Tuesday 20/ 05/ 2025 

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केदारनाथ में घोड़े-खच्चरों के संचालन पर अभी जारी रहेगी रोक, दो दिन में 13 की मौत

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Image Source : PTI
घोड़ा खच्चर पर जाते यात्री।

केदारनाथ पैदल यात्रा मार्ग पर घोड़े-खच्चरों की बीमारी से मौत के बाद उनके संचालन पर लगाई गई रोक फिलहाल जारी रहेगी। प्रदेश के पशुपालन सचिव डॉ. बी. वी. आर. सी पुरुषोत्तम ने बुधवार को बताया कि केदार घाटी में घोड़े-खच्चरों में बढ़ते संक्रमण को देखते हुए स्थानीय लोगों, घोड़े-खच्चर व्यवसायियों व अन्य संगठनों द्वारा यात्रा मार्ग पर उनके संचालन पर लगी रोक को आगे बढाने का अनुरोध किया गया है ताकि जानवरों में संक्रमण बढ़ने की स्थिति उत्पन्न न हो। उन्होंने बताया कि पैदल यात्रा मार्ग पर घोड़े-खच्चरों के पुनः संचालन के लिए जिला प्रशासन द्वारा स्थानीय स्तर पर निर्णय लिया जाएगा।

8 घोड़ों की डायरिया और 5 की एक्यूट कोलिक से मौत

पुरुषोत्तम ने बताया कि रविवार और सोमवार को यात्रा में 13 घोड़े खच्चरों के मरने की सूचना मिली थी। उन्होंने बताया कि इनमें से 8 घोड़ों की मृत्यु ‘डायरिया’ एवं 5 घोड़ों की मृत्यु ‘एक्यूट कोलिक’ से हुई है। उन्होंने कहा कि डिटेल रिपोर्ट के लिए इन घोड़ों के सैंपल उत्तर प्रदेश के बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) भेजे गए हैं। मामले की गंभीरता को देखते हुए 22 से अधिक चिकित्सकों की टीम को यात्रा मार्ग में तैनात किया गया है।

जांच रिपोर्ट नेगेटिव आने पर ही होगा संचालन

उन्होंने कहा कि अस्वस्थ घोड़े-खच्चरों को यात्रा मार्ग में नहीं चलने दिया जाएगा जबकि स्वस्थ घोड़ों के सैंपल्स की जांच रिपोर्ट नेगेटिव आने पर ही उन्हें यात्रा मार्ग में संचालित करने की अनुमति दी जाएगी। पुरुषोत्तम ने बताया कि एक महीने पहले रुद्रप्रयाग जिले के दो गांवों में घोड़े-खच्चरों के सैंपल लिए गए थे जिनमें से कुछ घोड़ों में एक्वाइन इन्फलूएंजा के लक्षण मिले थे। उन्होंने बताया कि इसके बाद 30 अप्रैल तक 26 दिनों में रिकॉर्ड 16 हजार घोड़ों की जांच की गई थी। इनमें से 152 घोड़े-खच्चरों के सीरो संबंधी सैंपल्स की जांच रिपोर्ट पॉजिटिव पाई गई थी, लेकिन इनके आरटीपीसीआर परीक्षण निगेटिव पाए गए थे।

बता दें कि साढ़े 11 हजार फुट से अधिक की उंचाई पर स्थित केदारनाथ धाम पहुंचने के लिए करीब 16 किलोमीटर की पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। चढ़ाई वाले इस रास्ते को तय करने के लिए कुछ श्रद्धालुओं को पिट्ठू, पालकी या घोड़े-खच्चरों का सहारा लेना पड़ता है।

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