Rashmi Bansal’s column – Look at your ordinary day with new eyes, it will start to look special | रश्मि बंसल का कॉलम: अपने सामान्य-से दिन को नई आंखों से देखो, खास लगने लगेगा

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8 घंटे पहले
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रश्मि बंसल, लेखिका और स्पीकर
कुछ दिन पहले मेरे दाहिने पैर की सबसे छोटी अंगुली को चोट लगी। यूं तो इस अंगुली पर कभी ध्यान नहीं जाता। मेरे जीवन में उसका कोई स्टेटस है ही नहीं। लेकिन उस दिन मुझे दर्द का अहसास हुआ, और फिर उस अंगुली के अस्तित्व का। भगवान ने छोटी-सी अंगुली को भी एक रोल दिया है, और वो चुपचाप अपनी जिम्मेदारी निभा रही है।
जीवन में कई ऐसी चीजें हैं, कई ऐसे इंसान हैं, जिनको हम “टेकन फॉर ग्रांटेड’ का दर्जा दे देते हैं। जीवन की बुनियाद इन पर टिकी है- वो उपस्थित हैं, काम कर रहे हैं, इसका अहसास हमें रहता नहीं। लेकिन जिस दिन वो चले गए, हमें उनकी अहमियत पता चल जाती है।
एक बहुत बेसिक सा एग्जाम्पल देती हूं- बिजली और पानी। आजकल बड़े शहरों में तो हम सोच भी नहीं सकते- 14 घंटे का पॉवर कट। लेकिन आज भी गांवों-कस्बों में यह एक हकीकत है। फिर भी हम एसी वाले कमरे में रात के दो बजे तक जागे हुए हैं… कि भाई परेशान हूं, नींद नहीं आ रही!
घर का खाना। जब तक इंसान रोज इसे खा रहा है, उसकी कोई वैल्यू नहीं। जिस दिन वो हॉस्टल पहुंचा, उसी सब्जी-रोटी के लिए तरस जाता है। या फिर आप बाहर घूमने निकल जाओ, चार दिन नान-पनीर-पिज्जा-पास्ता खाने के बाद दिल मांगता है सिर्फ दाल-चावल। तो अब जब भी यह मामूली डिश आपको पेश की जाए, उसे मामूली ना समझें!
स्कूल-कॉलेज के लिए जल्दी उठकर जाना कितना मुश्किल लगता है। वही क्लास टीचर, वही किताबें, वही एग्जाम। कब तक पढ़ाई की दुनिया में कैद रहना पड़ेगा। यह सवाल हर छात्र के मन में जरूर आता है। लेकिन जिस दिन पढ़ाई खत्म हुई, वही रूटीन, वही चेहरे हम कितने मिस करते हैं!
इसी तरह जब कोई भाई-बहन या करीबी दोस्त विदेश के लिए रवाना होता है, काफी एक्साइटमेंट होता है। लेकिन फिर जाने के बाद, एक अजीब-सा अकेलापन। वीडियो कॉल में वो सुकून नहीं, जो साथ उठने-बैठने-खाने-पीने में था। रिश्तों के धागे खिंचने लगते हैं, कभी-कभी टूट भी जाते हैं।
फिर हो गई मां-बाप की डांट-डपट। अरे, मैं 35 साल का हो गया हूं, फिर भी जब घर से निकलता हूं, मां कहती है- “ध्यान से गाड़ी चलाना।’ क्या उन्हें मुझ पर भरोसा नहीं? खैर, एक दिन आएगा जब वही प्यार भरी हिदायत सुनने को दिल तरसेगा। इसलिए, आज मां से लिपटकर कह दो, “हां, मां, गाड़ी ध्यान से चलाऊंगा।’
एक दिन आप हवाई जहाज में बैठेंगे। सीट बेल्ट का साइन ऑन होगा, एयर होस्टेस कुछ रटी हुई लाइनें कहेंगी। आपका ध्यान कहीं और है। उड़ान भरने के महज तीस सेकंड बाद प्लेन जमीन पर गिर जाता है। हादसे में सब पैसेंजर मारे गए, सीट नंबर 11ए पर बैठे हुए आप वो अकेले इंसान हैं, जो बच गए।
शायद ऐसी घटना के बाद ही आपको अपनी रगों में दौड़ते खून की कीमत पता चलेगी। यह जीवन कितना सुंदर है, और कितना दुर्बल भी। इसका एक-एक क्षण इतना बहुमूल्य और हम एक फूटी कौड़ी के भाव उस क्षण को बेच देते हैं। क्योंकि, इट इज ऑल टेकन फॉर ग्रांटेड।
गुस्से और गमों की आग में हम लिपटे हुए हैं। खामोश और खफा, थोड़े सिमटे हुए हैं। अपने मूड की चाबी दुनिया को दी हुई है, अपने अंदर की आवाज सहमी-सी, अनसुनी है। समय की रफ्तार इतनी तेज है, सुनहरा इसका हर फेज है। बचपन से बुढ़ापे का यह सफर, लगे ना इस पर किसी की नजर।
नई आंखों से देखो अपना सामान्य-सा दिन, याद आएगा कभी पल-छिन, पल-छिन। जो वर्तमान में जीता है, वो चेतना का रस पीता है। भूत और भविष्य को भूल जाइए, सत् चित् आनंद का अहसास पाइए। इसके लिए आपको हिमालय नहीं जाना है। गीता कहती है, मोक्ष इस संसार में ही पाना है।
ये गृहस्थ जीवन ही कर्मभूमि है, आत्म-शक्ति एक अस्त्र है। लालच और मोह-माया का क्या फायदा, जब उतारना यह वस्त्र है। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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