Monday 01/ 12/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – Do something to make your beloved city popular | एन. रघुरामन का कॉलम: अपने प्यारे शहर को लोकप्रिय बनाने के लिए कुछ करिए

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8 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

31 अक्टूबर 2025 को लखनऊ को यूनेस्को सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी के तौर पर मान्यता मिली। उज्बेकिस्तान के समरकंद में यूनेस्को महासभा के 43वें सत्र में यह घोषणा की गई। इस मान्यता से लखनऊ की माखन-मलाई समेत अन्य समृद्ध अवधी खान-पान को सम्मान मिला है।

हैदराबाद के बाद लखनऊ दूसरा शहर है, जिसे यूनेस्को क्रिएटिव सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी के तौर पर मान्यता मिली है। यह सम्मान शहर की पाक-कला परंपराओं, स्ट्रीट फूड संस्कृति और खाद्य प्रथाओं के प्रति समर्पण को दर्शाता है। अब लखनऊ दुनिया भर में यह खिताब पाने वाले 69 शहरों में से एक बन गया है। इनमें से 21 एशिया में हैं।

जिस दिन यह खबर आई, उस दिन मैं अपने एक मित्र के दफ्तर गया था, जो कि मुंबई के फ्लोरा फाउंटेन के पास है। यह स्मारक मैं 1960 के दशक से देखता रहा हूं। 2025 में आज इसके समीप से अंडरग्राउंड मेट्रो गुजरती है।

मुझे हमेशा आश्चर्य होता है कि अपने अतीत को मजबूती से थामे बॉम्बे का यह पुराना शहर धीरे-धीरे तेज रफ्तार परिवहन और आधुनिक सुविधाएं जोड़ते हुए कैसे मुंबई के भविष्य की ओर बढ़ रहा है। यही नजारा मरीन ड्राइव पर भी दिखता है।

यह जगह क्वीन्स नेकलेस के नाम से विख्यात है, क्योंकि रात को चमकते हुए यह एक नेकलेस के जैसा दिखता है। इसी शहर के उत्तर और पश्चिम में किसी को भी चमचमाते हुए स्काई स्क्रैपर्स दिखेंगे, जो इस शहर को न्यूयॉर्क जैसी झलक देते हैं। इसी तरह लखनऊ का विकास भी बहुत तेजी से हो रहा है। लेकिन जड़ें आज भी मजबूत हैं।

शहर की गलियों में अत्याधुनिक एसयूवी कारों के बगल में दौड़ते तांगे देखे जा सकते हैं। गंगा-जमुनी तहजीब को अपनाने की अपनी खासियत के कारण ही लखनऊ लंबे समय से विविध खानपान और जायके का केन्द्र बना रहा है।

इन स्वादिष्ट व्यंजनों को बनाने वाले लोग खानपान और प्रस्तुतिकरण के साथ प्रयोग करते हुए अपने मसालों के राज संजोए रखने और अगली पीढ़ी को सौंपने में सफल रहे। उदाहरण के लिए, आज हम कहते हैं कि मुगलई व्यंजन अवधी व्यंजनों का ही रूपांतर हैं। कहा जाता है कि नवाब मुगल साम्राज्य में गवर्नर हुआ करते थे और वे ही लखनऊ के व्यंजनों में अपना जायका लेकर आए।

इस हफ्ते बुधवार को मैंने देखा कि विश्व धरोहर सप्ताह के मौके पर कोलकाता के लगभग 30 विरासत प्रेमी अपने ही शहर में दो घंटे की हेरिटेज वॉक पर निकले। ये युवा अपने शहर को बुजुर्गों की नजरों से देखने की कोशिश कर रहे थे। 76 साल के स्थानीय निवासी अभिजन बंद्योपाध्याय मोहल्ले की कहानियां सुनाते हुए एक घर के सामने रुके, जहां कभी विद्यासागर (ज्ञान के सागर) आए थे।

कुछ लोगों को शायद याद ना हो, उनका असली नाम ईश्वर चंद्र बंद्योपाध्याय था। वे 19वीं सदी के जाने-माने भारतीय समाज सुधारक, शिक्षाविद् और लेखक थे। वे बंगाल पुनर्जागरण की प्रमुख हस्ती थे। उन्होंने बांग्ला गद्य को आधुनिक रूप दिया, महिला अधिकारों की रक्षा की और शिक्षा क्षेत्र में क्रांति लाए। उन्हें ‘बांग्ला गद्य का जनक’ कहा जाता है। उन्हें हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 पारित कराने में भूमिका और बाल-विवाह के विरोध के लिए भी याद किया जाता है।

भोपाल, जयपुर, सूरत या आगरा समेत कई शहरों की यात्राओं में मैंने देखा है कि इन शहरों में सदियों पुरानी बुनियाद को आधुनिकता के साथ संभालकर रखा गया है। लेकिन इसे देखने-खोजने की जिम्मेदारी नए निवासियों पर ही नहीं छोड़ देनी चाहिए।

कुछ विरासत प्रेमियों को कम से कम एक-दो घंटे की संडे वॉक करानी चाहिए, ताकि नई पीढ़ी को इतिहास के साथ बदलते परिवेश की जानकारी दी जा सके। और बताइए, इसके लिए सर्दियों से बेहतर मौसम क्या हो सकता है?

फंडा यह है कि यदि आप अपने शहर पर गर्व करते हैं, जहां आपने शेष जीवन बिताने का फैसला कर लिया है तो उस शहर को सम्मान दिलाने के लिए हमें कुछ करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं कर सकते तो शहर की सबसे अच्छी जगहों को खूब प्रचारित करें।

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