N. Raghuraman’s column – Let the Monday meeting continue! | एन. रघुरामन का कॉलम: चलते-चलते ही चलती रहे सोमवार की मीटिंग!

33 मिनट पहले
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एन. रघुरामन मैनेजमेंट गुरु
सोमवार हमेशा थोड़ा बोझिल लगता है। बंद बोर्डरूम में लगातार मीटिंग चलती हैं। बारिश के मौसम में तो पता भी नहीं चलता कि कब बादल छंटे, कब धूप निकली। मीटिंग के प्रेजेंटर को, गड्ढों में कार के कूदने से आने वाली छपाक की आवाज़ कभी-कभी सुनाई दे जाती है। वह भी बहुत साफ़ नहीं होती क्योंकि उसमें एसी के भरभराहट की मिलावट होती है।
आपकी मीटिंग सुबह 11:30 पर थी, अब 11:45 बज चुके हैं और अंदर बैठे लोग बाहर निकलने तैयार नहीं हैं। आप अंदर झांकते हैं, तो प्रेज़ेंटर चेहरे पर माफ़ी मांगने का भाव लिए इशारे में कहते हैं, ‘बस दो मिनट!’ आपका तनाव बढ़ रहा है क्योंकि 12 बजे एमडी को इस हफ़्ते के सेल्स प्रोजेक्शन बताने हैं।
मीटिंग से पहले आपको स्टोर हेड से स्टॉक की जानकारी लेनी है और प्रोडक्शन डिपार्टमेंट का प्लान भी जानना है। ऐसे में आप क्या कर सकते हैं? क्यों न मीटिंग को बोर्डरूम से बाहर ले जाएं। इसे कहते हैं, वॉकिंग मीटिंग यानी चलते-चलते, हो जाए मीटिंग।
व्यस्त लोग और विभागों के प्रमुख खास स्टाइल में कहते हैं, ‘मेरे साथ चलो’ और बिल्डिंग के एक विंग से दूसरे विंग में जाते हुए, दो मिनट में मीटिंग पूरी हो जाती है। ऐसा ही कुछ टीवी शो, ‘द वेस्ट विंग’ में देखने मिलता है। यह पॉलिटिकल ड्रामा सीरीज़ है, जो अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रशासनिक विभाग और कर्मचारियों की रोजमर्रा की चुनौतियां दिखाती है। इसे देखकर आपको भी चलते-चलते मीटिंग की आदत हो सकती है।
शो में राष्ट्रपति के साथ काम कर रहे कई लोग अक्सर डायलॉग बोलते हैं ‘वॉक विद मी’ और फिर व्हाइट हाउस के गलियारे में मीटिंग शुरू हो जाती है, जहां राष्ट्रपति को बताने के लिए कर्मचारी आंकड़े साझा करते हैं। सपोर्ट स्टाफ़ के साथ ये मीटिंग जानबूझकर बाहर की जाती हैं। इसमें एक स्टाइल है। यह आकर्षक है क्योंकि इसमें सहकर्मी के साथ एक पॉइंट से दूसरे पॉइंट तक चला जा सकता है।
कल्पना कीजिए, सूट-बूट में दो सहकर्मी, जटिल संवाद कर रहे हैं और फिर बीच गलियारे में रुककर रणनीति तैयार करते हैं। फिर उनमें से एक एमडी के केबिन में चला जाता है और दूसरा ऑफिस में जाकर गलियारे में हुई चर्चा को दस्तावेज में दर्ज कर लेता है। स्वर्गीय स्टीव जॉब्स वॉकिंग मीटिंग की काफ़ी वकालत करते थे। उनके साथ काम करने वाले बताते हैं कि 30% मीटिंग चलते हुए होती थीं।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की 2014 की रिसर्च बताती है कि चलने से रचनात्मकता बढ़ती है, चलते हुए भी और बाद में भी। मैं सिर्फ़ ऑफ़िस में चलने से होने वाले फ़ायदों की बाद नहीं कर रहा।यह कारगर है।
मैंने ऐसी कई वॉकिंग मीटिंग देखी हैं, जहां दोनों पक्ष बड़ी आसानी से किसी टॉपिक पर बात कर पाए। ऐसा कई बार मीटिंगरूम में करना मुश्किल हो जाता है। मैं बोर्डरूम के तनाव भरे और एक-दूसरे पर टिप्पणी वाले माहौल की तुलना में, वॉकिंग मीटिंग में किसी बड़े विचार को ज़्यादा अच्छे से व्यक्त कर पाता हूं।
अगर आप कोई वरिष्ठ अधिकारी हैं और हाल ही में कॉलेज से पास हुए किसी व्यक्ति को नौकरी पर रखा है, तो उसके साथ वॉकिंग मीटिंग करें। उससे उसका प्रदर्शन बेहतर होगा। वॉकिंग मीटिंग तीन लोगों में सफल रहती है। ज़्यादा लोगों संग मीटिंग करने पर शोर होगा और मीटिंग आस-पास के लोगों का ध्यान खींचेगी। इसलिए सावधान रहें।
फंडा यह है कि अगर सोमवार को आप या आपके कर्मचारी खुद को मीटिंग के बोझ में दबा हुआ पाते हैं, तो मीटिंग को सुबह के जिम से लेकर, कैंटीन और कॉरिडोर तक में ले जाएं। मीटिंग बोझिल नहीं रहेगी।
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