में आगे की सपाट सड़क और चारों ओर से गुजरती हरियाली दिख रही है। थिएटर में दर्शक इस खूबसूरत नजारे का आनंद ले रहे हैं और पति-पत्नी एक-दूसरे का हाथ पकड़कर महसूस कर रहे हैं कि मानो गाड़ी वही चला रहे हों।

डिस्ट्रैक्शन : लोकेशन-बेस्ड ब्रॉडकास्टिंग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके क्रिएटिव टीम ने लगभग सभी दर्शकों के मोबाइल पर टेक्स्ट मैसेज भेज दिया। ये नंबर ऑनलाइन बुकिंग से लिए गए थे। प्रभाव : फिल्म देख रहे 99% दर्शक सहज रूप से फोन पर मैसेज पढ़ने के लिए नीचे झुके। जैसे ही उनकी आंखें मोबाइल स्क्रीन पर गईं, उसी पल सिनेमा स्क्रीन पर चल रही कार अचानक भयावह तरीके से क्रैश हो गई। जोरदार आवाज और विजुअल शॉक से दर्शक स्तब्ध रह गए।

संदेश : कुछ सेकंड बाद स्क्रीन पर एक स्पष्ट और कड़ा संदेश आया– ‘गाड़ी चलाते समय मोबाइल का इस्तेमाल अब मौत का सबसे बड़ा कारण बन चुका है।’ यह फॉक्सवैगन का बेहद सफल और वायरल रोड सेफ्टी कैम्पेन ‘आइज ऑन द रोड’ था। हांगकांग के मूवी थिएटर में इसे प्रदर्शित किया गया, जिसमें एक लाइव कार क्रैश के विज्ञापन से लोगों को ड्राइविंग के दौरान ध्यान भटकने के खतरों के प्रति सावचेत किया गया। 10 साल पुराना यह विज्ञापन मुझे तब याद आया, जब मुझे पता चला कि सोमवार को विभिन्न ट्रांसपोर्ट संगठनों ने ऐसे ड्राइवरों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई, जो ऑनलाइन फेम के लिए गाड़ी चलाते वक्त माेबाइल पर रील्स/वीडियो बनाते हैं। पहले यही ड्राइवर पेट्रोल बचाने के लिए ढलान पर गाड़ी को न्यूट्रल पर डालने की गलती करते थे।

अब वे ‘रील्स की बीमारी’ के शिकार हैं। महाराष्ट्र स्टेट गुड्स एंड पैसेंजर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष बाबा शिंदे ने मीडिया से बातचीत में स्वीकारा कि आजकल काफी ट्रक ड्राइवर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बन गए हैं। ‘चूंकि इनमें से कुछ के सब्स्क्राइबर भी बन गए, इसलिए बाकी लोग भी जोखिम समझे बिना उनकी नकल कर रहे हैं।’

वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसका दोष उनके ही एक साथी राजेश रवानी को दिया जा सकता है, जिसके 1.8 मिलियन सब्स्क्राइबर हैं। वह सोशल मीडिया पर ट्रकिंग और कुकिंग के कंटेंट डालता है। जामताड़ा का पेशेवर ट्रक ड्राइवर राजेश दर्शकों को अपने दिन, गंतव्य और खाने के बारे में बताता है।

फोटो, वीडियो के जरिए ट्रक लोड होते दिखाता है, मुश्किलों के बारे में बताता है और दिखाता है कि कैसे वह ट्रक के भीतर खाना बनाता है। वह महीने में 4-5 लाख रुपए तक कमा लेता है, जो उसकी ड्राइविंग की तनख्वाह से कहीं ज्यादा है। इस ऑनलाइन सफलता से उसने नया घर खरीद लिया है। वह ऐसे गिने-चुने ड्राइवरों में से एक है।

किसी भी नौकरी का महत्व कई कारकों पर निर्भर करता है- जैसे, व्यक्तिगत मूल्य, समाज की जरूरत, मानव जीवन पर सीधा प्रभाव और भलाई। लेकिन ड्राइवर का काम सबसे अलग है। ड्राइविंग का काम गंभीर और जिम्मेदारी भरा है, क्योंकि इसमें एक संभावित विनाशकारी ताकत को संभालना पड़ता है।

इसके लिए एकाग्रता चाहिए, ताकि स्वयं ड्राइवर की, यात्रियों की, राहगीरों की और कीमती सामान की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। इसीलिए उसे स्वभाव से ही अधिक परवाह करने वाला होना चाहिए, सिर्फ तनख्वाह देने वाले मालिक के प्रति नहीं- बल्कि अपने परिवार के लिए भी। यही गुण उसे सड़क पर मूर्खता करने से स्वत: ही रोकेगा।

फंडा यह है कि सड़कों पर बदलते हालात के बीच सुरक्षित यात्रा के लिए ड्राइवरों को अत्यधिक कौशल चाहिए। इसलिए उन्हें अच्छा वेतन दो, ताकि वो आपको और मुझे सावधानी से यात्रा करा सकें।

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