N. Raghuraman’s column – Helping the new generation overcome hardships only adds to your stature | एन. रघुरामन का कॉलम: नई पीढ़ी को कठिनाई से उबरने में मदद करके आपका कद और बढ़ता है

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29 मिनट पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
ये सिर्फ आकांक्षा का ही सपना नहीं था कि वह महिला पुलिसकर्मी बने, बल्कि उसके पिता धर्मेन्द्र सिंह का ख्वाब भी था कि वह उसे वर्दी पहने देखें। इसीलिए धर्मेन्द्र ने अपने कैंसर के पहले चरण के उपचार का भी बलिदान दिया, ताकि दोनों का सपना पूरा किया जा सके।
एमए पास होने के बावजूद आकांक्षा ने अगस्त 2024 में हुई कांस्टेबल भर्ती परीक्षा दी और उत्तीर्ण हुई। उसे अपना नियुक्ति पत्र किसी और से नहीं, बल्कि केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलना था। सोच रहे हैं कि क्यों एक कॉन्स्टेबल को इतनी बड़ी हस्तियों से नियुक्ति पत्र मिलना था?
यह उप्र में अब तक का सबसे बड़ा पुलिस भर्ती अभियान था, जिसमें 60,244 (48,195 पुरुष और 12,049 महिलाएं) नियुक्त किए गए। पूरे राज्य की पुलिस को इन सभी को राज्य परिवहन बसों से लखनऊ में होने वाले समारोह में लाने के लिए तैयार किया गया था, जो 15 जून को निर्धारित था। सभी बसें 14 जून को विभिन्न स्थानों से रवाना हुईं।
माता-पिता से गले मिलने के बाद आकांक्षा सरकार द्वारा भेजी गई सात बसों में से एक में बैठकर सुबह 9.30 बजे बुलंदशहर से रवाना हुई। लखनऊ तक साढ़े छह घंटे की यात्रा थी। दोपहर करीब 3.30 बजे चाय-नाश्ते के लिए बस मैनपुरी में सड़क किनारे के ढाबे पर रुकी।
एक के बाद एक, सभी उतरकर ढाबे पर पहुंचने लगे। बारी आने पर आकांक्षा भी बस से उतरी। वह तीन ही कदम चली थी कि चौथे कदम पर गलत दिशा से आ रही एक तेज रफ्तार कार ने उसे टक्कर मारकर हवा में उछाल दिया। यहां लगा कि उसके सपने का अंत हो गया। उसका दाहिना पैर टूट गया, बाएं घुटने में गंभीर चोट लगी, सिर में टांके आए और पूरे शरीर में चोटें थीं।
चूंकि बसों में पुलिसकर्मी थे तो उन्होंने तुरंत पीछा कर लापरवाह ड्राइवर को पकड़ लिया और आकांक्षा को अस्पताल में भर्ती कराया। स्थानीय पुलिस व उसके माता-पिता को सूचित करने के बाद वे कार्यक्रम के लिए रवाना हो गए।
माता-पिता रात 9 बजे पहुंचे। सूजन के कारण उसका ऑपरेशन नहीं हो सका। उसे दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में रेफर किया गया, 26 जून को ऑपरेशन हुआ। उसके दाहिने पैर में प्लेट लगी। इधर, लखनऊ में दूसरे अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र मिले और एक महीने का जॉइनिंग ट्रेनिंग कोर्स (जेटीसी) शुरू हुआ।
ऐसी सर्विस सिलेक्शन नौकरियों में नियमानुसार अभ्यर्थी को नियुक्ति तिथि से एक माह के भीतर जॉइन करना होता है। अन्यथा इसे ‘उम्मीदवार की रुचि नहीं’ की श्रेणी में मान लेते हैं। आकांक्षा को उस 1500-सदस्यीय बल में शामिल होना था, जो हाथरस जिले की 19 लाख की आबादी को मैनेज करता है। इसका नेतृत्व एसपी चिरंजीव नाथ सिन्हा करते हैं। वह उस जिले में जॉइन करने का मौका नहीं खोना चाहती थी, जिसका संबंध महाभारत काल से माना जाता है।
सौभाग्य से, एक महीने के ग्रेस पीरियड की अवधि खत्म होने से ठीक एक दिन पहले सहारे से चलती हुई आकांक्षा, सिन्हा के केबिन में पहुंची। सिन्हा समझते थे कि हर उम्मीदवार ने उस स्तर तक पहुंचने के लिए कितने संघर्ष किए हैं।
समय कम था, इसलिए उन्होंने कागजी खानापूर्ति में समय गंवाए बिना सीधे वरिष्ठ अधिकारियों को फोन किया और अनुमति ली। क्योंकि सेवा नियमों में ऐसा प्रावधान भी है, जिसके तहत घायल उम्मीदवारों को रिकवरी टाइम मिलता है, लेकिन उन्हें जिला मुख्यालय के महिला छात्रावास में ही रहना होता है।
इस रविवार मैंने उससे बात की। वह ठीक हो रही थी और उम्मीद थी कि वह भर्ती प्रशिक्षण केन्द्रों पर शुरू हो रहे जेटीसी व मुख्य प्रशिक्षण में दूसरे बैच के साथ शामिल हो जाएगी। पुलिस के आला अधिकारियों का मानना है कि कंप्यूटर बैकग्राउंड वाले ग्रेजुएट्स, पोस्ट ग्रेजुएट्स अभ्यर्थी कॉन्स्टेबल वर्ग में ख्याति लाते हैं। वे तेजी से पदोन्नति पाते हैं, जिससे कॉन्स्टेबल की नौकरी में गौरव का भाव आता है।
फंडा यह है कि जब आप भावी पीढ़ी को उसकी कठिनाइयों से ऊपर उठाने में मदद करते हैं, तो वास्तव में इससे ना सिर्फ किसी पुलिसकर्मी को आत्मसंतुष्टि मिलती है। बल्कि पूरे राज्य का दर्जा और ऊंचा दिखने लगता है।
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