‘अंग्रेजों ने नहीं, भारतीय सैनिकों ने हमें दिलाई आजादी…’, हाइफा मेयर बोले- स्कूलों में बदलेंगे सिलेबस – Not the British, but Indian soldiers liberated us from Ottomans, Says Mayor of Haifa ntcpan

ब्रिटिश काल में भारतीय सैनिक अंग्रेजों की तरफ से लड़ते थे, लेकिन जीत का श्रेय हमेशा ब्रिटिश आर्मी को दिया जाता था. लेकिन अब इजरायल के शहर हाइफा ने अपनी आजादी में योगदान देने के लिए भारतीय सैनिकों के योगदान को सराहा है. हाइफा में सोमवार को शहीद भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई. यहां के मेयर ने कहा कि शहर के स्कूलों में इतिहास की किताबों में यह बदलाव किया जा रहा है कि शहर को ओटोमन शासन से आजाद कराने वाले ब्रिटिश नहीं बल्कि भारतीय सैनिक थे.
‘हमें गलत इतिहास पढ़ाया गया’
हाइफा के मेयर योना याहाव ने कहा, ‘मैं इसी शहर में पैदा हुआ और यहीं से ग्रेजुएट हुआ. हमें लगातार यही बताया जाता था कि इस शहर को अंग्रेजों ने आज़ाद कराया था, जब तक कि एक दिन हिस्टोरिकल सोसाइटी के एक व्यक्ति ने मेरे दरवाज़े पर दस्तक नहीं दी और कहा कि उन्होंने गहरी रिसर्च की है और पाया है कि अंग्रेजों ने नहीं, बल्कि भारतीयों ने इस शहर को ओटोमन साम्राज्य से आज़ाद कराया था.’ इस लड़ाई को बैटल ऑफ हाइफा कहा जाता है.
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याहाव ने कहा कि हर स्कूल में हम सिलेबस बदल रहे हैं और कह रहे हैं कि अंग्रेजों ने नहीं, बल्कि भारतीयों ने हमें आजाद कराया. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, भालों और तलवारों से लैस भारतीय घुड़सवार रेजिमेंटों ने तमाम मुश्किलों के बावजूद माउंट कार्मेल की चट्टानी ढलानों से ओटोमन सेनाओं को खदेड़कर शहर को आजाद कराया, जिसे ज्यादातर युद्ध इतिहासकार ‘इतिहास का अंतिम महान घुड़सवार अभियान’ मानते हैं.
मेयर याहाव ने 2009 में इसी जगह पर आयोजित पहले समारोह के दौरान कहा था कि हाइफा के इतिहास के सिलेबस में भारतीय सैनिकों के बलिदान की कहानी शामिल की जाएगी और आज यह शहर के युवाओं के बीच प्रसिद्ध है.
सेना मनाती है हाइफा दिवस
भारतीय सेना हर साल 23 सितंबर को हाइफा दिवस के रूप में मनाती है, ताकि तीन बहादुर भारतीय घुड़सवार रेजिमेंटों – मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर लांसर्स को श्रद्धांजलि दी जा सके, जिन्होंने 1918 में इसी दिन 15वीं इंपीरियल सर्विस कैवलरी ब्रिगेड की एक आक्रामक घुड़सवार कार्रवाई के बाद हाइफा को आजाद कराने में मदद की थी.
भारतीय मिशन और हाइफा नगरपालिका की तरफ से यहां भारतीय सैनिकों के श्मशान में हर साल बहादुर भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. इस जंग में उनकी बहादुरी के सम्मान में कैप्टन अमन सिंह बहादुर और दफादार जोर सिंह को इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट (आईओएम) से सम्मानित किया गया. कैप्टन अनूप सिंह और द्वितीय लेफ्टिनेंट सगत सिंह को मिलिट्री क्रॉस (एमसी) से सम्मानित किया गया.
हाइफा के हीरो थे दलपत सिंह
मेजर दलपत सिंह, जो हाइफा के हीरो के रूप में लोकप्रिय थे, को उनकी बहादुरी के लिए मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया. इस युद्ध में जोधपुर लांसर्स के आठ सैनिक शहीद हुए और 34 घायल हुए. लेकिन उन्होंने 700 से ज़्यादा कैदी, 17 फ़ील्ड गन और 11 मशीन गन भी ज़ब्त कर लीं. भारतीय सैनिकों ने इस अभियान में अहम भूमिका निभाई, जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में ओटोमन सेना की हार हुई.
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इजरायल में हाइफा, येरूशलम और रामले में भारतीय सैनिकों के स्मारक मौजूद हैं, जिनमें कुछ भारतीय सैनिक भी शामिल हैं जो यहूदी वंश के थे. इजरायल के इन शहरों के कब्रिस्तानों में करीब 900 भारतीय सैनिक दफन हैं. इन सैनिकों की बहादुरी को श्रद्धांजलि देने के लिए, भारतीय दूतावास, इजरायली अधिकारियों की मदद से, पवित्र भूमि में ‘द इंडिया ट्रेल’ स्थापित कर रहा है.
दिल्ली में तीन मूर्ति हाइफा चौक
हाइफा में इतिहास के सिलेबस में कक्षा 3 से 5 तक भारतीय सैनिकों की तरफ से हाइफा की आजादी की कहानी पढ़ाई जाती है. हाइफा हिस्टोरिकल सोसायटी भी पिछले एक दशक से शहर के स्कूलों में जाकर युवाओं को यह कहानी सुना रही है.
इजरायल के साथ मित्रता के प्रतीकात्मक संकेत के रूप में, भारत ने जनवरी 2018 में इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की दिल्ली यात्रा के दौरान, इस ऐतिहासिक काम के बाद 1922 में नई दिल्ली में निर्मित प्रतिष्ठित तीन मूर्ति चौक का नाम बदलकर ‘तीन मूर्ति हाइफा चौक’ कर दिया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुलाई 2017 में अपनी इजरायल यात्रा के दौरान हाइफा में भारतीय श्मसान का दौरा किया और शहर की आजादी में उनकी अहम भूमिका के लिए मेजर दलपत सिंह की स्मृति में एक पट्टिका का अनावरण किया. इजरायल पोस्ट ने शहर को आजाद कराने में भारतीय सैनिकों की भूमिका की सराहना में 2018 में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था.
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