Wednesday 08/ 10/ 2025 

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Manoj Joshi’s column – Attempts to break India-Russia friendship | मनोज जोशी का कॉलम: भारत-रूस दोस्ती को तोड़ने की कोशिशें

4 घंटे पहले

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मनोज जोशी विदेशी मामलों के जानकार - Dainik Bhaskar

मनोज जोशी विदेशी मामलों के जानकार

ट्रम्प के 50% टैरिफ ने भारत-अमेरिका संबंधों में खटास ला दी है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने ट्रम्प की इस कार्रवाई को ‘अनुचित, अन्यायपूर्ण और अतार्किक’ बताते हुए कहा कि भारतीय आयात देश की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर आधारित हैं। यकीनन, इस कार्रवाई में भारत को विशेष रूप से निशाना बनाया गया है। चीन, तुर्किये जैसे देश भी रूस से तेल-व्यापार कर रहे हैं, यूरोप उससे प्राकृतिक गैस खरीद रहा है, लेकिन पेनल्टी भारत पर लगाई गई।

इन टैरिफ के चलते भारत दुनिया के बड़े उपभोक्ता-बाजार से बाहर जैसा हो जाएगा। फिलहाल अस्थायी छूट के दायरे में शामिल किए गए स्मार्टफोन और फार्मा उत्पादों के अलावा भारत अमेरिका में हीरे, सोना, मशीनरी, स्टील, एल्युमीनियम, पेट्रो उत्पाद, परिधान, वस्त्र, वाहन और उनके पुर्जों का निर्यात करता है। यह निर्यात अभी 87 अरब डॉलर का है।

यह समझना मुश्किल है कि टैरिफ में अकेले भारत को ही क्यों निशाना बनाया गया? यह अमेरिका को रियायत देने के लिए भारत को बाध्य करने की कठोर रणनीति हो सकती है। ट्रेड डील पर एक और चरण की बातचीत के लिए अमेरिका का दल अगले कुछ दिनों में भारत आएगा। यह कदम उससे भी जुड़ा हो सकता है।

इसमें दो मुद्दे हैं। पहला- रूस से तेल की खरीद, जिसके बिना भारत का काम चल तो सकता है, लेकिन इसे बंद करने से भारत-रूस संबंधों को नुकसान होगा। दूसरा- अमेरिकी कृषि और डेयरी उत्पादों को भारतीय बाजार में प्रवेश दिलवाना, जिस पर प्रधानमंत्री मोदी जोर देकर कह चुके हैं कि वे समझौता नहीं करेंगे, भले ही उन्हें इसके व्यक्तिगत नतीजे भुगतने पड़ें।

यह पुतिन को यूक्रेन में युद्धविराम के लिए मजबूर करने का प्रयास भी हो सकता है। भले ही, फिलहाल रूस नहीं सुन रहा, लेकिन हाल ही में एक अमेरिकी दूत रूस गया था और जल्द ही ट्रम्प और पुतिन की वार्ता भी होने वाली है। यदि यह सफल रही तो ट्रम्प अपनी जीत की घोषणा कर अतिरिक्त टैरिफ वापस ले सकते हैं।

इसमें पाकिस्तान का मसला भी है। यह अनसुलझा सवाल है कि अमेरिका ने पाकिस्तान से नजदीकी बढ़ाने का फैसला क्यों किया? इसके पीछे एक कारण उस क्रिप्टो डील को भी माना जा सकता है, जो पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान ने ट्रम्प समर्थित कंपनी से की थी।

दूसरी ओर, यह व्यापक दक्षिण-पूर्व नीति से जुड़ा भी हो सकता है, जिसमें ईरान को नियंत्रित करने के लिए पाकिस्तानी सेना का उपयोग शामिल हो। आसिम मुनीर की अमेरिका यात्राओं से भी यह समझ आता है। लेकिन गंभीर चिंता यह है कि इस मामले में 1950 के दशक से चली आ रही भारत-रूस की दोस्ती को तोड़ने का अमेरिका का बड़ा भू-राजनीतिक लक्ष्य भी छिपा हो सकता है। साथ ही इसमें उस ब्रिक्स को समाप्त करने की मंशा भी सम्भव है, जिसे ट्रम्प अमेरिका के वैश्विक नेतृत्व के लिए खतरा मानते हैं।

रूस के साथ हमारे बेहद महत्वपूर्ण रक्षा-संबंध रहे हैं। परमाणु पनडुब्बी परियोजना का ही उदाहरण लें, जो रूसी सहायता से बनी है और इसके बिना संभव नहीं हो पाती। इसी तरह से ब्रह्मोस मिसाइल है, जिसे रूसी मदद से अपग्रेड किया जाएगा। आने वाले दिनों में रूस परमाणु पनडुब्बी परियोजना में भी हमारी मदद कर सकता है। ये ऐसी प्रणालियां हैं, जो कोई और हमें नहीं देगा।

दुनिया की बड़ी ताकतों के आपसी रिश्तों पर गौर करें तो भारत-रूस के रिश्ते सबसे टिकाऊ रहे हैं। समय-समय पर जहां कई देश एक-दूसरे से कभी दोस्ती और कभी दुश्मनी करते रहे, वहीं भारत-रूस की दोस्ती हमेशा बनी रही। इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि दोनों देशों में हितों का कोई बुनियादी टकराव नहीं है।

यह तथ्य है कि रूस दक्षिण एशिया में अपने संबंधों को लेकर भारत का अनुसरण करता रहा है। इसीलिए उसने पाकिस्तान से दूरी बनाए रखी है। चीन और अमेरिका 1972 तक दुश्मन थे, फिर 1993 तक अर्ध-सहयोगी बने और आज फिर से विरोधी हैं। इसी तरह, ट्रम्प अभी तक तो पुतिन समर्थक थे, लेकिन अब अचानक रूस-विरोधी हो गए हैं।

भारत-अमेरिका संबंधों को अब जल्द ठीक करना कठिन होगा। किसी भी संबंध में ‘भरोसा’ सबसे जरूरी होता है और ट्रम्प के रवैए से भले यह नष्ट ना हुआ हो, डगमगाया जरूर है। इसका एक परिणाम ‘क्वाड’ का कमजोर पड़ना भी होगा। क्वाड समिट सम्भवत: इसी साल नई दिल्ली में होगी। लेकिन क्या कोई सोच भी सकता है कि टैरिफ, ऑपरेशन सिंदूर और रूस से जुड़ी उथल-पुथल के बाद यह समिट होगी? और यदि हुई, तो ट्रम्प इसमें आएंगे?

हमारे हितों में कभी कोई बुनियादी टकराव नहीं रहा… दुनिया की बड़ी ताकतों के आपसी रिश्तों पर गौर करें तो भारत-रूस के रिश्ते सबसे टिकाऊ रहे हैं। भारत-रूस की दोस्ती हमेशा बनी रही है। इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि दोनों देशों में हितों का कोई बुनियादी टकराव नहीं है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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