Sunday 05/ 10/ 2025 

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Lt. Gen. Syed Ata Hasnain’s column: A diplomacy that pursues self-interest while keeping one’s back straight | लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन का कॉलम: रीढ़ सीधी रखकर अपने हितों को साधने वाली कूटनीति

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22 मिनट पहले

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लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन कश्मीर कोर के पूर्व कमांडर - Dainik Bhaskar

लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन कश्मीर कोर के पूर्व कमांडर

भू-राजनीतिक जटिलताएं आज चरम पर हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक गठबंधनों को नया आकार दिया है और अमेरिका-चीन टकराव ने भी। ऐसे में भारत के लिए चुनौती यह है कि वह कैसे अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बरकरार रखते हुए परस्पर विरोधी दबावों से निपटता है। बहरहाल, गुटनिरपेक्ष सिद्धांत में रची-बसी, लेकिन बहुध्रुवीय युग के अनुकूल बनाई गई इस स्वायत्तता को अब अपनी हदों तक खींचा जा रहा है।

सैन्य सामग्रियों और तेल के लिए भारत गहराई से रूस से जुड़ा है। साथ ही, वह एलएसी पर फौज की तैनाती के बावजूद चीन के साथ आर्थिक रिश्ते सामान्य करने का रास्ता भी खोज रहा है। अमेरिका ने रूस नीति को लेकर भारत पर दबाव बना रखा है। इन जटिल परिस्थितियों ने ही भारत को वह मौका भी दिया है कि वह अपनी स्वायत्तता गंवाए बिना सभी पक्षों से सावधानीपूर्वक और स्पष्ट रूप से संवाद कर सके।

भारत के सैन्य भंडार का 60% से अधिक हिस्सा रूस से आता है। सामरिक तौर पर हर वक्त तैयार रहने के लिए रूस के साथ सहयोग बनाए रखना अनिवार्य है। हाल के भारत-पाक संघर्ष ने रूस के हथियारों के महत्व को और मजबूत किया है। वहीं रूस से किफायती दरों पर मिलने वाले तेल ने डांवाडोल आर्थिक हालात में भी हमें महत्वपूर्ण ऊर्जा सुरक्षा प्रदान की है। पर इस निर्भरता की राजनयिक तौर पर हमें कीमत चुकानी पड़ी।

अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने भारत द्वारा रूस से तेल खरीद को प्रतिबंधों को कमजोर करने और यूक्रेन में युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित करने के रूप में देखा। वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों के बयानों से दबाव और बढ़ा। हालांकि भारत का चयन वैचारिक नहीं व्यावहारिक था, जो गुटबाजी के बजाय राष्ट्रीय हितों से प्रेरित था। एससीओ में भारत के सामने चुनौती थी कि वह दुनिया को समझाए कि रूस के साथ उसकी साझेदारी अन्य गठबंधनों में कोई बाधा नहीं बनेगी।

भारत-चीन के रिश्तों पर 2020 के अनसुलझे सीमा विवाद की छाया रही है। सीमा पर सैनिकों की तैनाती, झड़पें और सैन्य ढांचे के निर्माण ने आपसी भरोसे को कम किया। इसके बावजूद दोनों देशों में 120 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार हुआ। हालांकि यह अधिकतर चीन के हित में था, लेकिन यह इस विरोधाभास को भी बताता है कि सैन्य तनाव के बीच भी दोनों देश आर्थिक तौर पर एक-दूसरे पर कितने निर्भर हैं।

भारत ने एससीओ में संदेश दिया था कि सीमा स्थिरता में ठोस प्रगति के बिना आर्थिक तौर पर रिश्तों को सामान्य करने की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती। चीन के पास भी तनाव कम करने की वजहें थीं। भारत के साथ लगातार शत्रुता रखना अमेरिका के साथ उसके रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के तनाव को बढ़ाता ही।

प्रधानमंत्री मोदी ने रूस-यूक्रेन युद्धविराम की मांग की है, ताकि बातचीत शुरू हो सके। इससे यह धारणा सामने आई कि भारत पश्चिम में अपनी विश्वसनीयता बनाए रखकर रूस से संवाद कर सकता है। इसमें भी, तटस्थता प्रभावित नहीं हुई। भारत ने सुनिश्चित किया कि उसकी भूमिका कूटनीतिक संवाद का अवसर बनाने के रूप में देखी जाए। इस पहल ने भारत की छवि को एक मध्यस्थ के तौर पर मजबूत किया।

हालिया वर्षों में रक्षा, तकनीक और हिंद-प्रशांत सुरक्षा सहयोग को लेकर भारत-अमेरिका साझेदारी काफी गहरी हुई है। फिर भी, रूस को लेकर अमेरिकी दबाव से टकराव पैदा हुए, जिनमें अमेरिका का रवैया धमकी भरा दिखा। भारत ने व्यापक साझेदारी को पटरी से उतारे बिना इसे झेला। रणनीतिक धैर्य आवश्यक भी था, क्योंकि वॉशिंगटन में राजनीतिक बदलावों के साथ ही अमेरिकी नीति भी तेजी से बदल सकती है। भारत का मूल्य उसकी स्वतंत्रता में ही निहित है, जिससे वह प्रतिद्वंद्वी खेमों के बीच भी संवाद कर पाता है।

प्रसंगवश, एससीओ का महत्व इसकी अनौपचारिकता में है। यह उन गिने-चुने मंचों में से एक ​है, जहां भारत, चीन, रूस और मध्य एशियाई देश पश्चिम के प्रभाव से दूर मिल सकते हैं। भारत के लिए यह गुटबाजी वाली राजनीति से ज्यादा उस जगह पर मौजूदगी का सवाल था, जहां से महाद्वीप की भू-राजनीति तय होती है।

भारत ने राष्ट्रहित को प्राथमिकता देते हुए, बिना किसी खेमेबाजी के सभी पक्षों से संवाद किया। भारत ने एससीओ का इस्तेमाल बहुध्रुवीय विश्व के अपने नजरिए को रेखां​कित करने के लिए किया है, जिससे मध्यम स्तर की ताकतें विरोधी गुटों की पिछलग्गू ना बनकर अपनी स्वायत्तता का आनंद ले सकें।

कूटनीति में भारत का हाल का प्रदर्शन देखने लायक रहा। विभाजित होती दुनिया में कोई एक गठबंधन हमारे हितों की पूर्ति नहीं कर सकता। ताकत लचीलेपन में है और कमजोरी किसी एक तरफ झुक जाने में। इसे हमने कुशलता से टाल दिया। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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