Brahma Chellaney’s column – We cannot ignore the events happening in the neighbourhood | ब्रह्मा चेलानी का कॉलम: हम पड़ोस में हो रही घटनाओं की अनदेखी नहीं कर सकते

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3 घंटे पहले
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ब्रह्मा चेलानी पॉलिसी फॉर सेंटर रिसर्च के प्रोफेसर एमेरिटस
शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश अराजकता में डूब गया है। अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है, कट्टरपंथी इस्लामी ताकतें मजबूत हो रही हैं, युवा कट्टरपंथी बन रहे हैं, जंगलराज का बोलबाला है और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। हमारे पड़ोस में मौजूद इस मुल्क का भविष्य इतना निराशापूर्ण पहले कभी नहीं दिखा था।
शुरुआत में कई लोगों को उम्मीद थी कि शेख हसीना के बाद बांग्लादेश अधिनायकवाद से लोकतंत्र की ओर बढ़ेगा। ऐसा इसलिए था, क्योंकि तख्तापलट को एक छात्र नेतृत्व ने अंजाम दिया था। लेकिन कई विश्लेषकों ने बांग्लादेश की ताकतवर फौज की तख्तापलट में भूमिका को कमतर आंका गया था। फौज हसीना की हुकूमत में अपना दबदबा कम हो जाने से नाराज थी। छात्र आंदोलन को इस्लामी ताकतों का भी खूब सहारा मिला, जो हसीना के धर्मनिरपेक्ष शासन में खुद को हाशिए पर देख रहीं थी।
तख्तापलट के नैरेटिव ने तब ज्यादा जोर पकड़ लिया, जब अपने ग्रामीण बैंक के जरिए माइक्रो-क्रेडिट की शुरुआत कर गरीबों के रक्षक के तौर पर पहचान बनाने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का मुखिया बना दिया गया। लेकिन इससे भी जमीनी हकीकतों की गलत व्याख्या ही हुई।
नोबेल समिति ने यूनुस को ग्रामीण बैंक के वास्तविक प्रभाव के लिए कम और भू-राजनीतिक संकेत देने के लिए अधिक चुना था। पुरस्कार देते समय भी समिति अध्यक्ष ने यूनुस को इस्लाम और पश्चिम के बीच एक प्रतीकात्मक सेतु के रूप में पेश किया था। उन्होंने उम्मीद जताई थी कि यह चयन 911 के बाद पश्चिम में पैदा हुई इस्लाम को बदनाम करने की मानसिकता का जवाब होगा। यह महज संयोग नहीं है कि बिल क्लिंटन ने यूनुस के नाम की पैरवी की थी।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के नेता के तौर पर यूनुस ने त्वरित सुधारों और लोकतांत्रिक चुनावों का वादा तो किया, लेकिन चुनाव को बार-बार टालते रहे। इस बीच, संवैधानिक वैधानिकता की कमी होते हुए भी अंतरिम सरकार ने स्वतंत्र संस्थानों पर प्रहार करना शुरू कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों को हटा दिया गया। बांग्लादेश को आजादी दिलाने वाली अवामी लीग को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया, जबकि वह सबसे पुराना और सबसे बड़ा राजनीतिक दल है।
मानवाधिकार उल्लंघन के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। दमन की नीति चल रही है। वकील, शिक्षाविद्, पत्रकार, कलाकार और विपक्षी नेता- जो भी हसीना के करीबी माने जाते थे- जेलों में ठूंसे जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया निगरानी समूहों ने पत्रकारों पर बढ़ते हमलों को लेकर चेतावनी दी है।
यूनुस के नेतृत्व वाले ‘मिलिट्री-मुल्ला’ शासन में आतंकवाद से संबंधित जिहादी समूहों पर लगे प्रतिबंधों को हटा दिया गया है। कुख्यात इस्लामी नेताओं को रिहा कर दिया गया है। कई कट्टरपंथी तो अब मंत्री या अन्य सरकारी पदों पर काबिज हैं। उनके समर्थक खुले तौर पर विरोधियों को धमका रहे हैं।
कथित अभद्र कपड़े पहनने वाली महिलाओं को सार्वजनिक अपमान और हमलों का सामना करना पड़ रहा है। तालिबानी शैली की मोरल पुलिसिंग जड़ें जमा रही है। हालात इतने खराब हो गए हैं कि अवामी लीग की कट्टर विरोधी रही बीएनपी ने भी सड़कों पर हो रही हिंसा की निंदा की है।
भारत ने जहां शेख हसीना के तख्तापलट से पैदा हुई समस्याओं को पहचाना है, वहीं अमेरिका ने इसे सही ठहराया है। लेकिन बांग्लादेश में ऐसे ही हालात कायम रहे तो यह अमेरिका के स्वतंत्र, मुक्त, समृद्ध और स्थिर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रयासों को बेहद जटिल बना देगा। कुछ विशेषज्ञों ने तो यह चेतावनी भी दी है कि बांग्लादेश दुनिया में विवाद का ऐसा केंद्र भी बन सकता है, जिसका असर दूर-दराज के देशों पर भी पड़ेगा।
एक समय बांग्लादेश एक मुस्लिम बहुल देश में धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण था। लेकिन अब वह भी उसी तरह के मिलिट्री-राज की हालत में जा रहा है, जिससे हमारा एक और पड़ोसी पाकिस्तान अरसे से ग्रस्त रहा है। (© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)
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