तेजस्वी यादव को लेकर कांग्रेस का प्लान क्या है, सीएम फेस बनाने की बात कहां अटक गई? – tejashwi yadav cm face rjd vs congress conflict bihar election opnm1

तेजस्वी यादव निश्चित तौर पर एक साथ कई मोर्चों पर जूझ रहे हैं. बिहार चुनाव की लड़ाई करो या मरो टाइप हो चुकी है. 2020 के मुकाबले लालू यादव का बिहार में होना मजबूत करता है, तो बहुत सारी चीजें कमजोर नसें भी उभर आई हैं. वर्चस्व और अहमियत को लेकर परिवार में ही जंग छिड़ी हुई है.
तेज प्रताप को परिवार और पार्टी से बेदखल कर दिए जाने के बावजूद, मुश्किलें कम होने की जगह बढ़ती जा रही हैं. रोहिणी आचार्य अलग से बखेड़ा खड़ा कर चुकी हैं. साथी संजय यादव को प्रोटेक्ट करने की लड़ाई अलग से लड़नी पड़ रही है – और कांग्रेस अलग से टेंशन दिये चली जा रही है.
तेजस्वी यादव के खुलेआम बड़े भाई बोल देने के बावजूद राहुल गांधी भी उतनी ही मुश्किलें खड़ी करते जा रहे हैं, जितने तेजप्रताप यादव. वो तो तेजस्वी यादव के चुनाव क्षेत्र राघोपुर पहुंचकर भी ललकारने लगते हैं. लोगों को उनके विधायक को निकम्मा और नकारा बताने लगते हैं.
देश की बात और है. ये भी मान लेते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की विचारधारा आरजेडी के मुकाबले कहीं ज्यादा मायने रखती है, अगर बीजेपी से मुकाबले की बात की जाए. लेकिन, बिहार में कांग्रेस और आरजेडी में क्या मुकाबला है? राजनीति में तेजस्वी यादव के मुकाबले राहुल गांधी बड़ा चेहरा हो सकते हैं, लेकिन बिहार में तेजस्वी यादव के साथ जो जनाधार खड़ा है, कांग्रेस नेता के लिए तो वैसा देश के किसी हिस्से में नहीं लगता.
सुना जा रहा है कि कांग्रेस में बिहार में CWC की विस्तारित बैठक में तेलंगाना जैसे सपने देख रही है. फिर तो सवाल ये भी है कि क्या बिहार में कांग्रेस के हिस्से में तेलंगाना जैसा है क्या? तेलंगाना में कांग्रेस भी वैसे ही जीत पाई, जैसे पंजाब में आम आदमी पार्टी. अकेले दम पर कांग्रेस के लिए तो मुश्किल ही था. जैसे 2014 में आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के लिए केंद्र में रास्ता बनाया, वैसे ही बीजेपी के बनाये माहौल का तेलंगाना में कांग्रेस ने फायदा उठा लिया – और अब वैसे ही ख्वाब कांग्रेस बिहार में देख रही है.
राहुल गांधी को जो कुछ भी कर रहे हैं, बेशक कांग्रेस के लिए वो सब जरूरी है. लेकिन, क्या राहुल गांधी ने बिहार में कांग्रेस का इतना प्रभाव बढ़ा दिया है कि डीके शिवकुमार यहां तक बोल दें कि बिहार में विपक्ष के मुख्यमंत्री पद का चेहरा कांग्रेस अध्यक्ष तय करेगा?
कांग्रेस अध्यक्ष क्यों तय करेगा बिहार में मुख्यमंत्री का चेहरा
कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने पटना पहुंचे कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने तेजस्वी यादव और लालू यादव को बड़ा ही सख्त मैसेज दिया है. सवाल था कि महागठबंधन में क्या तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे?
