Pt. Vijayshankar Mehta’s column – This Navratri, take a pledge to be free from Maya | पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: इस नवरात्रि माया से मुक्त होने का संकल्प लें

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2 घंटे पहले
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पं. विजयशंकर मेहता
इस नवरात्रि में पूरी शक्ति लगा कर मन को नियंत्रित किया जाए। कुछ महीनों से हमारे जीवन में ऐसी घटनाएं घट रही हैं कि निगेटिव ही सोचने में आता है। मन उस निगेटिविटी को और बढ़ाता है। ग्रंथों में शब्द आया है- माया। शक्ति का दुरुपयोग माया है, शक्ति का सदुपयोग माया से मुक्ति है।
माया को समझना हो तो जादू शब्द से जुड़ जाएं। जादू का अर्थ है- जो होता है, वह दिखता नहीं। जो दिखता है, वह होता नहीं। माया भी हमारे आस-पास ऐसा ही संसार रच देती है। गरुड़ ने जब अपनी समस्या ब्रह्माजी को बताई तो ब्रह्माजी समझ गए कि गरुड़ भ्रम में हैं। उन्हें याद आया ‘अग जगमय जग मम उपराजा, नहीं आचरज मोह खगराजा।’
ब्रह्मा कहते हैं ये चराचर जगत मेरा रचा हुआ है। जब मैं ही मायावश नाचने लगता हूं तो गरुड़ को मोह हो जाना खास बात नहीं। तो हम इस नवरात्रि माया से मुक्त होने का संकल्प लें। बहुत सारे भ्रम हमने पाल रखें हैं। ये नौ दिन इस बात का अवसर है कि हम माया से मुक्त हों, भ्रम से दूर हों।
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