N. Raghuraman’s column – Stopping climate change should be the aim of all of us | एन. रघुरामन का कॉलम: जलवायु परिवर्तन को रोकना हम सभी का उद्देश्य होना चाहिए

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40 मिनट पहले
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एन. रघुरामन मैनेजमेंट गुरु
मैंने उनके लेक्चर सुने हैं। उनकी हर अनौपचारिक बात आपको सोचने पर मजबूर कर देगी, क्योंकि वे हमेशा पृथ्वी के खतरों के बारे में बात करते हैं। वे मेरे कॉलेज, यानी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर थे। उन्हें भारत के सोलर मैन और सोलर गांधी के नाम से जाना जाता है।
हाल ही में उन्होंने शिक्षण के बेहद प्रतिष्ठित पद से इस्तीफा दे दिया ताकि वे इससे कहीं अधिक कठिन भूमिका निभा सकें। वे अरबों लोगों को धरती को बचाने की आदतें अपनाने के लिए समझाना चाहते हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि अब मानव जाति का अस्तित्व संकट में है।
आईआईटी बॉम्बे के सीनियर फैकल्टी मेम्बर चेतन सिंह सोलंकी अब महज इंजीनियरिंग के चंद छात्रों को नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को शिक्षित करना और बदलना चाहते हैं। उनके लिए जलवायु परिवर्तन कोई दूर-दराज की नीतिगत बहस नहीं, बल्कि दहलीज पर आ चुका एक ‘वैश्विक आपातकाल’ है।
सोलंकी जो बातें दूसरों को समझाते हैं, उसका पालन खुद भी करते हैं। वे बिना एसी वाले ऑफिस में काम करते हैं। उनके कंसल्टेशन हॉल में रोशनी दिन के उजाले से होती है। उनके घर में ना तो रेफ्रिजरेटर की भिनभिनाहट है, ना वॉटर हीटर का आराम। पांच साल तक शहरों, कस्बों, गांवों से निकाली गई उनकी ऊर्जा स्वराज यात्रा में केवल एक ही संदेश था: ऊर्जा और मटेरियल बचाएं, वरना भविष्य गंवा देंगे। इस यात्रा के बाद वे लोगों के जीवन में ऐसे उद्देश्यपरक बदलाव लाने के लिए अधिक दृढ़निश्चयी हो गए हैं, जिसे वे ‘क्वांटम चेंज’ कहते हैं।
ये मत सोचिए कि यह कोई पुरानी सोच है। जलवायु परिवर्तन का खतरा पहले से ही इस सप्ताह अपना विकराल रूप दिखा चुका है। इस मानसून महाराष्ट्र के 29 जिलों में फैली 41 लाख एकड़ की फसलों के खराबे पर आप क्या कहेंगे? जबकि इस साल मौसम के अंतिम चरण में भी बारिश का कहर बरकरार है। इस हफ्ते भी अधिक बारिश की चेतावनी के बीच राज्य कृषि विभाग को डर है कि यह स्थिति और बिगड़ेगी।
फसल खराब होने के अलावा भारी बारिश में किसानों ने अपने पशुधन भी खोए हैं। इस मानसून देश के अन्य हिस्सों में, पंजाब से उत्तराखंड, कुल्लू से कालिमपोंग, किश्तवाड़ से कर्णप्रयाग तक बाढ़ और भूस्खलन देखे गए। अधिकारी इसे प्राकृतिक आपदा बता रहे हैं, वहीं बड़ी संख्या में लोग, वैज्ञानिक और कैंपेनर्स इसके पीछे अवैज्ञानिक तरीके से हुए निर्माणों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। याद रखें, हम बहुत सारे हाई—वे, सुरंगें, रोपवे और हाइड्रो पावर बांध बना रहे हैं, जिनसे संभवत: भुरभुरे हिमालयी क्षेत्र को नुकसान पहुंच रहा है।
इसी सप्ताह की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि समूचा हिमालयी क्षेत्र पारिस्थितिक संकट का सामना कर रहा है। इस साल हालात ‘बेहद डरावने’ थे। हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड समेत अन्य प्रदेशों में पर्यावरणीय मुद्दों को लेकर अपने स्व-प्रसंज्ञान पर सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत भी यह जानना चाह रही थी कि क्या वास्तव में बढ़ते वर्षा जनित हादसों और सड़कों, जल परियोजनाओं, इमारतों और अन्य बड़े बुनियादी ढांचा निर्माणों के बीच कोई संबंध है?
ये इशारा उन राजमार्गों, सुरंगों, रोपवेज और हाइड्रोपॉवर बांधों के निर्माण की ओर था, जो नाजुक हिमालयी भू-भाग को प्रभावित कर रहे हैं। आपके और मेरे जैसे आमलोग भी 197 किमी के चंडीगढ़-मनाली राजमार्ग पर वो निशान देख सकते हैं, जहां राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की खुदाई के बाद बड़े हिस्से धंस गए थे।
ऐसे में रेत और ग्रेवल की खड़ी ढलानें बादल फटने की स्थिति में संकट पैदा कर सकती हैं। आपदाओं के बीच, इस फेस्टिव सीजन में हम कम से कम पारंपरिक उपहारों के बजाय टिकाऊ और विचारशील विकल्पों को चुन कर ‘ग्रीन गिफ्टिंग’ अपना सकते हैं। सीड बम, पॉटेड प्लांट से लेकर ऑर्गेनिक हैंपर्स तक हम ऐसे उपहारों का चुनाव करें, जो इको—फ्रेंडली हों और परंपरा के साथ जिम्मेदारी का भाव जोड़ें।
फंडा यह है कि बारिश की यह तबाही कहती है कि जलवायु परिवर्तन अब हमारी दहलीज पर है। इससे बचाव का मिशन किसी एक व्यक्ति या एक वैश्विक संगठन का नहीं हो सकता। यदि हम इस ग्रह को सही—सलामत भावी पीढ़ी को सौंपना चाहते हैं, तो यह भाव हर इंसान में आना चाहिए।
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