दास्तान ए साहिर: हिमांशु वाजपेयी और प्रज्ञा शर्मा ने Sahitya AajTak 2025 में दास्तानगोई से बांधा समां – Sahitya AajTak 2025 Himanshu Vajpayee and Pragya Sharma storytelling Sahir Ludhianvi LCLAM

देश की राजधानी दिल्ली में साहित्य, कला और संगीत के दिग्गजों को एक मंच पर लाने वाला तीन दिवसीय ‘साहित्य आजतक 2025’ महाकुंभ मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में जारी है. आज, यानी कार्यक्रम के दूसरे दिन, यह आयोजन अपने चरम पर है.देश भर से दर्शक और साहित्य प्रेमी इस भव्य आयोजन में शामिल हो रहे हैं, जहां उन्हें विभिन्न विधाओं के महान हस्तियों से सीधे रूबरू होने का अमूल्य अवसर मिल रहा है. यह कार्यक्रम कला और साहित्य के शौकीनों के लिए एक विशिष्ट अनुभव है, जो ज्ञान, विचार और सांस्कृतिक विरासत के आदान-प्रदान का एक सशक्त केंद्र बन गया है.
दिल्ली में चल रहे ‘साहित्य आजतक 2025′ के साहित्यिक महाकुंभ में मशहूर दास्तानगो और लेखक हिमांशु वाजपेयी ने अपनी किस्सागोई की कला से दर्शकों का मन मोह लिया. उन्होंने मंच पर महान गीतकार और शायर साहिर लुधयानवी के ऐसे-ऐसे किस्से सुनाए, जिससे महफिल में एक अद्भुत समां बंध गया.
इस प्रस्तुति में उनके साथ प्रज्ञा शर्मा ने भी अपनी किस्सागोई का दमदार प्रदर्शन किया. लखनऊ से आए इन दोनों कलाकारों ने मिलकर दास्तानगोई की समृद्ध परंपरा को जीवंत किया, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा. हिमांशु और प्रज्ञा ने शुरुआत साहिर लुधियानवी की ही लाइनों से की. इसके बाद तो मानों उन्होंने दर्शकों का मन मोह लिया. यह सत्र साहित्य और लोक कला के संगम का एक यादगार पल बन गया.
हमारे और बीते दौर के सबसे बड़े नगमा निगारों में शुमार साहिर लुधियानवी की जीवनी को जिस तरीके इन कलाकारों ने सामने रखा, जिस शानदार तरीके से पेश किया, उसने दर्शकों को वाह-वाह करने पर मजबूर कर दिया. साहिर कभी लिखते हैं- ‘तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम… ठुकरा न दें जहां को कहीं बेदिली से हम.’ तो कभी लिखते हैं- ‘अहल-ए-दिल और भी हैं अहल-ए-वफा और भी हैं… एक हम ही नहीं दुनिया से खफा और भी हैं’
हिमांशु वाजपेयी ने बताया कि महान शायर साहिर लुधियानवी का वास्तविक जादू उनकी नगमा निगारी नहीं, बल्कि गहरे दुखों और दुश्वारियों के बीच भी लिखना था. बचपन में पिता की नफरत और माता-पिता के कड़वे रिश्तों ने उन्हें बुरी तरह प्रभावित किया. उनकी जवानी अधूरे इश्क और सच्ची दोस्ती के साए में गुजरी, लेकिन मां के निधन के बाद वे पूरी तरह टूट गए. उनके लिए मां के जाने का मतलब था, सब कुछ खत्म हो जाना. जीवन के अंतिम दिन अकेलेपन, असुरक्षा और सिर्फ मौत के इंतजार में बीते.
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