Friday 10/ 10/ 2025 

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N. Raghuraman’s column – No matter how busy you are, you must pay attention to the mental health of the youth | एन. रघुरामन का कॉलम: कितने ही व्यस्त हों, युवाओं की मेंटल हेल्थ पर ध्यान जरूर दें

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7 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

हममें से कई लोग संभवत: काफी देर तक काम करते हैं या अभी भी कर रहे होंगे। मैं जानता हूं कि इनमें से बहुत से लोग, एक वक्त का खाना स्किप कर देते हैं। उनमें एक आदत होती है कि वे हर ‘शॉवर थॉट’ यानी नहाते वक्त या रोजमर्रा के कार्य करते हुए आए सामान्य विचारों को भी मानसिक तौर पर ‘उच्च प्राथमिकता’ देते हैं।

मैं समझता हूं और सराहना भी करता हूं कि ऐसे लोग सच में अपने काम और अपनी टीम से प्यार करते हैं। चीजों को भली प्रकार से करने पर स्वयं पर गर्व करना गलत नहीं है। लेकिन कई लोग इसका बहुत अधिक दिखावा करना पसंद करते हैं।

एक छोटी-सी सफलता भी ऐसे लोगों में डोपामाइन हार्मोन बढ़ा देती है, यानी उनका उत्साह अत्यधिक बढ़ जाता है। और यही चीज पूरे चक्र को लत में बदल देती है। फिर ये लोग और अधिक सफलता खोजने लगते हैं। आमतौर पर ऐसे लोग तनाव को एक फिटनेस ट्रैकर की तरह पहनते हैं।

यानी, तनाव जितना अधिक होगा, उनको लगेगा कि वह उतना ही बेहतर कर रहे हैं। यदि आप भी उनके जैसे हैं तो आपको 77 वर्षीय अमेरिका के एक जज की कहानी पढ़नी चाहिए, जो अपने काम में इतने व्यस्त थे कि यह ही नहीं देख पाए कि उनके घर में क्या चल रहा है।

उस समय 30 वर्ष के रहे जॉन क्रिश्चियन ब्रोडरिक को 1 अप्रैल 2002 को गिरफ्तार किया गया था। उस पर आरोप था कि उसने अपने पिता की इतनी निर्ममता से पिटाई की कि उनके चेहरे के फ्रैक्चर सही करने में सर्जन को छह घंटे लग गए।

सर्जरी के बाद उनके सहकर्मी भी उन्हें ठीक से नहीं पहचान पाए। क्योंकि एक बेहद शानदार दिन के बाद वह गहरी नींद में थे। रातों रात यह खबर अमेरिका के राष्ट्रीय समाचारों में शुमार हो गई, क्योंकि 54 वर्षीय जॉन टी. ब्रोडरिक उस वक्त न्यू हैम्पशायर के सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश थे।

यह कैसे हुआ और क्यों हिंसा को हवा मिली? कई महीनों बाद परिवार को इसका जवाब मिला। जेल के मनोचिकित्सक ने पहचान की कि जज का बेटा गंभीर एंग्जायटी व अवसाद से पीड़ित था। इस घटना को भूलने के बजाय उसके पिता हाई स्कूल के विद्यार्थियों को ये कहानी सुनाते हैं और बताते हैं कि मेंटल हेल्थ संबंधी बीमारियों में मदद मांग लेना कितना महत्वपूर्ण होता है।

उन्होंने यह इसलिए शुरू किया, क्योंकि उनका मानना है कि बच्चे सफलता, रेज्युमे बनाने और प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला पाने के लिए गहरे दबाव से पीड़ित हैं। इसीलिए उनका बचपन एक अच्छी परवरिश से वंचित हो जाता है।

विशेषज्ञ चेता रहे हैं कि मेंटल हेल्थ का मसला युवा आबादी के लिए भारी पड़ रहा है, इसके बावजूद भारत समेत कई देशों में इस पर कोई बात नहीं करना चाहता। 2010 में रिटायर हुए जॉन टी ब्रोडरिक ने ‘टेडेक्स टॉक’ में स्वीकार किया कि उन्होंने मानसिक बीमारी को नजरअंदाज किया और कई वर्षों तक इसे नहीं देख पाए।

उन्हें पता ही नहीं चला कि कब ये उनके घर में आ गई और 13 वर्ष के बेटे के भीतर घर कर लिया। हममें से कई अभिभावक होंगे, जो कामकाज में व्यस्त रहते हुए अनजान हैं कि ये बीमारी पहले से ही उनके घर में आ चुकी है। ब्रोडरिक ने कहा कि आज के बच्चे ‘अति-संगठित, अति-प्रतिस्पर्धी, अति-तनावग्रस्त, अत्यधिक उपलब्धि हासिल करने की इच्छा वाले’ होते हैं।

उनका कहना है कि वे कई ऐसे लोगों में इसका असर देख चुके हैं, जिन्होंने आंसू बहाते हुए अपनी बात साझा की। खासकर अमेरिका में ऐसे मामले बढ़ रहे हैं। अभिभावकों को जब पता नहीं होता कि उन्हें कहां जाना है, वे बच्चे को स्थानीय अस्पताल में भर्ती कराने ले जाते हैं। सोशल मीडिया सर्वाधिक तनाव देने वाली चीजों में से एक है।

ये बच्चों को वो गतिविधियां देखने देता है, जिनमें वो शामिल नहीं थे। उन्हें गलत प्रतिस्पर्धाओं की ओर ले जाता है, अलगाव की भावना पैदा करता है। ब्रोडरिक को लगता है कि मेंटल हेल्थ के प्रति जागरूकता का जो प्रयास वो कर रहे हैं, यह उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।

फंडा यह है कि आज हर किशोर की सोशल मीडिया तक पहुंच है। मानसिक स्वास्थ्य धीरे-धीरे कई लोगों के जीवन में प्रवेश कर रहा है। जॉन टी ब्रोडरिक की तरह हम सभी अभिभावकों का यह दायित्व है कि बढ़ती समस्या पर ध्यान दें। चाहे हम कितने ही व्यस्त क्यों ना हों।

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