Pt. Vijayshankar Mehta’s column – Don’t associate meditation with any goal, but make it a journey | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: ध्यान को किसी लक्ष्य से न जोड़ें, बल्कि यात्रा बना लें

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7 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
यदि किसी बहती नदी के पास थोड़ी देर बैठना मिले तो जरूर बैठिए, क्योंकि ध्यान के लिए इससे अच्छा अवसर नहीं होगा। और खासतौर पर गंगाजी के सामने बैठना मिल जाए तो बात ही क्या है। पहला संदेश तो ये मिलेगा कि जिस धारा को आप देख रहे हैं, वो अगले पल बदल गई।
जीवन ऐसा ही है, बहता जा रहा है। दूसरी बात यह है कि गंगाजी समुद्र में जाने की तैयारी कर रही हैं। हमारे भीतर भी जो नदी है- जिसको हम जीवनगंगा कह लें- उसे उस समुद्र तक जाना ही है, जिसे परमात्मा कहते हैं। इसे सहज बहने दें। और उसके लिए सबसे अच्छा प्रयोग है, ध्यान करते रहें। जैसे मन को अंग नहीं, अवस्था कहा गया।
ऐसे ही ध्यान क्रिया नहीं, दशा है। हम ध्यान को समय से ना जोड़ें। सुबह करना, शाम करना, कब करना, कैसे करें। ध्यान को जीवनशैली ही बना लें। जो काम होश में करेंगे, वर्तमान में रुककर करेंगे- वह ध्यान ही होगा। ध्यान को किसी लक्ष्य से न जोड़ें, यात्रा ही बना लें। जिसकी यात्रा में ध्यान है, उसके जीवन में शांति चलकर आएगी।
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