Shekhar Gupta’s column – Trump has changed the rules of diplomacy | शेखर गुप्ता का कॉलम: ट्रम्प ने डिप्लोमेसी के नियम बदल दिए हैं

4 घंटे पहले
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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’
ट्रम्प ने पारम्परिक कूटनीति पर सीधा हमला किया है। भारत को उनकी शेखीबाजी के नतीजे भुगतने पड़ रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर को रोकने में मध्यस्थता के उनके दावों पर डैमेज कंट्रोल करना पहले ही काफी मुश्किल रहा है।
अब उन्होंने इसमें यह भी जोड़ दिया है कि पांच जेट मार गिराए गए। उनकी ओर से फैलाए गए भ्रम की एक मिसाल यह है कि यह सब ऐसे वक्त हुआ, जब एक दिन पहले ही उनके प्रशासन ने भारत को एक बड़ा फायदा दिया था- उन्होंने पहलगाम हत्याकांड के लिए जिम्मेदार ‘द रेसिस्टेंट फ्रंट’ को लश्कर-ए-तैयबा का साथी बताते हुए उसे विदेशी आतंकी संगठन घोषित कर दिया था। इन विरोधाभासों को आप कैसे समझाएंगे?
अमेरिका को फिर से महान बनाने की कोशिश में ट्रम्प दुनिया के उन हिस्सों में अमेरिका विरोधी भावना में फिर से जान फूंक रहे हैं, जहां वह मृतप्राय हो चुकी थी। अब तक का उनका तरीका अपने सहयोगियों को अपमानित करने और अपने तथा उनके प्रतिद्वंद्वियों के साथ छेड़खानी करना वाला रहा है।
भारत के मामले में वे बार-बार बड़े दावे के साथ कहते रहे हैं कि उनके हस्तक्षेप और मध्यस्थता के कारण ही पाकिस्तान के साथ युद्धविराम हुआ। इस तरह उन्होंने भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू पर तौले जाने को लेकर हमारे पुराने जख्म फिर से कुरेद दिए हैं। और क्या पता ट्रम्प इस साल भारत में होने जा रहे क्वाड शिखर सम्मेलन में शरीक होने के लिए पाकिस्तान में रुकते हुए भारत आएं!
हाल में उन्होंने कम-से-कम चार बयान ऐसे दिए हैं, जिनमें नरेंद्र मोदी और आसिम मुनीर का जिक्र एक ही वाक्य में किया गया। 19 जून को उन्होंने कहा कि बेहद स्मार्ट पाकिस्तानी जनरल ने मेरे साथ व्हाइट हाउस में लंच लिया और भारत के प्रधानमंत्री, जो मेरे बहुत अच्छे दोस्त और कमाल के इंसान हैं… वगैरह-वगैरह।
और एक बार फिर हम मानसिक तनाव में जाने लगे, क्योंकि वे फिर हमें पाकिस्तान के साथ जोड़ रहे थे। और अब तो वे मोदी को मुनीर के साथ जोड़ रहे हैं! मैं सलाह दूंगा कि गहरी सांस लीजिए, संयम से काम लीजिए और थोड़ा मुस्कराइए।
ट्रम्प अगर मुनीर और मोदी को एक साथ जोड़ रहे हैं तो इस पर किसे ज्यादा नाराज होना चाहिए? क्या शाहबाज शरीफ को ज्यादा नाराज नहीं होना चाहिए, जिन्होंने मुनीर की वर्दी पर पांचवां स्टार लगाया और उन्हें फील्ड मार्शल का बेटन थमाया? कागज पर तो फील्ड मार्शल पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के प्रति जवाबदेह हैं।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान शरीफ से अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने ही बात की। उनके समतुल्य भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर हैं। शरीफ को इस मेल की शिकायत करनी चाहिए थी। लेकिन उनकी हिम्मत नहीं हुई।
