Friday 24/ 10/ 2025 

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वक्फ कानून को लेकर जमीअत उलमा-ए-हिंद पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, कर दी ये बड़ी मांग

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वक्फ कानून को लेकर इन दिनों देश में जगह-जगह तूफान सा मचा हुआ है। कई विपक्षी दल और मुस्लिम संगठन इस कानून की खिलाफत कर रहे हैं और शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे हैं। इसी बीच मुस्लिम संगठन जमीअत उलमा-ए-हिंद इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। बता दें कि इससे पहले ही कई विपक्षी दल और मुस्लिम संगठन सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती देने पहुंच गए हैं।

मौलिक अधिकारों का बताया उल्लंघन

सुप्रीम कोर्ट में जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद महमूद असद मदनी ने वक्फ (संशोधन) एक्ट 2025 के विरुद्ध पीआईएल दायर की है, जिसमें कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। जानकारी दे दें कि वक्फ कानून को राष्ट्रपति के मुहर के बाद 8 अप्रैल 2025 से देश भर में प्रभावी कर दिया गया है। याचिका में जमीअत ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि इस कानून में एक नहीं बल्कि भारत के संविधान के कई आर्टिकल्स, विशेष रूप से आर्टिकल 14, 15, 21, 25, 26, 29 और 300-ए के तहत मिले मौलिक अधिकारों का घोर उल्लंघन किया गया है, जो मुसलमानों के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों और पहचान के लिए गंभीर खतरा है। 

सुप्रीम कोर्ट से की मांग

मौलाना मदनी ने आगे पीआईएल में कहा कि यह कानून न केवल असंवैधानिक है बल्कि बहुसंख्यक मानसिकता की उपज है, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समाज के सदियों पुराने धार्मिक और कल्याणकारी ढांचे को नष्ट करना है। यह कानून सुधारात्मक पहल के नाम पर भेदभाव का झंडाबरदार है और देश की धर्मनिरपेक्ष पहचान के लिए खतरा है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि वह वक्फ (संशोधन) एक्ट 2025 को असंवैधानिक घोषित करे और इसके क्रियान्वयन पर तुरंत रोक लगाएं।

मंसूर अली खान कर रहे पैरवी

जानकारी दे दें कि इस मामले में मौलाना मदनी की पैरवी एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड मंसूर अली खान कर रहे हैं। जमीअत उलमा-ए-हिंद के कानूनी मामलों के संरक्षक मौलाना और एडवोकेट नियाज अहमद फारूकी ने बताया कि जमीअत उलमा-ए-हिंद ने प्रमुख वरिष्ठ वकीलों से भी राय-मशविरा ली हैं।

मौलाना मदनी ने अपनी याचिका में यह पक्ष रखा है कि इस अधिनियम से देश भर में वक्फ संपत्तियों की परिभाषा, संचालन और प्रबंधन प्रणाली में बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किया गया है, जो इस्लामी धार्मिक परंपराओं और न्यायिक सिद्धांतों के विपरीत है। याचिका में कहा गया है कि यह संशोधन दुर्भावना पर आधारित हैं जो वक्फ संस्थाओं को कमजोर करने के उद्देश्य से किए गए हैं। 

कानून में बताई कमियां

उन्होंने इस कानून की कई कमियों का भी इस याचिका में उल्लेख किया है, जिसमें यह भी शामिल है कि अब केवल वही व्यक्ति वक्फ (संपत्तियों का दान) कर सकता है जो 5 साल से प्रैक्टिसिंग मुसलमान हो। इस शर्त का किसी भी धार्मिक कानून में कोई उदाहरण नहीं मिलता, इसके साथ ही यह शर्त लगाना कि वक्फ करने वाले को यह भी साबित करना पड़ेगा कि उसका वक्फ करना किसी षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं है, यह बेकार का कानूनी बिंदु है और यह संविधान के आर्टिकल 14 और 15 का उल्लंघन है। 

इसके अलावा, वक्फ बाई-यूजर की समाप्ति से उन धार्मिक स्थानों के खतरा है जो ऐतिहासिक रूप से लोगों के लगातार इस्तेमाल से वक्फ का दर्जा हासिल कर चुके हैं। उनकी संख्या 4 लाख से अधिक है। इस कानून के लागू होने के बाद यह संपत्तियां खतरे में पड़ गई हैं और सरकारों के लिए इन पर कब्जा करना आसान हो गया है। इसी प्रकार, केंद्रीय और राज्य वक्फ कौंसिलों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना धार्मिक मामलों के प्रबंधन का अधिकार देने वाले आर्टिकल 26 का साफ तौर पर उल्लंघन है।

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