Thursday 20/ 11/ 2025 

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Nandan Nilekani’s column: We can make the electricity revolution even better | नंदन नीलेकणी का कॉलम: इलेक्ट्रिसिटी-क्रांति को हम और बेहतर बना सकते हैं

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9 घंटे पहले

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नंदन नीलेकणी पूर्व चेयरमैन, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (आधार) - Dainik Bhaskar

नंदन नीलेकणी पूर्व चेयरमैन, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (आधार)

आज पूरी दुनिया के ऊर्जा तंत्रों में तेज और बड़े बदलाव हो रहे हैं। एक दशक बाद ये पूरी तरह से अलग दिखेंगे। इकोनॉमी में बढ़ता विद्युतीकरण इसका कारण है। ज्यादा से ज्यादा लोग न सिर्फ इलेक्ट्रिक वाहन, हीट पंप और स्मार्ट (डिजिटली कनेक्टेड) उपकरण अपना रहे हैं, बल्कि बिजली की भारी खपत करने वाले डेटा सेंटरों में भी बेतहाशा बढ़ोतरी देखी जा रही है। इनमें से बहुत-से एआई से जुड़े हैं। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि 2035 तक ऊर्जा की कुल मांग की तुलना में अकेली बिजली की मांग छह गुना तेजी से बढ़ेगी।

ऊर्जा क्षेत्र का आपूर्ति सेक्टर भी तेजी से सुधर रहा है। खासकर, सौर ऊर्जा जैसे रिन्यूएबल स्रोत दुनिया भर की बिजली प्रणालियों में अहम भूमिका निभाने जा रहे हैं। सही नीति और बुनियादी ढांचा मिले तो ये ट्रेंड और तकनीकें अधिक ऊर्जा स्वतंत्रता दे सकती हैं। लेकिन इससे ग्रिड प्रबंधन में एक और जटिलता जुड़ती है, ऑपरेटरों को एक ओर बिजली का परिवर्तनशील प्रवाह ध्यान में रखना पड़ता है, वहीं उपभोक्ता के लिए किफायती बिजली भी सुनिश्चित करनी होती है।

ग्रिडों को ज्यादा से ज्यादा स्थानों और उपकरणों को भी बिजली देनी है। 2030 तक घरों और व्यवसायों में 30 अरब से अधिक डिजिटली कनेक्टेड उपकरण होंगे, जो आज की तुलना में दोगुने हैं। ऐसे में ऊर्जा प्रणालियों को मांग-आपूर्ति के उतार-चढ़ावों के अनुसार अनुकूल करने की दक्षता मौजूदा अनुमान की तुलना में तेजी से बढ़ानी होगी। डिजिटलीकरण इसके लिए अहम साधन हो सकता है, भले इससे कुछ नई बाधाएं सामने आती हों।

विद्युत प्रणालियों को ऑप्टिमाइज करने वाले डिजिटल उपकरण दक्षता में सुधार के साथ किफायत बढ़ा सकते हैं और ऊर्जा सुरक्षा सुदृढ़ कर सकते हैं। खासकर, एआई में इसकी व्यापक क्षमता है। हालिया अध्ययनों ने स्पष्ट किया है कि पहले से मौजूद उपकरण ही मौसम-संवेदी उत्पादन स्रोतों के आउटपुट की बेहतर भविष्यवाणी कर सकते हैं। ये मांग-आपूर्ति की अनुरूपता बनाए रखने में मदद कर सकते हैं और बिजली ढांचे में विसंगति का पता लगाकर इसे दुरुस्त कर सकते हैं।

लेकिन इन अवसरों का अधिकतम लाभ उठाने के लिए कुछ चुनौतियों से निपटना पड़ेगा। भले ही मांग-आपूर्ति से जुड़ी नई तकनीकों में अधिकतर डिजिटल रूप से सक्षम हैं, यानी उनमें दूसरी डिजिटल प्रणालियों से जुड़ने की क्षमता है- लेकिन वे अलग-अलग काम करती हैं।

