Tuesday 02/ 12/ 2025 

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संघ के 100 साल: नागपुर के वो दंगे…और RSS की लोकप्रियता को मिला पहला बूस्टर डोज – Nagpur riot rss 100 years story dr hedgewar sangh story ntcppl

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े इतिहासकार 1927 के नागपुर दंगों को काफी अहमियत देते आए हैं. कइयों को लगता है कि इन दंगों ने डॉ केशव बलिराम हेडगेवार और RSS की सोच, दिशा और उन पर लोगों के विश्वास को काफी हद तक बदल दिया. खिलाफत-कांग्रेस दोस्ती टूटने के बाद एक डाटा के मुताबिक औसतन अगले 10 साल तक 381 लोग हर साल दंगे में मारे गए. ऐसे में नागपुर भी अछूता नहीं रहा. मुद्दे थे गौहत्या पर ऐतराज, मस्जिद के सामने से शोभा यात्राओं के म्यूजिक के साथ निकलने पर ऐतराज, मंदिरों में मांस आदि फेंक देना आदि. उससे पहले मुस्लिम लीग के ‘लाल इश्तिहार’ को भी जानने की जरुरत है.

ढाका अधिवेशन में बांटे गए इस लाल परचे में लिखा था, “ऐ मुसलमान भाइयो! उठो, जागो! एक ही स्कूल में हिंदुओं के साथ मत पढ़ो. हिंदू की दुकान से कोई सामान मत खरीदो. हिंदुओं द्वारा बनाई गई कोई वस्तु मत छुओ. हिंदू को कोई रोजगार मत दो. हिंदुओं के अधीन किसी घटिया पद को स्वीकार ना करो. आप अनपढ़ हैं, लेकिन यदि आप ज्ञान प्राप्त कर लें तो आप तुरंत सभी हिंदुओं को जहनन्नुम भेज सकते हैं. इस प्रांत में आपका बहुमत है. हिंदू की अपनी कोई सम्पदा नहीं है. आपकी सम्पदा आपसे छीनकर ही यह धनी हो गया है. यदि आपमें पर्याप्त जागृति पैदा हो जाए तो हिंदू भूखे मरेंगे और शीघ्र ही मुसलमान बन जाएंगे”.

ऐसे में हिंदू महासभा ने 1923 में नागपुर में हुए दंगों के बाद इसी शस्त्र को अपनाने का आह्वान किया, अपील की कि मुस्लिमों से सामान ना खरीदा जाए, और गुस्से में कुछ लोगों ने बंद भी कर दिया. इस तरह की अपीलें आज भी होती हैं, और अक्सर कोई फर्क नहीं पड़ता. दो साल बाद उसी शहर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई. धीरे धीरे उसका स्वरूप तय होने लगा कि क्या क्या पद होंगे, क्या गणवेश होगा, छात्र स्वयंसेवकों को दूसरे शहर में पढ़ने भेजा जाएगा ताकि दूसरे शहरो में भी संघ कार्य़ शुरू हो सके. लेकिन 1924 में 18 दंगे देश भर में हुए, उसके अगले साल 16 ही रह गए, लेकिन 1926 में 35 दंगे हुए तो नागपुर में भी उसका असर देखने को मिलने लगा. संघ कार्यकर्ताओं पर भी दवाब पड़ने लगा कि हिंदू बस्तियों को सुरक्षा दो. लगातार ये खबरें उड़ती रहती थीं कि बाहर से मुसलमानों के दस्ते आकर हमला कर देंगे. इधर स्थानीय मुस्लिम बाकी जातियों को समझाते थे कि हमारी लड़ाई केवल ब्राह्मणों से है, जिन्होंने हमारे आर्थिक बहिष्कार की अपील की है.

ये थे संघ के ‘सुपर सेवन’

हेडगवार की अगुवाई में तब संघ ने कई काम किया,. एक तो स्वामी श्रद्धानंद की याद में उनके ही नाम से मुंबई में साप्ताहिक शुरू करने के लिए पैसे जुटाए, साथ ही उनके नाम से एक अनाथालय खोलने में भी सहायता की. तभी तनाव के बीच कुछ घटनाएं और हुईं, डॉ हेडगेवार को धमकी भरे पत्र आने लगे, उनके घर पर पथराव भी हुआ, सो अगली रात से स्वयंसेवक पहरा देने लगे. एक दिन एक हिंदू लड़की को कुछ मुस्लिमों ने उठा लिया, पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी थीं. तब संघ ने 7 वरिष्ठ अधिकारियों की टोली बनाई, जिनमें हेडगेवार, गोविंदाराव चोलकर, रामचंद्र कोश्टि, भाऊजी कावरे, अन्ना सोहोनी, बालाजी सखदेव और कृष्णा जोशी थे. सभी सातों की एक ही यूनीफॉर्म थी. काली टोपी, सफेद कमीज, खाकी जैकेट और एक धोती. उनका इतना प्रभाव पड़ा कि मुस्लिम इलाके से उस लड़की को वापस लाया गया. हर मुश्किल स्थिति में इन सातों की उपस्थिति से काफी असर पड़ता था. इसी दौरान गर्मियों में संघ का गर्मियों का वर्ग (ओटीसी) आयोजित किया गया. हेडेगवार जहां वर्ग में व्यस्त थे, उनके घर पर पत्थरबाजी की गई, यहां तक कि जलते हुए तकिए तक फेंके गए.
 