पाकिस्तान की हकीकत और ढोंग की पोल जितनी रूखाई और सच्चाई के साथ ट्रम्प खोलते रहे हैं वैसा अब तक किसी अमेरिकी नेता नहीं किया। जरा सोचिए। भारत दशकों से यही कहता रहा है कि पाकिस्तान का लोकतंत्र एक छलावा है और असली कमान तो फौज के हाथ में रहती है।
पाकिस्तान के प्रति अपने लाड़-प्यार के दिखावे के साथ ट्रम्प भी इस धारणा का समर्थन करते रहे हैं। एक तरह से वे आपका ही काम कर रहे हैं, आपकी पक्की धारणा की पुष्टि कर रहे हैं। उनके पूर्ववर्ती नेता भी इस सच्चाई को जानते थे लेकिन इतने दशकों तक वे पाकिस्तान के लोकतंत्र की बहाली की कोशिश करते रहे (या इसका दिखावा करते रहे)। ट्रम्प के लिए ये पुराने किस्म के बहाने बकवास हैं। किसी देश में असली कमान जिसके हाथ में होगी, वे उसी से बात करेंगे।
ट्रम्प बारीक इशारों-संकेतों और इसरारों वाली निजी बातचीत में कुछ और सार्वजनिक बयान में कुछ और कहने वाली पुरानी किस्म की कूटनीति से ‘बोर’ हो चुके हैं। इसका निष्कर्ष यह है कि आप भरोसा नहीं कर सकते कि वे किसी बात को अपने तक गोपनीय रखेंगे या नहीं।
उदाहरण के लिए, ‘नाटो’ के महासचिव (और नीदरलैंड के पूर्व प्रधानमंत्री) मार्क रत्ती ने उन्हें चापलूसी भरा पत्र भेजा तो उन्होंने तुरंत उसका स्क्रीनशॉट सार्वजनिक कर दिया। यूरोप वाले सन्न रह गए। ट्रम्प यही चाहते हैं- लोगों को स्तब्ध करना, धौंस में रखना। ताकि दुनिया को उनकी और अमेरिका की ताकत का एहसास होता रहे।
जब ट्रम्प हमास से लड़ाई बंद करने को कहते हैं तब यह भी कहते हैं कि गाजा अमेरिका को भेंट में दिया जाएगा, जहां वे समुद्रतटीय रिजॉर्ट बनवाएंगे। और वे ‘एआई’ द्वारा बनाए गए ऐसे ‘मीम’ पोस्ट करते हैं, जिनमें उस समुद्रतट पर मौज मनाने की तस्वीरें होती हैं।
वे ईरान से वार्ता कर रहे होते हैं और जब इजराइल हमले कर रहा होता है, तब वे भी कार्रवाई करने के लिए अपनी ओर से बमबारी करवाने लगते हैं। इसके बाद वे इजराइल को आदेश देते हैं कि वह ईरान को दोस्ती का संकेत देते हुए बमों से लैस अपने विमानों को वापस बुला ले।
वे ईरान के साथ बातचीत फिर शुरू करना, ‘अब्राहम समझौते’ को विस्तार देना, और सऊदी अरब को भी आगे लाना चाहते हैं। वे जेलेंस्की को सार्वजनिक तौर पर अपमानित करते हैं और उन पर दबाव डालते हैं कि अपनी सुरक्षा की कीमत खनिजों के मामले में समझौता करके चुकाएं।
वे ‘नाटो’ को डराने के लिए पुतिन की तारीफ करते हैं और बाद में उनसे चिढ़ भी जाते हैं। अब वे रूसी विदेशी मुद्रा भंडार में अड़ंगा लगाने और ‘पेट्रिएट’ मिसाइलों समेत नए हथियारों के लिए यूरोप से कीमत वसूल रहे हैं।
दुनिया नई हकीकत की आदी हो रही है। हम देखें कि भारत-चीन के बीच तनाव किस तरह घट रहा है, और रूस-भारत-चीन के बीच त्रिपक्षीय संवाद शुरू करने की बातें किस तरह उभर रही हैं। हर देश यह देख रहा है कि ट्रम्प के अमेरिका के साथ रिश्ते में वह अपना वजन किस तरह बढ़ा सकता है।
यहां तक कि युद्ध पीड़ित कॉन्गो भी यह प्रदर्शित कर रहा है कि ट्रम्प के साथ कैसे खेलना है। दुनिया ने ट्रम्प के बारे में समझ लिया है कि उनकी नीतियों से ज्यादा उनका तौर-तरीका अस्थिरता पैदा करने वाला है। इसलिए, ‘ट्रम्प्लोमेसी’ का मजा लेते रहिए। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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