संघ की बैठक में पेश मुरली मनोहर जोशी की इकोनॉमिक थ्योरी में ‘वामपंथी’ अमर्त्य सेन का जिक्र! – murli manohar joshi indian economy income inequality rss mohan bhagwat amartya sen opnm1

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अर्थ समूह की बैठक में देश की अर्थव्यवस्था पर व्यापक विमर्श हुआ है. बैठक में लोगों की आय में असमानता, और प्रतिव्यक्ति कम जीडीपी पर विशेष चर्चा हुई है – खास बात ये है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत की मौजूदगी में पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी ने जो नजरिया पेश किया है, उसमें नोबल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन का भी हवाला दिया है.
अमर्त्य सेन और संघ वैचारिक तौर पर दो ध्रुवों जैसे हैं. और, यही वजह है कि बैठक में जो चिंता जताई गई है, वो काफी गंभीर लगती है – सवाल है कि क्या संघ को सिर्फ देश की आर्थिक स्थिति की फिक्र है? या फिर, संघ केंद्र की मौजूदा बीजेपी सरकार की आर्थिक नीति को लेकर चिंतित है?
बैठक में हुई बातचीत से ऐसे सारे सवालों का जवाब मिल जाता है. मुद्दे की बात ये है कि संघ अर्थव्यवस्था को लेकर चिंतित तो है, और शायद इसीलिए मामले की गंभीरता को लेकर अपने स्तर पर प्रयासरत भी है.
बताते हैं, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुद्दे की गंभीरता को समझने और समझाने की कोशिश की है, लेकिन अमर्त्य सेन के जिक्र और मुरली मनोहर जोशी ने जो लाइन दी है, RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने भी गंभीरता से लिया है.
ऐसे में ये जानना और समझना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है कि आर्थिक विषमता पर मुरली मनोहर जोशी का संघ की बैठक में मोहन भागवत की मौजूदगी में विस्तृत प्रजेंटेशन और अमर्त्य सेन का हवाला, आखिर क्या इशारा करता है?
संघ की बैठक में जोशी का प्रजेंटेशन
RSS के 100 साल पूरे होने पर, संघ से जुड़े आर्थिक संगठनों के करीब 80 प्रतिनिधियों की एक बंद कमरे की बैठक हुई, जिसमें फीजिक्स के प्रोफेसर रहे 91 वर्षीय डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी ने 70 स्लाइड के साथ प्रजेंटेशन दिया. 2014 के आम चुनाव के बाद मुरली मनोहर जोशी को लालकृष्ण आडवाणी के साथ बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया गया था. ये बैठक ऐसे दौर में हुई है, जब बिहार में चुनावी तैयारियां जोरों पर हैं.
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर हुई इस बैठक में मुरली मनोहर जोशी मुख्य वक्ता थे, जिनका तर्क था आर्थिक वृद्धि किसी देश का अकेला उद्देश्य नहीं हो सकता, और इस सिलसिले में जोशी ने वामपंथी अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का विशेष रूप से उल्लेख किया जो खास मायने रखता है. दिल्ली संघ की लेक्चर सीरीज से हफ्ता भर पहले ये बैठक 19-20 अगस्त को हुई थी, जिसके होस्ट थे भारतीय मजदूर संघ के संगठन मंत्री बी. सुरेंद्रन.
बैठक में डॉक्टर जोशी ने डिग्रोथ (Degrowth) का प्रस्ताव रखा, जिसका मतलब है – सार्वजनिक विमर्श को आर्थिक वृद्धि-केंद्रित नजरिये से मुक्त करना और वृद्धि को सामाजिक उद्देश्य के रूप में खत्म करना. ये सब ऐसे दौर में हो रहा है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चल रही बीजेपी की केंद्र सरकार भारत को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में पेश कर रही है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री जोशी का ये भी कहना है कि पश्चिम का आर्थिक मॉडल फेल हो चुका है… क्योंकि, दुनिया में जारी जंग संयुक्त राष्ट्र भी रोक पाने में नाकाम रहा है. अपनी बात समझाने के लिए मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि 2021 में भारत के 10 फीसदी उच्च वर्ग के पास देश की कुल घरेलू संपत्ति का 65 फीसदी हिस्सा था… भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी केवल 2,878.5 अमेरिकी डॉलर थी, जबकि जापान की 33,955.7 डॉलर – फिर भी भारत ने जापान को पीछे छोड़कर दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का मुकाम हासिल किया था.
जोशी की चेतावनी, भागवत की चिंता
अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन का हवाला देते हुए पूर्व बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने कहा, अगर किसी देश की आर्थिक सफलता सिर्फ आय से आंकी जाए, तो कल्याणकारी जैसा महत्वपूर्ण लक्ष्य पीछे छूट जाता है. हालांकि, मुरली मनोहर जोशी ने ये बात भी जोर देकर कही, मैं हिंदू दृष्टिकोण को आध्यात्मिकता के क्षेत्र को समझने, विकसित करने और चुनौती देने के लिए एक एकीकृत आधार के रूप में रखना पसंद करता हूं.
बैठक में मौजूद प्रतिनिधियों के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है, संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुरली मनोहर जोशी की समझाइश का सपोर्ट करते हुए कहा, ‘जोशी जी ने सब कुछ कह दिया है.’
और, ध्यान देने वाली बात है संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले की सफाई. दत्तात्रेय होसबले ने बैठक में हिस्सा ले रहे प्रतिनिधियों को स्पष्ट किया कि प्रजेंटेशन और बैठक में हुई चर्चाओं को सरकार की आलोचना के रूप में न देखा जाए – बोले, ये सब करने का उद्देश्य नीतियों की समीक्षा करना या कोई निर्णय लेना नहीं है.
अमर्त्य सेन के साथ साथ मुरली मनोहर जोशी ने दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद की अवधारणा का हवाला देते हुए आगाह किया कि दूसरे देशों पर ज्यादा निर्भर होना देश हित में नहीं है. मुरली मनोहर जोशी ने कहा, हम ये योजना बनाते हैं कि जो हमारे पास नहीं है उसे हासिल करें, लेकिन जो हमारे पास है उसके संरक्षण के लिए कोई प्लान नहीं करते.
मुरली मनोहर जोशी ने अपनी पीड़ा भी शेयर की है, ‘हमने कृषि और स्वदेशी उद्योगों पर ध्यान नहीं दिया बल्कि विदेशी सहयोगों का स्वागत किया, जो हमारे हितों और प्रतिष्ठा को कमजोर करते हैं.
भले ही दत्तात्रेय होसबले ने बैठक की बातों और उठाए गए मुद्दों पर सरकार से न जोड़ने के लिए डिस्क्लेमर पेश किया हो, लेकिन हाल फिलहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों स्वदेशी पर ज्यादा जोर दिखाई दे रहा है – और बहुत कुछ समझने के लिए ये काफी है.
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