N. Raghuraman’s column: Those who know how to dispel the darkness of circumstances earn a lot | एन. रघुरामन का कॉलम: जो लोग हालात का धुंधलका हटाना जानते हैं, वो खूब कमाते हैं

- Hindi News
- Opinion
- N. Raghuraman’s Column: Those Who Know How To Dispel The Darkness Of Circumstances Earn A Lot
7 घंटे पहले
- कॉपी लिंक

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
हाल ही में, मैं कुछ उन कलाकारों में शामिल हुआ, जो एक स्कूल में बच्चों द्वारा बनाई पेंटिंग्स व पॉटरी के प्रदर्शन संबंधी प्रतियोगिता में जज बने थे। मुझे ये प्रतियोगिता पसंद आई क्योंकि इसमें कुछ रियल एस्टेट दिग्गज आमंत्रित थे, जिन्होंने अस्पताल बनाए या कई कंपनियों को ऑफिस स्पेस किराए पर दिए थे।
इस प्रतियोगिता को कराने के कई कारण थे। बच्चों को अपनी आर्ट की बिक्री से प्रोत्साहन मिलता है। उद्योग को उनके कार्यस्थल या अस्पताल की दीवारें सजाने के लिए कम कीमत पर ताजा विचार मिलते हैं। स्कूल को बच्चों में रचनात्मकता को बढ़ावा देने का श्रेय मिलता है।
प्रतियोगिता में एक छात्रा ने एक जज से सवाल किया, ‘क्या ये कलाकार या कला-सलाहकार बनने का सही समय है?’ जाहिर है उसके माता-पिता मुंबई के एक प्रसिद्ध आर्ट स्कूल से अंडर ग्रेजुएशन करने के उसके फैसले के पक्ष में नहीं थे। इसका जवाब देते वक्त सबसे पहले मेरे दिमाग में वह दृश्य आया, जो मैं अक्सर मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल- 2 पर देखता हूं।
जिन यात्रियों का औपचारिक तौर पर आर्ट से भले कोई वास्ता नहीं हो, लेकिन वो इन भव्य कलाकृतियों को देखने के लिए ठहर जाते हैं। क्योंकि वे सांस्कृतिक तौर पर बेहद आकर्षक और समृद्ध भारतीय विरासत की कहानी बताती हैं। 3.2 किलोमीटर लंबे कॉरिडोर में बने हवाई अड्डे के पब्लिक आर्ट प्रोग्राम में बड़ी संख्या में पारंपरिक शिल्प, समकालीन कला और क्षेत्रीय कला के विभिन्न रूप शामिल किए गए हैं। यह सभी यात्रियों को अनूठा अनुभव प्रदान करते हैं।
ये हवाई अड्डा भीतर से कभी भी महज एक ट्रांजिट हब जैसा नहीं लगता, बल्कि भारतीय विरासत का जश्न मनाने की जगह प्रतीत होती है। प्रत्येक कलाकृति एक कहानी कहती है और सोचने को मजबूर करती है। फिर चाहे वो प्राचीन आर्टिफेक्ट हो, लोक कला हो या समकालीन कला हो।
मुझे याद नहीं कि मैंने कभी ऐसा विभिन्न विषयों और विविध कलाओं वाला स्थान देखा है, जहां एक साथ अलग-अलग मतों और क्षेत्रों के 1200 कलाकारों की कृतियां हों। इसके क्यूरेटर राजीव सेठी हैं, जो एशिया के अग्रणी डिजायन गुरुओं में से एक हैं। सेठी इसे ‘स्तरित और निर्बाध कथानकों का मिलन’ कहते हैं।
वहां बैठे लोगों की अनुमति लेकर मैंने उस छात्रा से पूछा कि वो खुद की रुचि पर सवाल क्यों उठा रही है? छात्रा ने बताया कि उसके पिता शेयर मार्केट एडवाइजर हैं, जिन्हें पता लगा है कि 2024 में दुनिया भर में कला बाजार में कमी आना शुरू हुई। इसमें 12% की गिरावट आई।
मुझे ‘आर्ट बेसल एंड यूबीएस आर्ट मार्केट रिपोर्ट’ याद आई, जिसमें इसे स्वीकारा, पर ये भी कहा कि गैलरी सेल्स का प्रतिशत व कला-सलाहकारों की संख्या में 8% तक की वृद्धि हुई। जबकि विकसित देशों में संग्रहालय बिक्री 7% पर बनी रही। ऐसा इसलिए, क्योंकि कला-सलाहकार न सिर्फ बेहतरीन कृतियां ढूंढ सकते हैं और उनके मालिकों तक सीधी पहुंच रखते हैं, बल्कि वे दुनिया के सबसे धनी लोगों को गूढ़ कलाओं को समझाने में भी विशेषज्ञ होते हैं।
मैंने छात्रा को सलाह दी कि वह 2014 में स्थापित ब्यूमोंट नाथन जैसी कंपनियों के सोशल साइट्स फॉलो करे, जिसके सह-संस्थापक ह्यूगो नाथन थे। कंपनी ने कला बाजार की कुछ बेहद महत्वपूर्ण कृतियों की खरीद व बिक्री में अपनी सलाह दी है। सच कहूं तो मैंने अपने पूरे करियर में पहली बार ये नाम सुने। जैसे ही मैंने इसके पेज स्क्रॉल किए मुझे कंपनी के मध्य-पूर्व एशिया के क्षेत्रीय सलाहकार लतीफा बिन हमूदा जैसे युवा मिले।
एलिस ब्लैक, तातियाना शेनेविएर के नाम भी दिखे, जिन्होंने कुछ महीने पहले ही कला जगत में ‘बीएंडसी’ नाम से विख्यात ‘ब्लैक + शेनेविएर’ स्थापित की। उनका दावा है कि कला उद्योग में पीढ़ीगत बदलाव आ रहा है, इसमें संग्रहकर्ता किसी कला के मालिक बनने के पीछे के मकसद को तलाश रहे हैं। इस मानसिकता को वे कला-सलाहकारों के करियर के लिए एक अवसर के तौर पर मानते हैं।
फंडा यह है कि यदि आप अस्पष्ट हालात को सहज बनाने की कला जानते हैं तो कोई भी पेशा चलन से बाहर या कम आमदनी वाला नहीं होता।
Source link