Sunday 05/ 10/ 2025 

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Ashutosh Varshney’s column: 1960s-like violence is developing in America. | आशुतोष वार्ष्णेय का कॉलम: अमेरिका में 1960 के दशक जैसी हिंसा के हालात बन रहे

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4 घंटे पहले

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आशुतोष वार्ष्णेय ब्राउन यूनिवर्सिटी, अमेरिका में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर - Dainik Bhaskar

आशुतोष वार्ष्णेय ब्राउन यूनिवर्सिटी, अमेरिका में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर

अमेरिका फिलहाल गहरे आत्ममंथन के दौर से गुजर रहा है। यूटा वैली यूनिवर्सिटी में 10 सितंबर को ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ (मागा) मूवमेंट की बड़ी शख्सियत चार्ली किर्क की हत्या कर दी गई। किर्क 2016 से राष्ट्रपति ट्रम्प के प्रशंसक थे। वह भले ही औपचारिक रूप से प्रशासन का हिस्सा नहीं थे, लेकिन ट्रम्प अकसर उनसे सलाह लेते थे।

महज 31 साल के किर्क राजनीतिक रूप से इतने अधिक प्रभावशाली कैसे हो गए?

2012 में, मात्र 18 वर्ष की उम्र में किर्क ने कॉलेज छोड़ कर ‘टर्निंग पॉइंट यूएसए’ संगठन बनाया। इसका उद्देश्य अमेरिकी कॉलेजों में कंजर्वेटिव विचारधारा की जमीन तैयार करना था। किर्क का मत था कि अमेरिकी कॉलेज उदारवादी और वामपंथी विचारधारा के गढ़ बन गए थे। प्रोफेसरों द्वारा ब्रेनवॉश किए गए जेन–जी युवा ‘वाम-उदारवाद’ के दलदल में डूब रहे थे। इसे बदलने के लिए टर्निंग पॉइंट यूएसए ने कॉलेजों में किर्क के भाषण आयोजित किए।

यह विचार ‘मागा’ मूवमेंट के मूल में भी हैं। मसलन, अमेरिका के मौजूदा उपराष्ट्रपति जे.डी. वैन्स ने 2021 में एक भाषण दिया था, जिसका शीर्षक था ‘यूनिवर्सिटीज आर द एनिमी’। मागा मूवमेंट का नजरिया था कि कॉलेज और विश्वविद्यालय गैर-अमेरिकी मूल्यों को सिखाने वाली प्रमुख संस्थाएं हैं, जो युवा अमेरिकियों की नैतिकता को भ्रष्ट कर अमेरिका को कमजोर कर रहे हैं।

अब मुद्दा यह है कि क्या वैचारिक मतभेदों को हल करने के लिए हिंसा को अनुमति दी जानी चाहिए? लोकतंत्र में मतभेदों को मतदान, कानूनों और अदालतों के जरिए सुलझाया जाता है। हिंसा इसका रास्ता नहीं हो सकता। लेकिन, अमेरिका में हिंसा का सहारा लेना एक हद तक अमेरिकी राजनीति की कुछ खासियतों का ही परिणाम है।

अमेरिका में अभिव्यक्ति की आजादी की संवैधानिक प्रतिबद्धता इतनी अधिक है कि किसी व्यक्ति या समुदाय के बारे में अत्यधिक भड़काऊ बातें भी कही जा सकती हैं। हो सकता है कि कई समुदायों में ऐसी भाषा प्रतिबंधित हो, लेकिन अमेरिकी संविधान का पहला संशोधन इसे संरक्षित करता है। या यों कहें कि जरूरत महसूस होने पर अमेरिकियों को कठोर और अपमानजनक होने का संवैधानिक अधिकार मिला हुआ है।

संविधान में दूसरा संशोधन पूरी दुनिया की तुलना में अमेरिकी लोगों द्वारा बंदूक रखे जाने को कानूनी रूप से अधिक आसान बनाता है। राजनीति और इतिहास के किसी नाजुक मोड़ पर यह दोनों एकसाथ मिल जाएं तो विध्वंसकारी हो सकते हैं।

अमेरिकी इतिहास का सबसे हिंसक दौर 1880 से 1910 तक का जिम–क्रो युग था। इसमें अश्वेतों की अधीनता और श्वेतों के वर्चस्व को बढ़ावा देने के लिए भेदभाव, नस्लीय हिंसा और लिंचिंग को जायज माना जाने लगा। लेकिन हिंसा का हालिया दौर उससे अलग है।

यह राजनीतिक हिंसा है, जिसमें सत्ता का इस्तेमाल कर रहे लोग निशाने पर हैं– चाहे वह नियुक्ति या निर्वाचन के जरिए हों अथवा आंदोलनों से लाखों लोगों पर अपने प्रभाव के कारण। बीते दस सालों में 6 जनवरी 2021 के यूएस कैपिटल दंगों समेत अमेरिका में विधायिका से जुड़े लोगों पर भीड़ के कई हमले देखे गए हैं। इनमें एक राष्ट्रपति उम्मीदवार, सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश और एक सांसद की हत्या का प्रयास और मिनेसोटा में विधायक की हत्या जैसे मामले शामिल हैं।

इन घटनाओं ने 1960 के दशक की याद दिला दी, जब चार प्रमुख अमेरिकी राजनीतिक हस्तियों– राष्ट्रपति जॉन एफ.कैनेडी, उनके भाई रॉबर्ट एफ.कैनेडी, मैल्कम एक्स, और मार्टिन लूथर किंग की हत्या कर दी गई। 1960 का दशक भी ध्रुवीकरण वाले दशक के रूप में जाना जाता था, जब श्वेत समुदाय के कड़े प्रतिकार पर पार पाते हुए अमेरिका ने अश्वेतों को कानूनी और राजनीतिक समानता का दर्जा दिया। लेकिन अधिकांश पर्यवेक्षक मानते हैं कि आज का ध्रुवीकरण उससे ज्यादा गहरा है। राजनीतिक अभिजन इतने विभाजित हैं कि उनमें सामंजस्य बना पाना बेहद कठिन है। किर्क की हत्या पर यूटा के गवर्नर स्पेंसर कॉक्स ने कहा, ” यह अमेरिकी प्रयोग और हमारे आदर्शों पर हमला है। हम हिंसा के बदले हिंसा कर सकते हैं। लेकिन हम अलग रास्ता भी चुन सकते हैं।’ कॉक्स जैसा नजरिया अमेरिका को हिंसा के दलदल में डूबने से बचा सकता है। लेकिन सवाल है कि क्या अमेरिका हल निकालेगा या राजनीतिक विरोधियों को कुचलने की कोशिश करेगा?

मुद्दा यह है कि क्या वैचारिक मतभेदों को हल करने के लिए हिंसा को अनुमति दी जानी चाहिए? लोकतंत्र में मतभेदों को मतदान, कानूनों और अदालतों के जरिए सुलझाया जाता है। हिंसा इसका रास्ता नहीं हो सकता। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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