ये जवाब कांग्रेस की तरफ से दिए गये बयानों से कहीं ज्यादा सीधा, सपाट और सख्त था. ऐसे सवालों को तो राहुल गांधी भी टाल चुके हैं. कृष्णा अल्लावरु तो यहां तक बोल चुके हैं कि बिहार की जनता मुख्यमंत्री का चेहरा तय करेगी. मतलब, तो ये हुआ कि मुख्यमंत्री के नाम पर चुनाव नतीजे आने के बाद बात होगी. लेकिन, डीके शिवकुमार की बातों से तो लगता है, जैसे कांग्रेस को किसी बात का लिहाज ही न हो.
कांग्रेस नेता डीके शिवकुमार सीधे स्पष्ट शब्दों में कह रहे हैं, बिहार में इंडिया ब्लॉक के मुख्यमंत्री का चेहरा कांग्रेस अध्यक्ष तय करेंगे. कांग्रेस अध्यक्ष यानी मल्लिकार्जुन खड़गे. और, मल्लिकार्जुन खड़गे तो पहले ही बता चुके हैं कि वो राहुल गांधी और सोनिया गांधी की सहमति से काम करते हैं. मतलब, ये हुआ कि बिहार में विपक्ष के मुख्यमंत्री पद का चेहरा राहुल गांधी तय करना चाहते हैं.
जाहिर है, डीके शिवकुमार ने राहुल गांधी का मैसेज तेजस्वी यादव को दे दिया है. वो बात बोल दी है, जो राहुल गांधी वोटर अधिकार यात्रा के दौरान मीडिया के सवाल के जवाब में नहीं कह पाए. और, राहुल गांधी की वजह से बाकी कांग्रेस नेता नहीं बोल पा रहे हैं. हालांकि, कुछ कांग्रेस नेताओं ने थोड़ा नरम रुख भी दिखाया है. हो सकता है, राहुल गांधी की ही रणनीति हो.
महिला कांग्रेस की अध्यक्ष अलका लांबा का कहना है कि तेजस्वी यादव महागठबंधन का बड़ा चेहरा हैं, और मुख्यमंत्री फेस पर कोई मतभेद नहीं है. वैसे बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह तो तेजस्वी यादव को ही पहले ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा बता चुके हैं, लेकिन ये सब गठबंधन को लेकर कांग्रेस की रणनीति ही लगती है.
कोई बयान देने से कांग्रेस नेता भले ही कतराते रहे हों, लेकिन मुख्यमंत्री पद के चेहरे पर पहले कांग्रेस का काफी नरम रुख दिखता था. लेकिन लगता है राहुल गांधी के वोटर अधिकार यात्रा से बदले माहौल में मन बदल गया हो – और कांग्रेस ने सीटों के बंटवारे में बेहतर मोलभाव के लिए पैंतरा बदल लिया हो.
दिलचस्प बात ये है कि आरजेडी और कांग्रेस के बीच चल रही तकरार का बीजेपी भरपूर मजा लूट रही है. बीजेपी को तो वैसे भी हर वक्त ऐसे मौके का इंतजार रहता होगा.
लठबंधन’ में तरकार – सीट शेयरिंग पर मची है रार,
जनता देख रही है, विकास नहीं, सिर्फ़ कुर्सी का प्यार। pic.twitter.com/Cd9hmPTz2k— BJP Bihar (@BJP4Bihar) September 24, 2025
घमंडिया में कलह भारी है, जूतम-पैजार की तैयारी है।
बिहार देख रहा है — कुर्सी के लिए मारा-मारी जारी है,
इनका सत्ता ही मकसद और स्वार्थ ही आधार है। pic.twitter.com/WS8WwtoTl4— BJP Bihar (@BJP4Bihar) September 24, 2025
लालू परिवार को कांग्रेस की इतनी परवाह क्यों है?