जब डॉ हेडगेवार को जन्मदिन उपहार में मिली खुखरी

उन दिनों संघ से जुड़े लोगों की अनौपचारिक विषय होता था कि जब राजा विदेशी है, उसकी पुलिस नागरिकों की रक्षा के बजाय निगरानी में रहती है या खुद के लिए, अधिकारियों के लिए माल बनाने में, तो क्या दंगाइयों की भीड़ के सामने चुपचाप जान दे दी जाए? ऐसे में गीता में अर्जुन कर्ण संवाद और शास्त्रों में लिखे आपद धर्म की भी चर्चा होती थी. क्या वो लड़कियां उठाकर ले जाएं और हम अहिंसा का राह अलापते रहें या कम से कम माताओं बहनों की इज्जत के लिए तो हथियार उठाएं. यूं अन्ना सोहोनी का काम था स्वयंसेवकों को लाठी आदि का प्रशिक्षण देना, लेकिन जिस तरह से दंगे का खतरा बढा था और अंग्रेजी राज में पुलिस निष्किय दिख रही थी, उन्होंने अपने घर पर एक छोटी सी हथियार फैक्ट्री भी लगा ली, जहां खुखरी, चाकू, तलवार आदि बनाने शुरू कर दिए. डॉ हेडगेवार के जन्मदिन पर उन्हें भी एक खुखरी उनकी सुरक्षा के लिए भेंट की थी. हालांकि किसी ने उनके पास वो दोबारा नहीं देखी. दिलचस्प बात थी कि अप्पाजी जोशी जैसे कई संघ कार्यकर्ताओं के पास सीधे सीधे कांग्रेस का भी पद था, लेकिन इस दौर में वो भी गांधीजी के अहिंसा मंत्र को आत्मरक्षार्थ मानने को तैयार नहीं थे.

RSS के सौ साल से जुड़ी इस विशेष सीरीज की हर कहानी

वर्ग खत्म होने के बाद जून जुलाई के महीनों में अचानक मुस्लिम इलाकों में गतिविधियां बढ़ गई, वो समूह बनाकर हिंदू इलाकों में जाने लगे. ईद के दिन मुंजे को धमकी भरा पत्र मिला तो सभी उनके घर सुरक्षा देने जा पहुंचे. डॉ हेडगेवार को सूचनाएं मिलने लगी थीं कि मुस्लिम अपने पत्नी बच्चों को वहां से बाहर भेज रहे हैं और बाहरी लोग वहां जुटने लगे हैं. इधर डॉ हेडगेवार जातिगत भेदभाव को मिटाने में लगे हुए थे, वो सबसे कहते थे कि हम ब्राह्मण, महार, मराठा नहीं बल्कि 35 करोड़ हिंदू हैं… एकजुट रहेंगे तो कोई हमला करने की सोचेगा ही नहीं, तो हिंसा होगी ही नहीं. लेकिन उनको पता था कि शस्त्र से मुकाबले के लिए तो शस्त्र उठाना ही पड़ सकता है, सो नागपुर के जिन इलाकों पर हमले की ज्यादा आशंका थी, वहां के स्वयंसेवकों से वो ज्यादा सम्पर्क में थे.
 
लक्ष्मी पूजा के दिन हथियारों के साथ जुलूस की साजिश

अगस्त का आखिरी सप्ताह था. पूरे मराठवाड़ा में गणेशोत्सव के दौरान महालक्ष्मी पर्व को मनाया जा रहा था. मुस्लिमों को पता था कि इस बार भी जुलूस निकलेगें, सो इस बार उनको सबक सिखाने की तैयारी थी. विरोध की तैयारी थी. इसी दौरान मुस्लिमों की तरफ से ऐलान हुआ कि 4 सितम्बर को एक बड़े जुलूस के साथ तीन साल पहले दिवंगत हुए सैयद मीर साहब की मौत को 3 साल पूरा होने पर कार्यक्रम किया जाएगा. सभी मुस्लिमों से उसमें आने की अपील की गई, और आसपास के शहरों से हजारों मुस्लिम नवाबपुरा मस्जिद में जुटने लगे. यानी कोई भी मुस्लिम त्यौहार का दिन नहीं था, बल्कि जानबूझकर कुछ मुस्लिम नेताओं ने पूरे समाज को दंगे की आग में झोंकने की तैयारी कर ली थी.

