Sunday 05/ 10/ 2025 

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Rashmi Bansal’s column – Take a step, trust me, the caravan will keep forming… | रश्मि बंसल का कॉलम: एक कदम लीजिए, भरोसा कीजिए, कारवां बनता जाएगा…

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12 घंटे पहले

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रश्मि बंसल, लेखिका और स्पीकर - Dainik Bhaskar

रश्मि बंसल, लेखिका और स्पीकर

बहुत सुना था कोलकाता की दुर्गा पूजा के बारे में। इस बार अपनी आंखों से देखने को मिला। शहर दुल्हन की तरह मां के स्वागत के लिए सजा हुआ था। हर मोहल्ले में रौनक, एक से बढ़कर एक पंडाल, कला और कल्पना का मोहक प्रदर्शन। मानो आत्मा तृप्त हो गई, दर्शन से।

एक बात बहुत अच्छी लगी- यहां के लोग काफी सुशील हैं। कोई धक्का-मुक्की नहीं, कोई वीआईपी एंट्री नहीं। एक कोने में दानपेटी रखी हुई है, उसे ढूंढना पड़ता है। तो जितना मैंने देखा, मुझे लगा लोगों के मन में मां के नाम पर पैसे कमाने की भावना नहीं है।

दूसरी बात यह कि यहां के कारीगर सचमुच कमाल के हैं। हर पंडाल की थीम अलग है। कोई पंडाल सोमनाथ की तरह बनाया गया है, तो कोई केदारनाथ की तरह। एक सबसे भव्य पंडाल तो ऐसा शानदार था कि फोटो देखने वाले को लगेगा कि थाइलैंड में खींची तस्वीर है।

लेकिन चाहे पंडाल देखने में कितना भी सुंदर हो, उसे बनाने के लिए बहुत ही साधारण मटैरियल का इस्तेमाल होता है। ज्यादातर डेकोरेशन बांस का बनता है, जिसे हाथों के कमाल से भिन्न-भिन्न रूप दिया जाता है। साथ में जूट, कपड़ा, मिट‌्टी। आज की भाषा में- इट इज टोटली इको-फ्रेंडली।

थीम जो भी हो, हर पंडाल के अंदर आपको मां के महिषासुरमर्दिनी रूप का दर्शन मिलेगा। अब यह तो आप जानते हैं कि महिषासुर एक राक्षस था, मगर पूरी कहानी शायद नहीं पता। तो मामला यह है कि महिषासुर एक असुर का बेटा था, जो अपनी मर्जी से रूप बदल सकता था।

कभी इंसान का रूप, कभी भैंसे का। और तो और, ब्रह्माजी से उसे वरदान मिला था कि कोई आदमी उसे नहीं मार पाएगा। तो बस, तीनों लोक में उसने हाय-तौबा मचाई हुई थी। आखिर, दुर्गा मां प्रकट हुईं और नौ दिन के घमासान युद्ध के बाद महिषासुर मारा गया। और इस तरह संसार एक दुष्ट से मुक्त हुआ।

लेकिन अगर हम आज के हालात देखें तो क्या संसार दुष्टता से मुक्त है? नहीं, क्योंकि आज भी हमारे बीच एक नहीं, अनेक महिषासुर मौजूद हैं। वो वोट मांगते वक्त आदर से पेश आते हैं, जनता को आश्वासन देते हैं कि मैं आपके हित में काम करूंगा, लेकिन कुर्सी पर बैठते ही भैंसे का रूप ले लेते हैं।

उन्हें सिर्फ अपने पेट की परवाह है और उनकी भूख का कोई अंत नहीं। पब्लिक के पैसों पर मुंह मारना उनकी आदत है। खा-पी कर वो मुटाते जाते हैं, जबकि देशवासियों की थाली में पर्याप्त खाना भी नहीं होता। और हां, महिषासुर होने का गुरूर इतना कि बीच सड़क में मटक-मटक कर चलते हैं कि देखो, मैं कितना शक्तिशाली हूं, मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। बेहतर है आप रास्ते से हट जाओ।

क्या यह महिषासुर पराजित हो सकता है? आज की तारीख में अगर एक चुनाव हार जाता है, तो दूसरा उसकी जगह ले लेता है। तो हमें जरूरत है दुर्गा की। एक नहीं, अनेक महिलाएं, जो योद्धा रूप धारण करके हमारे देश को नरक से स्वर्ग बनाएं।

अब आप कहेंगे यह कैसे होगा? अगर महिलाएं एकजुट हों तो कुछ भी मुमकिन है। जनसंख्या का आधा हिस्सा हम हैं, लेकिन पावर हमने आदमियों के हाथ में दे दी। अगर सौ महिलाएं सचमुच के महिषासुरों को रास्ते से हटाने का निश्चय कर लें तो उन्हें हटना ही पड़ेगा।

पूजा पंडाल में दुर्गाजी के साथ होती हैं विद्यास्वरूप सरस्वती, विघ्नहर्ता गणेश, योद्धा कार्तिकेय और धनदाता लक्ष्मी। तो मुझे लगता है जहां दुर्गा हैं, वहां प्रगति और समृद्धि भी है। अगर हम सचमुच विकसित भारत बनाना चाहते हैं तो उसके लिए युद्ध लड़ना होगा।

हां, ये आसान नहीं, पर आप शुरू कीजिए अपने मोहल्ले से। अगर वहां कचरे के ढेर पड़े रहते हैं, अपनी टोली लेकर कॉर्पोरेटर के ऑफिस पहुंचिए। उनकी जान खाइए। हर हफ्ते किटी पार्टी के बजाय अपने टाइम का इस रूप में इस्तेमाल कीजिए। शोर मचाइए, मीडिया को बुलाइए। एक कदम लीजिए, भरोसा कीजिए, कारवां बनता जाएगा।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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