Sunday 05/ 10/ 2025 

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Ashutosh Varshney’s column: In the coming times, our conflict with Pakistan will increase rather than decrease. | आशुतोष वार्ष्णेय का कॉलम: आने वाले समय में पाक से हमारा संघर्ष घटने के बजाय बढ़ेगा

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3 घंटे पहले

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आशुतोष वार्ष्णेय ब्राउन यूनिवर्सिटी, अमेरिका में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर - Dainik Bhaskar

आशुतोष वार्ष्णेय ब्राउन यूनिवर्सिटी, अमेरिका में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर

इसमें संदेह नहीं है कि पाकिस्तान अपने पुनरुत्थान के नए दौर में प्रवेश कर रहा है। हाल ही में व्हाइट हाउस में शाहबाज शरीफ, असीम मुनीर और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच हुई मुलाकात की जो तस्वीरें सोशल मीडिया पर प्रसारित हुईं, वे काफी प्रतीकात्मक थीं।

अगर यह उभरता हुआ रुख जारी रहा, तो पाकिस्तान मजबूती से अमेरिका की ओर लौट सकता है। सऊदी अरब के पाकिस्तान के साथ रक्षा समझौते से भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा मिला है। इस प्रकार पाकिस्तान के अमेरिका, चीन और सऊदी अरब- तीनों के साथ एक साथ घनिष्ठता का आनंद लेने की संभावना है।

लेकिन हमें पहले अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान के पुनरुत्थान की सीमाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिए। यह ध्यान रखना जरूरी है कि पाकिस्तान के आर्थिक पुनरुत्थान के कोई खास संकेत नहीं दिख रहे हैं। 1960 और 1980 के दशक में कहा जाता था कि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भारत से आगे है।

1990 तक भारत (371 डॉलर) और पाकिस्तान (344.5 डॉलर) की प्रति व्यक्ति आय लगभग बराबर हो गई थी। लेकिन दिसंबर 2024 में भारत की प्रति व्यक्ति आय जहां लगभग 2,800 डॉलर हो गई थी, वहीं पाकिस्तान के लिए यह 1,485 ही थी।

1991 में, भारत की जीडीपी पाकिस्तान से लगभग छह गुना बड़ी थी। अब भारत की अर्थव्यवस्था दस गुना बड़ी है। 1993 से भारत की आर्थिक विकास दर कमोबेश लगातार ऊंची रही है। वहीं 2019 से पाकिस्तान का आर्थिक संकट इतना विकट हो गया है कि उसे आईएमएफ से मदद लेनी पड़ी है।

इसलिए पाकिस्तान का पुनरुत्थान आर्थिक नहीं, मुख्यतः सामरिक क्षेत्र में हुआ है। शीत युद्ध के दौरान, पाकिस्तान अमेरिका का सहयोगी था। लेकिन सोवियत संघ के पतन और शीत युद्ध की समाप्ति के साथ, अमेरिका की पाकिस्तान में रुचि कम हो गई और वह भारत के करीब होता गया। 2000 तक अमेरिका में भारत पर एक द्विदलीय सहमति बन गई थी।

डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन, दोनों ही प्रशासनों ने चीन का मुकाबला करने के लिए भारत को बढ़ावा दिया है। ट्रम्प इस सहमति से अलग हो रहे हैं। ट्रम्प के अत्यधिक ऊंचे टैरिफ के कारण भारत के अमेरिका के साथ तनावपूर्ण संबंध हैं। एक अलग सुरक्षा पहलू भी सामने आया है।

1999 में जब कारगिल युद्ध हुआ, तो अमेरिका ने भारत के समर्थन में हस्तक्षेप किया और पाकिस्तान को युद्ध समाप्त करने पर मजबूर किया। इसकी तुलना मई में हुए सैन्य संघर्ष से करें। अमेरिका ने हस्तक्षेप तो किया, लेकिन उसने तटस्थ रुख अपनाया, भारत का समर्थन नहीं किया।

इसके अलावा, न केवल पाकिस्तान के लिए अमेरिका के टैरिफ एशिया में सबसे कम हैं, बल्कि ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका क्रिप्टोकरेंसी और रेयर अर्थ के आधार पर पाकिस्तान के साथ व्यापक आर्थिक संबंध भी तलाश रहा है। पाकिस्तान के प्रति बदलाव मूलतः ट्रम्प के अपने विश्व-दृष्टिकोण में निहित है, जो भू-राजनीति के बजाय सौदों और लेन-देन से प्रेरित है। अगर वे सच में ही भू-राजनीति से प्रेरित होते, तो चीन के सबसे महत्वपूर्ण सहयोगियों में से एक को गले नहीं लगाते। इस सबका भारत-पाकिस्तान संबंधों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? भारत सरकार का तर्क है कि पहलगाम हमले पर भारत की कड़ी सैन्य प्रतिक्रिया ने पाकिस्तान के राज्य-प्रायोजित आतंकवाद की लागत बढ़ा दी है। जबकि हकीकत यह है कि वास्तव में इसने सैन्य और नागरिक नेताओं की वैधता बढ़ाई है और उनके मिश्रित संबंधों में एक निश्चित संतुलन स्थापित किया है। ऐसे में पाकिस्तान के साथ हमारा संघर्ष बढ़ेगा, कम नहीं होगा। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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