Air Marshal Diptendu Chaudhari’s column: Despite the Tejas accident, we must enhance our capabilities | एयर मार्शल दीप्तेन्दु चौधरी का कॉलम: तेजस हादसे के बावजूद हमें अपनी क्षमताओं को बढ़ाना है

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6 घंटे पहले
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एयर मार्शल दीप्तेन्दु चौधरी वायुसेना के रिटायर्ड अधिकारी
2025 के दुबई एयर-शो में भारत का तेजस लड़ाकू विमान अपने प्रसिद्ध ‘आउटसाइड टर्न’ करतब का प्रदर्शन करते हुए दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसे लाइव देखने वाले हजारों दर्शकों से लेकर ऑनलाइन इसे देख चुके दुनिया भर के करोड़ों लोग उस दु:खद दृश्य को कभी नहीं भुला पाएंगे। इस तरह के हादसे उच्च-प्रदर्शन वाले कॉम्बैट प्लेटफॉर्म उड़ाने में निहित जोखिमों की निर्मम सच्चाई को सामने ला देते हैं।
याद रहे कि मिलिट्री एविएशन दुनिया के सबसे खतरनाक पेशों में से है, क्योंकि युद्ध की स्थिति न होने पर भी इसमें दुर्घटनाएं होती रहती हैं। और जब बात नीची ऊंचाई पर डिस्प्ले फ्लाइंग की हो तो खतरा और बढ़ जाता है।
सभी पायलट और उनके परिजन इस वास्तविकता को जानते-समझते हैं और इसे इस पेशे का अनिवार्य हिस्सा मानकर स्वीकार करते हैं। लेकिन जब भी कोई पायलट हादसे का शिकार होता है तो एविएशन-कम्युनिटी में शामिल हममें से हर एक का थोड़ा हिस्सा भी उनके साथ टूट जाता है।
हमें इस बात का सम्मान करना चाहिए कि पायलट ने अपने तमाम अर्जित कौशलों को उस विमान को उड़ाने में लगाया था, उसकी विश्वसनीयता पर भरोसा किया था, और अपनी जान दांव पर लगाई थी। जो हुआ, वह भयावह है, लेकिन यह इस तरह की पहली दुर्घटना नहीं थी।
वास्तव में, वायुसेनाओं और वैश्विक एविएशन उद्योग में इस तरह के प्रदर्शनों के दौरान होने वाले हादसों का लंबा इतिहास है। लेकिन तेजस हादसे की परिस्थितियां ऐसी हैं, जिन्होंने अटकलों व कयासों की बाढ़ ला दी है। इसने तेजस कार्यक्रम से जुड़ी पुरानी चुनौतियों पर फिर से ध्यान केंद्रित कर दिया है। इनमें भारतीय वायुसेना (आईएएफ) की कॉम्बैट ताकत और हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की विश्वसनीयता से जुड़े प्रश्न शामिल हैं।
स्वयंभू एविएशन विशेषज्ञों और रक्षा विश्लेषकों द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे पूर्वग्रह से भरे नैरेटिव के बावजूद राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से वस्तुनिष्ठता और दूरगामी दृष्टि की आवश्यकता को कम करके नहीं आंका जा सकता। कॉम्बैट एयर-क्रू और प्लेटफॉर्म भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा का अनिवार्य और अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
इसीलिए, एक तरफ जहां दुर्घटना के कारणों की जांच जारी है और उसकी रिपोर्ट आवश्यक सुधारों का मार्ग निर्धारित करेगी, वहीं मीडिया की बहसों के बीच सबसे महत्वपूर्ण यह है कि तेजस कार्यक्रम और उसकी सफलताओं पर ध्यान केंद्रित रखा जाए।
बहरहाल, भविष्य के उड़ान-पथ को निर्धारित करने वाले प्रमुख पहलुओं में सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण है भारतीय वायुसेना की घटती लड़ाकू क्षमता को रोकना। यही कारण है कि अपनी पूरी क्षमताओं के थ तेजस एमके वन-ए का तेज और बड़े पैमाने पर उत्पादन अनिवार्य है।
राष्ट्र की वायु शक्ति के संरक्षक के रूप में भारतीय वायुसेना की लड़ाकू क्षमता को मजबूत करने की आवश्यकता केवल सेना की ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय जिम्मेदारी भी हो। भारत के केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में एचएएल इसमें एक प्रमुख सहभागी है।
उत्पादन में लगातार हो रही ढिलाई और समय पर डिलीवरी न कर पाने को लेकर वायुसेना प्रमुख के विभिन्न वक्तव्य भी वर्षों से भारतीय वायुसेना की घटती लड़ाकू क्षमता को लेकर उनकी गहरी चिंताओं को व्यक्त करते रहे हैं। इसके बावजूद, भारतीय वायुसेना द्वारा दिए गए दो बड़े ऑर्डर एचएएल पर जताए गए भरोसे का प्रमाण हैं।
हमारी वायु शक्ति की क्षमताओं में निर्मित अभाव को एक स्वदेशी लड़ाकू विमान से भरना राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए और एचएएल को इस जिम्मेदारी को स्पष्ट रूप से समझना और स्वीकार करना चाहिए। उसे मिशन-मोड में कार्य करना होगा। उसकी सफलता जितनी उसके भविष्य के लिए अनिवार्य है, उतनी ही राष्ट्र की सुरक्षा के लिए भी है।
दुबई की त्रासदी के बावजूद हमारा काम नहीं रुकना चाहिए। एचएएल को पूरी प्रतिबद्धता के साथ काम करते हुए भारतीय वायुसेना द्वारा दिए ऑर्डरों को पूरा करना होगा। तेजस को अंतिम स्वरूप देकर उसके लिए अपने उत्पादन की विश्वसनीयता और भरोसेमंद प्रदर्शन को स्थापित करना आवश्यक है, ताकि वायुसेना और राष्ट्र का विश्वास जीता जा सके।
इस हादसे ने तेजस कार्यक्रम से जुड़ी चुनौतियों पर फिर से ध्यान केंद्रित कर दिया है। इनमें भारतीय वायुसेना की कॉम्बैट ताकत और हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) की विश्वसनीयता से जुड़े प्रश्न शामिल हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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