Dattatreya Hosabale’s column: Many people have been supportive of the Sangh’s journey. | दत्तात्रेय होसबाले का कॉलम: संघ की यात्रा में कई लोग सहयोगी रहे हैं

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6 घंटे पहले
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दत्तात्रेय होसबाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य को अभी सौ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। इस सौ वर्ष की यात्रा में कई लोग सहयोगी और सहभागी रहे हैं। यह यात्रा परिश्रम पूर्ण और कुछ संकटों से अवश्य घिरी रही, परंतु सामान्यजनों का समर्थन उसका सुखद पक्ष रहा। आज जब शताब्दी-वर्ष में सोचते हैं तो ऐसे कई प्रसंग और लोगों का स्मरण आता है, जिन्होंने इस यात्रा की सफलता के लिए स्वयं सब कुछ समर्पित कर दिया।
प्रारंभिक काल के वे युवा कार्यकर्ता एक योद्धा की तरह देश प्रेम से ओत-प्रोत होकर संघ-कार्य हेतु देशभर में निकल पड़े थे। अप्पाजी जोशी जैसे गृहस्थ कार्यकर्ता हों या प्रचारक स्वरूप में दादाराव परमार्थ, बालासाहब व भाऊराव देवरस बंधु, यादवराव जोशी, एकनाथ रानडे आदि लोग डॉक्टर हेडगेवार जी के सान्निध्य में आकर संघ कार्य को राष्ट्र सेवा का जीवन-व्रत मानकर जीवनपर्यंत चलते रहे। संघ का कार्य लगातार समाज के समर्थन से ही आगे बढ़ता गया। संघ-कार्य सामान्यजन की भावनाओं के अनुरूप होने के कारण शनैः-शनैः इस कार्य की स्वीकार्यता समाज में बढ़ती चली गई।
स्वामी विवेकानंद से एक बार उनके विदेश प्रवास में यह पूछा गया कि आपके देश में तो अधिकतम लोग अनपढ़ हैं, अंग्रेजी तो जानते ही नहीं हैं, तो आपकी बड़ी-बड़ी बातें भारत के लोगों तक कैसे पहुंचेगी? उन्होंने कहा कि जैसे चींटियों को शक्कर का पता लगाने के लिए अंग्रेजी सीखने की जरूरत नहीं है, वैसे ही मेरे भारत के लोग अपने आध्यात्मिक ज्ञान के चलते किसी भी कोने में चल रहे सात्विक कार्य को तुरंत समझ जाते हैं व वहीं वो चुपचाप पहुंच जाते हैं। इसलिए वे मेरी बात समझ जाएंगे। यह बात सत्य सिद्ध हुई। वैसे ही संघ के इस सात्विक कार्य को धीरे ही क्यों न हो, सामान्यजन से स्वीकार्यता व समर्थन लगातार मिल रहा है।
संघ-कार्य के प्रारंभ से ही संपर्कित व नए-नए सामान्य परिवारों द्वारा संघ कार्यकर्ताओं को आशीर्वाद व आश्रय प्राप्त होता रहा। स्वयंसेवकों के परिवार ही संघ-कार्य संचालन के केंद्र रहे। सभी माता-भगिनियों के सहयोग से ही संघ-कार्य को पूर्णता प्राप्त हुई।
दत्तोपंत ठेंगड़ी या यशवंतराव केलकर, बालासाहेब देशपांडे तथा एकनाथ रानडे, दीनदयाल उपाध्याय या दादासाहेब आपटे जैसे लोगों ने संघ-प्रेरणा से समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में संगठनों को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई। ये सभी संगठन वर्तमान समय में व्यापक विस्तार के साथ-साथ उन क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव लाने में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। समाज की बहनों के मध्य इसी राष्ट्र-कार्य हेतु राष्ट्र सेविका समिति के माध्यम से मौसी जी केलकर से लेकर प्रमिलाताई मेढ़े जैसी मातृसमान हस्तियों की भूमिका इस यात्रा में अत्यंत महत्वपूर्ण रही है।
