Pt. Vijayshankar Mehta’s column- If you fill your personality with God then that is solitude | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: परमात्मा से अपने व्यक्तित्व को भरें तो वह एकांत है

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1 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
खुशी से ऊपर आनंद है। लेकिन आनंद से ऊपर कुछ नहीं है। शिव जी पार्वती जी को यह बता रहे थे कि काकभुशुंडि जी जब रामकथा सुनाते हैं तो मैं भी वहां पहुंचा। और उन्होंने एक नया शब्द बोला। शिवजी कहते हैं- जब मैं जाइ सो कौतुक देखा, उर उपजा आनंद बिसेषा।
जब मैंने वहां जाकर दृश्य देखा तो मेरे हृदय में विशेष आनंद उत्पन्न हुआ। अब शंकर जी के अनुसार आनंद भी विशेष हो सकता है। जिन्हें विशेष आनंद ढूंढना हो, उन्हें एकांत साधने की कला आनी चाहिए। हम सब अपने अकेलेपन को दूसरी बातों से भरते हैं- मनुष्यों से, वस्तुओं से, स्थितियों से। लेकिन जब हम स्वयं से स्वयं को भरें, आत्मा और परमात्मा से अपने व्यक्तित्व को भरें तो उसे एकांत कहते हैं।
जब आप अनिर्णय की अवस्था से मुक्त हो जाते हैं तब एकांत में होते हैं। हर इंसान को चौबीस घंटे में एक बार एकांत में होना चाहिए। अकेलेपन से अच्छी स्थिति आनंद है और उससे भी अच्छी स्थिति विशेष आनंद है- जो एकांत का फल है।
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