तेजस्वी यादव की बिहार अधिकार यात्रा को राहुल गांधी के साथ हुई वोटर अधिकार यात्रा का प्रभाव कम करने की एक कोशिश के तौर पर भी लिया जा रहा है. और, ऐसा संकेत तेजस्वी यादव के बयान में भी महसूस किया गया था. बिहार अधिकार यात्रा शुरू करते वक्त तेजस्वी यादव ने कहा था कि महागठबंधन में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर कोई भ्रम नहीं है. भले ही अलका लांबा और तेजस्वी का बयान एक जैसा हो, लेकिन मायने तो बिल्कुल बदल ही जाते हैं. तेजस्वी यादव ने एक तरीके से मुख्यमंत्री पद पर अपनी दावेदारी पेश कर दी है, और अलका लांबा उसे नरम लहजे में खारिज कर रही हैं.
और, हाल के एक इंटरव्यू में तेजस्वी यादव ने भी अपना इरादा साफ कर दिया है. तेजस्वी यादव का कहना है, हम बिना सीएम फेस के चुनाव में नहीं जाएंगे… सीएम फेस पर थोड़ा इंतजार कीजिए. जनता मुख्यमंत्री बनाने वाली है. 5-10 दिन में सीट शेयरिंग हो जाएगी… इसके बाद होगा… जनता मालिक है, बिना चेहरे के चुनाव नहीं लड़ेंगे.
इंडिया ब्लॉक का बिहार चैप्टर अब भी महागठबंधन के तौर अस्तित्व बनाए हुए हैं, जिसमें फिलहाल 6 राजनीतिक दल हैं. खास बात ये है कि कांग्रेस को छोड़कर किसी भी सहयोगी दल को तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री पद का चेहरा होने में आपत्ति नहीं है. ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने के लिए कांग्रेस की मंजूरी की जरूरत ही क्यों है?
क्या तेजस्वी और लालू यादव की आरजेडी को राहुल गांधी के कांग्रेस से बिहार में किसी तरह के नुकसान की आशंका है?
और सवाल ये भी है कि आखिर कांग्रेस महागठबंधन से अलग होकर आरजेडी का कितना डैमेज कर सकती है?
अगर आरजेडी नेतृत्व के मन में ये ख्याल आ रहे हैं, तो स्वाभाविक है. दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के विरोध का नुकसान उठाना पड़ा है. लेकिन, बिहार और दिल्ली की तात्कालिक चुनावी राजनीति में काफी फर्क भी है. तेजस्वी यादव बिहार में विपक्ष में नहीं है, और ऐसे में उनको अरविंद केजरीवाल की तरह सत्ता विरोधी लहर का सामना नहीं करना है. बिहार में सत्ता विरोधी लहर तो नीतीश कुमार को फेस करनी है.
तो, क्या तेजस्वी यादव को कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को हाशिये पर रखने की कीमत चुकानी पड़ रही है?
क्या आरजेडी नेतृत्व को कांग्रेस के बिहार विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव जैसा प्रदर्शन दोहराने की संभावना लग रही है?
और ये तो कोई शक शुबहे वाली बात है नहीं कि कांग्रेस को कितनी सीटें चाहिये, ये अकेले राहुल गांधी तय कर लेंगे. बिहार महागठबंधन में कांग्रेस को कितनी सीटें देनी है, ये तो आरजेडी नेतृत्व यानी तेजस्वी यादव और लालू यादव को ही तय करना है.
ऐसा भी नहीं कि तेजस्वी यादव भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं, और आने वाले चुनाव में कांग्रेस उसमें अड़ंगा लगा सकती है. और ऐसा भी नहीं है कि आरजेडी को कांग्रेस के प्रभाव वाले राज्यों में चुनाव लड़ने के लिए सीटें चाहिये – फिर ऐसी क्या वजह है कि तेजस्वी यादव बिहार में विपक्षी गठबंधन के मुख्यमंत्री पद के चेहरे के लिए कांग्रेस के रुख पर निर्भर हो गए हैं.
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