संघ द्वारा समय-समय पर राष्ट्रीय हित के कई विषयों को उठाया गया। उन सभी को समाज के विभिन्न लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ, जिनमें कई बार सार्वजनिक रूप से विरोधी दिखने वाले लोग भी शामिल रहे। संघ का यह भी प्रयास रहा कि व्यापक हिंदू हित के मुद्दों पर सभी का सहयोग प्राप्त किया जाए। राष्ट्र की एकात्मता, सुरक्षा, सामाजिक सौहार्द तथा लोकतंत्र एवं धर्म-संस्कृति की रक्षा के कार्य में असंख्य स्वयंसेवकों ने अवर्णनीय कष्ट का सामना किया और सैकड़ों का बलिदान भी हुआ। इन सबमें समाज के संबल का हाथ हमेशा रहा है।
1981 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में भ्रमित करते हुए कुछ हिंदुओं का मतांतरण करवाया गया। इस महत्वपूर्ण विषय पर हिंदू जागरण के क्रम में आयोजित लगभग पांच लाख की उपस्थिति वाले सम्मेलन की अध्यक्षता करने हेतु तत्कालीन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. कर्णसिंह उपस्थित रहे। 1964 में विश्व हिंदू परिषद की स्थापना में प्रसिद्ध संन्यासी स्वामी चिन्मयानंद, मास्टर तारा सिंह, जैन मुनि सुशील कुमार जी, बौद्ध भिक्षु कुशोक बकुला व नामधारी सिख सद्गुरु जगजीत सिंह की प्रमुख सहभागिता रही।
हिंदू शास्त्रों में अस्पृश्यता का कोई स्थान नहीं है- यह पुनर्स्थापित करने के उद्देश्य से श्री गुरुजी गोलवलकर की पहल पर उडुपी में आयोजित विश्व हिंदू सम्मेलन में पूज्य धर्माचार्यों सहित सभी संतों-महंतों का आशीर्वाद व उपस्थिति रही। जैसे प्रयाग सम्मेलन में न हिंदुः पतितो भवेत् ( कोई हिंदू पतित नहीं हो सकता) का प्रस्ताव स्वीकार हुआ था, वैसे ही इस सम्मेलन का उद्घोष था- हिंदवः सोदराः सर्वे अर्थात सभी हिंदू भारत माता के पुत्र हैं। इन सभी में तथा गोहत्या बंदी का विषय हो या राम जन्मभूमि अभियान- संतों का आशीर्वाद संघ स्वयंसेवकों को हमेशा प्राप्त होता रहा है।
स्वाधीनता के तुरंत पश्चात राजनीतिक कारणों से संघ-कार्य पर तत्कालीन सरकार द्वारा जब प्रतिबंध लगाया गया, तब समाज के सामान्यजनों के साथ अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने विपरीत परिस्थितियों में भी संघ के पक्ष में खड़े होकर इस कार्य को संबल प्रदान किया।
यही बात आपातकाल के संकट-समय में भी अनुभव में आई। यही कारण है कि इतनी बाधाओं के पश्चात भी संघ-कार्य अक्षुण्ण रूप से निरंतर आगे बढ़ रहा है। इन सभी परिस्थितियों में संघ-कार्य एवं स्वयंसेवकों को संभालने का दायित्व हमारी माता-भगिनियों ने बड़ी कुशलता से निभाया। यह सभी बातें संघ-कार्य हेतु सर्वदा प्रेरणास्रोत बन गयी हैं।
भविष्य में राष्ट्र की सेवा में समाज के सभी लोगों के सहयोग एवं सहभागिता के लिए संघ के स्वयंसेवक शताब्दी वर्ष में घर-घर संपर्क के द्वारा विशेष प्रयास करेंगे। देशभर में बड़े शहरों से लेकर सुदूर गांवों के सभी जगहों तक तथा समाज के सभी वर्गों तक पहंुचने का प्रमुख लक्ष्य रहेगा। समूची सज्जन-शक्ति के समन्वित प्रयासों द्वारा राष्ट्र के सर्वांगीण विकास की आगामी यात्रा सुगम एवं सफल होगी।
घर-घर जाकर संपर्क करेंगे संघ के स्वयंसेवक… राष्ट्र की सेवा में समाज के सभी लोगों के सहयोग एवं सहभागिता के लिए संघ के स्वयंसेवक शताब्दी वर्ष में घर-घर संपर्क के द्वारा विशेष प्रयास करेंगे। देशभर में बड़े शहरों से लेकर सुदूर गांवों के सभी जगहों तक तथा समाज के सभी वर्गों तक पहुंचने का प्रमुख लक्ष्य रहेगा। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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