नागपुर दंगों के दौरान संघ के सदस्यों ने सुरक्षा का मोर्चा संभाला. (Photo: ITG)

हर साल गणेशोत्सव के समय डॉ हेडगेवार आस पास के शहरों के कार्यक्रमों में भाग लेने चले जाते थे. सो इस दिन वो बाहर थे. इस बात से भी शायद उन मुस्लिम नेताओं का जोश हाई था. लेकिन उनकी तैयारियां पहले से ही पूरी थीं. दिन के 12 बजे से ही स्वयंसेवकों ने मोहिते वाडा में जुटना शुरू कर दिया था, कई सौ स्वयंसेवक वहां दंड के साथ पहुंच चुके थे. अन्ना सोहोनी को उस दिन किसी भी अप्रिय घटना से निपटने की जिम्मेदारी दी गई थी. ब्रिटिश पुलिस अधिकारियों को अंदाजा था कि इतने बडे पैमाने पर बाहरी मुस्लिम आ रहा है तो तीन साल पहले का वाकया दोहराया जा सकता है, लेकिन उन्होंने उसे रोकने के लिए कोई एक्शन नहीं लिया. इधर अन्ना सोहोनी ने स्वयंसेवकों की 16 बटालियनें बनाकर तैनात करनी शुरू कर दी थीं, जिनमें से एक बीएस मुंजे के घर पर भी थी.
 
नहीं माना जुलूस में हथियार लेकर ना चलने का कानून

जैसा अंदेशा था, वैसा ही हुआ, अल्लाहू अकबर के नारों के साथ मुस्लिमों के जुलूस में कोई अनुशासन नहीं रहा. 1926 में कलकत्ता में हुए दंगों के बाद ही ब्रिटिश सरकार ने ये आदेश जारी कर दिया था कि मोहर्र्म के जुलूसों में हथियार लेकर नहीं जा सकते, संगीत, नारेबाजी नहीं कर सकते. लेकिन नागपुर के जुलूस में सैकड़ों तलवारें, खुखरी और चाकू लहरा रहे थे. मुंजे के घर पर आकर तो मानो वो पागल हो गए, लेकिन स्वयंसेवकों ने पुलिस को चुपचाप खड़ी देखकर खुद ही मोर्चा संभालना शुरू कर दिया. मुस्लिम जुलूस के आयोजकों को अन्ना सोहोनी की तैयारियों का अंदाजा ही नहीं था. 3 दिन तक पूरे शहर में झड़पें चलती रहीं. जिन इलाकों को मुस्लिम नेताओं ने कमजोर समझा था, वही सबसे ज्यादा मजबूत साबित हुए. पहली बार नागपुर के हिंदुओं ने एकटजुटता दिखाई.
 
दंगाइयों से लड़ते वीरगति पाने वाला पहला स्वयंसेवक!

मुस्लिम भीड़ ने एक हिंदू शवयात्रा पर भी हमला कर दिया, लेकिन अब लोगों को सहन नहीं था, इकट्ठे होकर बदला लेने पहुंचे. लेकिन इसी झड़प में एक हिंदू स्वयंसेवक ढुंडीराज लहगांवकर को दंगाइयों ने मार डाला. ये शायद पहली बार किसी ने संघ के किसी स्वयंसेवक की हत्या की थी. उसके बाद तो हिंदुओं का गुस्सा और भी ज्यादा भड़क उठा, तब पहली बार ब्रिटिश सेना हरकत में आई और मुस्लिम मर्दों के शहर से भाग जाने की स्थिति में उनके पत्नी बच्चों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया.

डॉ हेडगेवार को जब सूचना मिली तो फौरन नागपुर लौटे, ये तीसरे दिन की दोपहर थी. हर किसी ने मना किया, लेकिन वो नहीं माने और खाली पड़े स्टेशन से अकेले पैदल अपने घर तक गए. कई हिंदू मारे गए थे, कुछ स्वयंसेवक भी, उनके सबके घर गए, ढांढस बंधाया. बाद में दंगा तो खत्म हो गया, लेकिन नागपुर में भी आजादी मिलने तक फिर कोई दंगा नहीं हुआ. उसके बाद हेडगेवार और संघ का हिदू समुदाय के बीच सम्मान बढ़ गया. लोग उन्हें अपने हर मंगल कार्य में बुलाने लगे, शाखाओं से जुड़ने लगे, तेजी से संघ के प्रभाव में वृद्धि हुई और पूरे देश में उनकी चर्चा होनी शुरू हो गई थी. ये संदेश गया कि हिंदू अगर जातिभेद से बाहर निकलकर एक हो तो कोई भी दूसरा समुदाय उस पर हमला नहीं कर सकता है. हमला कर भी दे तो उसे जवाब मिलेगा. हालांकि आज की तारीख में पुलिस, कानून और अदालतें उस वक्त के निष्क्रिय संस्थानों के मुकाबले ज्यादा सक्रिय हैं. लेकिन तब सब कुछ हिदुओं के लिए संघ भरोसे थे या रामभरोसे.

पिछली कहानी: भारत छोड़ो आंदोलन की ‘हीरोइन’ और 1942… A RSS STORY

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