अक्सर इनमें ग्रिड के साथ संवाद बनाए रखने की जरूरी कार्यक्षमता नहीं होती। ऐसी परेशानियां अनावश्यक अक्षमता पैदा करती हैं, लागत बढ़ाती हैं, इनोवेशन की राह रोकती हैं और डिजिटलीकरण के फायदों को साकार करना मुश्किल बनाती हैं।

इसीलिए, हमारी ऊर्जा प्रणालियों में महज डिजिटल क्षमताएं होना पर्याप्त नहीं। उन्हें इंटर-ऑपरेबल बनाना होगा, ताकि नई तकनीकों को सहजता से लागू और एकीकृत किया जा सके। नेटवर्क की हर यूनिट जब प्रभावी संवाद कर सकेगी तो मनचाहे परिणाम तेजी से मिल पाएंगे।

यदि बेहतर तरीके से लागू किया जाए तो डिजिटल तकनीकों के बीच अधिक इंटर-ऑपरेबिलिटी मांग और आपूर्ति, दोनों ही पक्षों पर वास्तविक लाभ दे सकती है। स्मार्ट ईवी चार्जर ऐसे समय पर चार्जिंग कर सकते हैं, जब रिन्यूएबल ऊर्जा उत्पादन अधिक हो।

आधुनिक उपकरण कीमतों को लेकर रियल टाइम सिग्नल दे सकते हैं, जिससे पीक समय में बिजली खपत कम हो सकेगी। रूफटॉप सोलर सिस्टमों को एकीकृत कर ग्रिड में बिजली दी जा सकती है। उपयुक्त फ्रेमवर्क में ये संसाधन एक साथ काम कर सकते हैं।

जब तक हम इंटर-ऑपरेबिलिटी के लिए अधिक प्रयास नहीं करेंगे, तब तक संभावनाओं का उपयोग न कर पाने, मौका चूकने, फंसे हुए निवेश और बढ़ते ऊर्जा-सुरक्षा खतरों वाले भविष्य का जोखिम उठाएंगे। बीते चार सालों में ऊर्जा सुविधाओं पर साइबर हमले तीन गुना से अधिक बढ़े हैं।

एआई इन हमलों को और पेचीदा बना रहा है। इंटर-ऑपरेबल सिस्टम ऐसे खतरों के प्रति बेहतर कारगर हो सकता है। इसीलिए हम सरकारों और उद्योगों से मजबूत और सुरक्षित डिजिटल ऊर्जा प्रणालियों पर मिलकर काम करने की अपील कर रहे हैं।

यह स्पष्ट है कि हमें एक साझा दृष्टिकोण और दीर्घकालिक योजना की सबसे ज्यादा जरूरत है। यूनिवर्सल आइडेंटिटी, मशीन रीडेबिलिटी और सत्यापन की क्षमता के साथ डिजिटल एनर्जी ग्रिड के ताजा प्रस्तावों का उद्देश्य एनर्जी इको-सिस्टम की एकीकृत डिजिटल बुनियाद बनाना है। ये खासियतें ऊर्जा के पारदर्शी, भरोसेमंद और इंटर-ऑपरेबल लेनदेन को सुलभ बनाएंगी। इन्हीं विचारों पर आगे बढ़ते हुए भारत ने इंडिया एनर्जी स्टैक (आईईएस) की शुरुआत की है।

2030 तक घरों और व्यवसायों में 30 अरब से अधिक डिजिटली कनेक्टेड उपकरण होंगे, जो आज की तुलना में दोगुने हैं। ऐसे में ऊर्जा प्रणालियों को मांग-आपूर्ति के अनुसार अनुकूल करने की दक्षता तेजी से बढ़ानी होगी। (इस लेख के सहलेखक इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के कार्यकारी निदेशक फतीह बिरोल हैं। @प्रोजेक्ट सिंडिकेट)

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