N.S. Raghuraman’s column – Mathematics is an unpleasant subject, but it makes the future | एन. रघुरामन का कॉलम: गणितः भले नापसंद विषय हो, पर भविष्य बनाता है

- Hindi News
- Opinion
- N.S. Raghuraman’s Column Mathematics Is An Unpleasant Subject, But It Makes The Future
17 मिनट पहले
- कॉपी लिंक

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
आप सभी ने 31 अक्टूबर को एक वायरल वीडियो देखा होगा, जिसमें एक लड़का स्कूल नहीं जाना चाहता था और खाट से लिपटा हुआ था। देखने में यह वीडियो किसी फिल्म के मजाकिया सीन जैसा था, जिसमें परिजनों ने गैर पारंपरिक तरीका अपनाया। वे पूरी खाट ही लेकर खेतों को पार करते हुए, सड़कों पर चलते हुए स्कूल के गेट तक पहुंच गए।
वीडियो में हास्यास्पद दृश्य है, जिसमें लड़के को गलियों में घुमाते हुए दिखाया जा रहा है। देखने वाले उस पर खूब हंस रहे हैं। 1.21 मिनट के वीडियो के अंत में स्कूल से कोई शिक्षक या गैर शैक्षणिक स्टाफ आता है और उसके हाथ को खाट से छुड़ाने की कोशिश करता है, लेकिन विफल रहता है। एक तरफ जब ये सब चल रहा था तो सोशल मीडिया पर ऐसे कमेंट की बाढ़ आ गई कि ‘बचपन याद आ गया’।
चूंकि इस वीडियो का सटीक स्थान पता नहीं चल पाया था तो मैंने उस व्यक्ति का पता लगा लिया, जिसने यह टिप्पणी की थी। मैंने उससे पूछा कि तुम्हें स्कूल के दिन क्यों याद आए? उसने तुरंत जवाब दिया– ‘गणित– जिस विषय से मैं बिस्तर गीला कर देता था।’ मैंने उसकी आजीविका पूछी तो उसने बताया ‘व्यवसाय।’इस ऑनलाइन चैट से मुझे श्रीलंका में कोलंबो के ऑटो ड्राइवर की याद आ गई।
पिछले रविवार को जब मैंने होटल रिसेप्शनिस्ट से पूछा कि प्रसिद्ध बौद्ध पूजा स्थल ‘गंगारामया मंदिर’ घूमने में कितना पैसा लगेगा, तो उसने कहा कि ‘ये पास ही है और होटल के बाहर से ऑटो रिक्शा लेकर जाना सस्ता पड़ेगा।’ बाहर निकलते ही तीन ऑटो ड्राइवर हम सात लोगों के समूह की ओर दौड़े। कीमत पूछने पर एक ने कहा, ‘600 श्रीलंकाई रुपए, 200 भारतीय रु. और 4 अमेरिकी डॉलर।’
महज उसकी जानकारी परखने के लिए मैंने पूछा, ‘सिंगापुर डॉलर में कितने?’ वह तपाक से बोला ‘ सर, 235 श्रीलंकाई रुपए एक सिंगापुर डॉलर के बराबर होते हैं।’ राइड के दौरान मैंने उसके ‘बिजनेस स्टेटिस्टिक्स’ की तारीफ की, जो मैथमेटिकल कन्वर्जन ज्ञान की एक शाखा है और उसकी औपचारिक शिक्षा पूछी। उसने कहा कि ‘आपको क्या लगता है, यदि मैं शिक्षित होता तो ऑटो चला रहा होता?
सर, मैं तो स्कूल भी पास नहीं कर पाया। और मुझे इसका पछतावा है। ’किसी भी शिक्षाविद् से पूछें, वे मानेंगे कि बिजनेस स्टेटिस्टिक्स एक अहम विषय है, लेकिन पाठ्यक्रम में शामिल होने के बावजूद छात्र अकसर इसे अनदेखा करते हैं। आधुनिक विश्व में बड़ी भूमिका निभा रहे एआई के पीछे मुख्य तौर पर स्टेटिस्टिक्स ही है। हमारी मां द्वारा परफेक्ट चाय बनाने से लेकर किसान की उच्च उपज वाली फसल और एक सफल व्यवसायी द्वारा किए गए निर्णयों तक, सबके पीछे स्टेटिस्टिक्स ही है।
यह ऐसा विषय है, जो हमारे दैनिक जीवन में व्यावहारिक रूप से जुड़ा हुआ है। इसमें ऑटो रिक्शा ड्राइवर भी शामिल है। गणित से कैलकुलेशन और समस्या समाधान का कौशल सुधरता है। यह अनिश्चितता के वक्त निर्णय लेने और जोखिमों से निपटने में सहायता करता है। पर इस विषय के डर से कुछ बच्चे स्कूल जाना छोड़ देते हैं। ये ‘मैथेमेटिक्स एन्जायटी’ प्रेशर, पुराने नकारात्मक अनुभवों और इस सोच से पैदा हो सकती है कि यह विषय अप्रासंगिक है। इससे दिमाग में भय पैदा होता है, जो समस्या-समाधान के लिए जरूरी ज्ञान संबंधी कार्यप्रणाली को बाधित कर देता है।
बच्चे अकसर सोचते हैं कि गणित बहुत भारी विषय है, जो जटिल समस्याओं, सूत्रों, ग्राफ और चार्ट से भरा हुआ है। जबकि बिजनेस स्टेटिस्टिक्स के लिए थोड़ी–सी ही गणितीय समझ की जरूरत होती है। यह शुद्ध गणित जितना कठिन नहीं है। शिक्षकों को कुछ करना चाहिए ताकि बिजनेस स्टेटिस्टिक्स जैसे विषय केवल ‘बास्केट सब्जेक्ट्स’ ना बने रहें, जिसका अर्थ है कि छात्रों को कई विकल्पों में से चुनने देना। बल्कि उच्च शिक्षा में इसके कुछ हिस्सों को अनिवार्य बनाना चाहिए।
फंडा यह है कि माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों में गणितीय रुचि पैदा करने के तरीके ढूंढने चाहिए, ताकि वे संख्यात्मक रूप से बुद्धिमान बनें। आखिरकार, हमारा भविष्य कमाए गए पैसे से ही बनता है और पैसा हमेशा संख्याओं में होता है।
Source link
